संदेश

साहित्य लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सीबीएसई पाठ्यक्रम में बदलाव के निहितार्थ

चित्र
  ( सीबीएसई ने पाठ्यक्रम से 'लोकतंत्र और विविधता, मुगल दरबार, और फैज अहमद फैज की कविताओं' सहित कई विषयों को हटा दिया है। पर क्यों।) -सत्यवान 'सौरभ' Satyvan saurabh केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने 12वीं कक्षा के इतिहास के पाठ्यक्रम से 'द मुगल कोर्ट: रिकंस्ट्रक्टिंग हिस्ट्रीज थ्रू क्रॉनिकल्स' नामक एक अध्याय और शीत युद्ध के दौर और गुटनिरपेक्ष आंदोलन, सामाजिक और नए सामाजिक आंदोलनों पर अध्याय कक्षा 12 राजनीति विज्ञान पाठ्यक्रम से हटा दिए हैं। अन्य अध्याय जैसे अफ्रीकी-एशियाई क्षेत्रों में इस्लामी साम्राज्यों का उदय और औद्योगिक क्रांति को भी कक्षा 11, 12 सीबीएसई पाठ्यक्रम 2022-23 से हटा दिया गया है। फैज़ अहमद फ़ैज़ द्वारा उर्दू भाषा में "धर्म, सांप्रदायिकता और राजनीति - सांप्रदायिकता, धर्मनिरपेक्ष राज्य" खंड के तहत दो कविताओं के अनुवादित अंश को सीबीएसई 10 वीं पाठ्यक्रम 2022-23 से हटा दिया गया है। कविताओं को एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तक "डेमोक्रेटिक पॉलिटिक्स II" से हटा दिया गया है। 21 अप्रैल को जारी सीबीएसई पाठ्यक्रम 2022-23 में बदलाव किए गए

विश्व जल संरक्षण दिवस संजीवनी।

पानी की एक-एक बूंद बचाएं। जीवन में है पानी की बड़ी सार्थकता । जल एक परम आवश्यकता । व्यक्तित्व में पानी होना चाहिए, पर पानी पानी नहीं होना चाहिए, पानी है तो सब कुछ है आब, नहीं तो समझो सब कुछ ख्वाब। पुरुष के चेहरे का रुआब पानी है, नारी के चेहरे की लज्जा पानी ही है, शरीर मे भी तो मिट्टी और अधिकांश पानी है, नौनिहालों के लिए, मां के स्तन से निकला अमृत भी पानी है। पानी के महत्व को सुना गए ज्ञानी, ध्यानी, सुबह शाम और संध्या की जरूरत सिर्फ पानी, नदिया, झरने, पोखर बचाओ यह यज्ञ है मित्रों साथ साथ आओ, यदि धरा पर पानी ना होगा, जीवन इतना पानीदार, इतना जीवंत कहां होगा, जमीन जंगल वृक्ष लताएं, पानी की निर्झरिणी से बहती गंगा की धाराएं। नदियों की बहती धाराओं से नन्ही मछलियां पाती हैं अपना जीवन, पानी से ही पुष्प, लताओं, कलियों में है मधुर स्पंदन, पूरी धरा ही पानी पानी है, संपूर्ण जीवन की अंतर्निहित कथा ही पानी है। जल है तो कल है, इसी से वृक्षों पर मीठे फल है, कल है तो हम हैं, आओ अपना कल बचाएं, पानी की एक-एक बूंद बचाएं। संजीव ठाकुर, रायपुर, छत्तीसगढ़, 9009 415 415,

कहानी , चोर - बादशाह

1. चोर बादशाह बादशाह का नियम था कि रात को भेष बदलकर गज़नी की गलियों में घूमा करता था। एक रात उसे कुछ आदमी छिपछिप कर चलते दिखई दिये। वह भी उनकी तरफ बढ़ा। चोरों ने उसे देखा तो वे ठहर गये और उससे पूछने लगे, "भाई, तुम कौन हो? और रात के समय किसलिए घूम रहे हो?" बादशाह ने कहा, "मैं भी तुम्हारा भाई हूं और आजीविका की तलशा में निकला हूं।" चोर बड़े प्रसन्न हुए और कहने लगे, "तूने बड़ा अच्छा किया, जो हमारे साथ आ मिला। जितने आदमी हों, उतनी ही अधिक सफलता मिलती है। चलो, किसी साहूकार के घर चोरी करें।" जब वे लोग चलने लगे तो उनमें से एक ने कहा, "पहले यह निश्चय होना चाहिए कि कौन आदमी किस काम को अच्छी तरह कर सकता है, जिससे हम एक-दूसरे के गुणों को जान जायं जो ज्यादा हुनरामन्द हो उसे नेता बनायें।" यह सुनकर हरएक ने आनी-अपनी खूबियां बतलायीं। एक बोला, "मैं कुत्तो की बोली पहचानता हूं। वे जो कुछ कहें, उसे मैं अच्छी तरह समझ लेता हूं। हमारे काम में कुत्तों से बड़ी अड़चन पड़ती है। हम यदि बोली जान लें तो हमारा ख़तरा कम हो सकता है और मैं इस काम को बड़ी अच्छी तरह कर सकता हूं

संजीवनी पिता प्रयोग धर्मी होतें हैं,

चित्र
पिता प्रयोग धर्मी होतें हैं, और माँ की ममता भावुक।। पिता सिर्फ समझते हैं, कर्म और धर्म की बोली, माँ दिल की धड़कने । माँ समझती हैं बेटे का हाल, बेटे के अरमानों का आकाश , दिल के भीतर की हलचल, ह्रदय का स्पंदन,धड़कने। चेहरे के हाव-भाव, दोस्तों की आवारगी, धड़कनो की सिसकियाँ, बढ़ते अरमानो की, लम्बी लंबी फरमाईसे, प्रेमिका के सपने , और टूट जाना किसी के लिए दिल का, माँ सब कुछ जान जाती हैं ।। पिता होते हैं सख्त,मजबूत निर्विकार, कड़क, सीधे किसी से समझौता न करने कटिबद्ध,अनुभवी,चट्टान की तरह, माँ होती है भोली, नादान और सहज वात्सल्य से ओतप्रोत, उनके चेहरे पर ही होता माँ होंने का अहसास. पिता के चहरे पर, इसकी जरुरत नहीं होती। पिता निस्पृह,कर्मयोगी होते, माँ गंगा सी पवित्र,निर्झरिणी, सच पिता ऊष्मा,ऊर्जा देते, माँ शीतलता,स्निगधता, भोलापन। पिता सदैव चट्टान की तरह होते हैं, मां दूब की तरह नरम ओश सी मुलायम।। पिता आकाश की छतरी की तरह, मां छाया की तरह शीतल, पानी की बूंदों की तरह पवित्र।। माता-पिता दोनों को नमन, प्रणाम।। संजीव ठाकुर, अंतरराष्ट्रीय कवि, रायपुर,छत्तीसगढ़, 9009 415 415 रायपुर।

संजीव-नी।।

चित्र
  संजीव-नी।। आज की कविता या कविता का आज . शब्द भी सीधे सपाट बढ़ते जाते हैं रुकते नहीं, नदिया भी निर्झरिणी की तरह बलखाती, लहराती, खिलखिलाती बहती है, रुकती नहीं निर्बाध,बहती जाती है समंदर में समूचा विलीन होने तक, इसी तरह कविता भी पल्लवित पुष्पित होती जाती है, खंडकाव्य होने तक, पल प्रति पल की कविता. या कविता का प्रति पल भी इसी तरह होते हैं मेरे घर की सीढ़ीयाँ भी ऊपर की जाती है नीचे क्यों कर नहीं आती, शब्द भी इसी तरह अंतरिक्ष में चले जाते लौटकर नहीं आते जाते हैं, कविता,दोहा,चौपाई,और छंद बनकर, कविता का आज, आज की कविता भी इसी तरह की होती है, ऊपर जाती है सीढ़ियां संदेश बनकर फिर लौटकर कोई नहीं आती कोई न कविता न सीढ़ियां, बस चलती जाती है बहती जाती है मेरे विचारों की तरह। संजीवनी बन कर। संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़, 62664 19992, 90094 15 415 WT

प्रोफेसर: विक्रम हरिजन, की नई कविता "अपने ही देश में "

चित्र
 

*कभी “रात रात भर ताउ ने डीजे पे'’ रॉकिनी गाने से वायरल हुए आज कर रहे हैं शास्त्रीय संगीत का प्रचार-प्रसार*

चित्र
नई दिल्ली: रॉकीनी, हरियाणवी रॉक तथा रात रात भर ताऊ ने डीजे कहे जाना वाला गाना हरियाणा की रागिनी और रॉक संगीत का एक फ्यूजन था जिसमे देश भक्ति को जगाने और युवाओं को अपना समय व्यर्थ ना करने की प्रेरणा दी थी। यह गाना वर्ष 2015-2016 में सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और देखते ही देखते इस गाने ने धूम मचा दी थी। इस गीत के लेख व निर्देशक सूरज निर्वाण ही थे परंतु इसकी कामयाबी का श्रेय उन्होने अपने पूरे बैंड इटरनल ब्लिस व सैम वर्कशॉप को दिया है। इस गाने से सूरज ने युवाओं को नशे से बचने, अपने समय को व्यर्थ न गंवाने और अपने देश के प्रति प्रेम का संदेश दिया था। सूरज ने गाने के बोल और धुन में मनोरंजन के साथ साथ गाने में छिपे कई गहरे सन्देश दिया था। बॉलीवुड से भी कई निर्देशकों ने इस गाने को खरीदने की पेशकश की परंतु जिस सामाजिक सेवा के लिए सूरज ने यह गाया था, उसे ध्यान में रख कर उन्होंने उन लोगों से एक रुपये भी नहीं लिए। लगभग 10 वर्ष 2009 से 2019 तक सूरज सैम वर्कशॉप बैंड के अभिन्न हिस्सा रहे है। और देश भर के कई शहरों के युवाओं को अपने गानों से प्रेरित करते आये है… दिल्ली का दौलत राम कॉलेज, कोलकाता का भवानी

बचपन के वो गीत !

चित्र
स्याही-कलम-दवात से, सजने थे जो हाथ ! कूड़ा-करकट बीनते, नाप रहें फुटपाथ !! बैठे-बैठे जब कभी, आता बचपन याद ! मन चंचल करने लगे, परियों से संवाद !! मुझको भाते आज भी, बचपन के वो गीत ! लोरी गाती मात की, अजब-निराली प्रीत !! मूक हुई किलकारियां, चुप बच्चों की रेल ! गूगल में अब खो गए,बचपन के सब खेल !! छीन लिए हैं फ़ोन ने, बचपन के सब चाव  ! दादी बैठी देखती, पीढ़ी में बदलाव !! बचपन में भी खूब थे, कैसे- कैसे खेल ! नाव चलाते रेत में, उड़ती नभ में रेल !! यादों में बसता अभी, बचपन का वो गाँव ! कच्चे घर का आँगना, और नीम की छाँव !! लौटा बरसों बाद मैं , उस बचपन के गाँव ! नहीं बची थी अब जहां, बूढी पीपल छाँव !! नहीं रही मैदान में, बच्चों की वो भीड़ ! लगे गेम आकाश से, फ़ोन बने हैं नीड़ !! धूल आजकल चाटता, दादी का संदूक ! बच्चों को अच्छी लगे,अब घर में बन्दूक !! प्रियंका सौरभ  रिसर्च स्कॉलर,  कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, उब्बा भवन, शाहपुर रोड, सामने कुम्हार धर्मशाला, आर्य नगर, हिसार (हरियाणा)-125003  (मो.)  7015375570 (वार्ता+वाट्स एप)   facebook -     https://www.facebook.com/ PriyankaSaurabh20/ twitter-

डॉ विक्रम असिस्टेंट प्रोफेसर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी द्वारा लिखित कविता

चित्र
 Dr Vikram assistant professor Allahabad University  द्वारा लिखित कविता

अंधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश !!

चित्र
●●● मन को करें प्रकाशमय, भर दें ऐसा प्यार ! हर पल, हर दिन ही रहे, दीपों का त्यौहार !! ●●● दीपों की कतार से, सीख बात ले नेक ! अँधियारा तब हारता, होते दीपक एक !! ●●● फीके-फीके हो गए, त्योहारों के रंग ! दीप दिवाली के बुझे, होली है बेरंग !! ●●● दीये से बात्ती रुठी, बन बैठी है सौत ! देख रहा मैं आजकल, आशाओं की मौत !! ●●● बदल गए इतिहास के, पहले से अहसास ! पूत राज अब भोगते, पिता चले वनवास !! ●●● रुठी दीप से बात्तियाँ, हो कैसे प्रकाश ! बैठा मन को बांधकर, अंधियारे का पाश !! ●●● पहले से त्यौहार कहाँ, और कहाँ परिवेश ! अंधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश !! ●●● मैंने उनको भेंट की, दिवाली और ईद ! जान देश के नाम जो, करके हुए शहीद !! ●●● -- डॉo सत्यवान सौरभ, रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट, 333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045 मोबाइल :9466526148,01255281381     --   --       ---   डॉo सत्यवान  सौरभ,  रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,   दिल्ली यूनिवर्सिटी,   कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

ईरान कल्चर हाउस से खत्ताती को मिल रही है एनर्जी

चित्र
 23 October 2019 को  Iran culture house में  एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम  खत्तीता  लिखने वालों  के लिए  हौसला अफजाई के लिए था और उन्हें इनाम से नवाजने का कार्यक्रम था।  खत्ताती की कला  याद दिलाती है नवाबो, मुगलों व अतीत की सभ्यता की।   ईरानी अंबेसडर  डॉ अली चेगेनी ने खत्ताती मुकाबले में आए लोगों को खिताब करते हुए कहा  की खत्ताती एक खूबसूरत कला है  और यह कला  बहुत कुछ सिखाती है क़दीम  ज़माने से लेकर  आधुनिक  दौर तक बहुत कुछ बताती है। खत्ताती को करीब से जानने के लिए हम यहां पर एक लेख प्रस्तुत कर रहे हैं यूं तो लखनऊ को यहां की नवाबी इमारतों, जायकों, चिकन की कढ़ाई और तहजीबी जुबां ने खास पहचान दिलाई है। लेकिन ये शहर बस इतना भर नहीं है। इसकी खूबसूरती में यहां के बाशिंदों का हुनर भी चार चांद लगाता है। कुछ हुनर ऐसे भी हैं जो नवाबीकाल में फले-फूले और अब भी शहर का दिलकश हिस्सा बने हुए हैं। कैलिग्राफी या खत्ताती ऐसा ही एक फन है। आमतौर पर खत्ताती तकरीबन सभी मुल्कों और सभी भाषा में होती है लेकिन लखनऊ शहर की खत्ताती आला मुकाम रखती है। इसमें तहजीबी नजाकत, खूबसूरती, लचक और पुरकशिश के न

साहित्य, समाज सेवा और राजनीति के अनूठे सिपाही रामकुमार रानोलिया।

चित्र
 (माननीय राष्ट्रपति पर लिखी कविता से प्रभावित होकर भारत के प्रथम के व्यक्ति के भाई ने इनको विशेष निमंत्रण देकर सम्मानित किया है, जाट बाहुल्य गांव में एक गरीब कुम्हार दंपत्ति को यह मान मिलना गांव के इतिहास में अब तक एक रिकॉर्ड है । वर्ष 1994 के पंचायत चुनाव में पूरे गांव ने तय किया कि अब की बार रामकुमार रानोलिया को सरपंच बनाया जाएगा और उनके घर पर जाकर 200 आदमियों ने अपनी मनसा व मौखिक प्रस्ताव पारित  बारे रानोलिया जी को अवगत भी कर दिया था । और लगभग तय भी हो गया था कि अब रामकुमार रानोलिया ही अगले सरपंच होंगे । कविता लिखने का शौक बचपन से ही था वर्ष 1974 में नाइट कॉलेज दयानंद महाविद्यालय तथा दिन में एक लिपिक के रूप में एनसी जिंदल आई हॉस्पिटल में कार्य करते हुए उनकी पहली पुस्तक अपने ही दर्पण में छपी ।) अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठा रखने वाले लोग जो जनसेवा को भगवान का प्रसाद व आशीर्वाद मान कर निस्वार्थ भाव से नित्य करते रहते हैं,उन्हीं महानुभावों की कड़ी में एक व्यक्तित्व रामकुमार रानोलिया भी है । जिन्होंने गांव का विकास,अंधविश्वास का नाश के साथ समाज के धार्मिक,एवं सांस्कृतिक कार्यों में महत