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YouTube चैनल, MEDIA EFFECT (मीडिया इफेक्ट ) के लिए इस्लामी इतिहास के 50 एपिसोड पूरे

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https://youtu.be/wCUnJw9h2zw  नई दिल्ली: प्रसिद्ध कहावत है  “अगर हमारा कोई इतिहास नहीं है, तो हमारा कोई भविष्य नहीं है “ आज भी ऐसे लोग है , जो उसी उत्साह के साथ अपने इतिहास  पर गर्व करते हैं और उन्हें अपनी पीढ़ी के लिए संजोते हैं। इतिहास की महान और साहसिक घटनाएं हमेशा पीढ़ियों को प्रेरित करती हैं। नईम अल हिंदी, जिन्होंने हाल ही में अपने YouTube चैनल, MEDIA EFFECT (मीडिया इफेक्ट ) के लिए इस्लामी इतिहास के 50 एपिसोड पूरे किए, कहते हैं,  इतिहास आपको गलतियों से बचना और उनसे सीखना भी सिखाता है। 'वास्तव में, इतिहास आपको प्रेरित करता है, अपने  आज और आने वाले कल को सवांरने के लिए। उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के एक गाँव हृदयपुर से आने वाले, नईम प्रसिद्ध इस्लामिक डिबेटर अहमद दीदत से प्रेरित थे। नईम लगभग 20 साल पहले तब्लीगी जमात में शामिल रहे थे, लेकिन इस्लामी इतिहास के अध्ययन के लिए उसके जुनून ने उसे जमात-ए-इस्लामी जाने का रास्ता बना दिया। 17 वर्षों तक विभिन्न क्षमताओं में फिल्म और थिएटर, और इवेंट मैनेजमेंट सहित इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में काम करने के बाद, नईम ने अपने YouTube चैनल के म

कोरोना काल में सौरभ युगल ने लेखन से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनाई पहचान

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(सत्यवान सौरभ एवं प्रियंका सौरभ ने अनेक विषयों पर हिंदी एवं अंग्रेजी में लिखें हज़ारों अखबारों के लिए लेख एवं फीचर्स) (सिवानी मंडी) कोरोना काल के तीन माह के दौरान हरियाणा के भिवानी जिले के सिवानी उपमंडल के गाँव बड़वा के युवा लेखक युगल सत्यवान सौरभ एवं प्रियंका सौरभ ने  प्रतिदिन घटी घटनाओं और उत्पन्न स्थिति के हर क्षेत्र पर प्रभाव को अपने लेखों के माध्यम से देश-दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने का अद्भुत प्रयास किया और ये अपने मकसद में कामयाब भी हुए।  इस दौरान अनेक विषयों पर सत्यवान एवं प्रियंका सौरभ के लेख देश-विदेश के हिंदी अंग्रेजी अखबारों में प्राथमिकता के साथ छपे और विभिन्न न्यूज़ एजेंसी एवं न्यूज़ वेब पोर्टल के द्वारा सराहे गए।  दोनों के अंग्रेजी लेख अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटैन सहित दर्जनों देशों के अंग्रेजी एवं हिंदी अखबारों में छपे और लगातार प्रकाशित हो रहें है। सत्यवान सौरभ एवं प्रियंका सौरभ भारतीय लेखक और पति -पत्नी हैं जिन्हें सौरभ युगल के नाम से भी जाना जाता है। करीब दो दशक से स्वतंत्र पत्रकारिता एवं साहित्य लेखन कर रहे सत्यवान सौरभ कई मीडिया संस्थानों के लिए स्वतंत्र रूप से का

कवयित्री, लेखिका, शिक्षिका प्रो.नीलू गुप्ता अमेरिका में निरंतर हिन्दी का परचम फैला रही हैं।

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  प्रो.नीलू गुप्ता विद्यालंकार    संक्षिप्त परिचय कवयित्री, लेखिका, शिक्षिका प्रो.नीलू गुप्ता अमेरिका में निरंतर हिन्दी का परचम फैला रही हैं। आप कैलिफ़ोर्निया,  अमेरिका    में लगभग 30 वर्षों से हिन्दी के प्रचार प्रसार में लगी हैं। आप अमेरिका में  पिछले 20 वर्षों से  हिन्दी की प्रोफ़ेसर हैं । हिन्दी को देवनागरी लिपि में सरल सुगम अध्यापन व कक्षा के लिए पाठयक्रम की पुस्तकों के साथ-साथ आप कहानी संगह, कविता संग्रह, हाइकु संग्रह प्रकाशित। 'छज्जू का चौबारा', 'माँ धरणी पिता गगन' तथा 'लोकडाउन में लोकजीवन' की सम्पादिका। आप और रिसोर्स गाइड की अनुवादक आप साहित्यिक, सांस्कृतिक व सामाजिक संस्था ‘उपमाग्लोबल अमेरिका ‘ तथा ‘विश्व हिन्दी ज्योति’ की संस्थापिका हैं । अनेक राष्ट्रीय अन्तरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित। 2021 में भारत के महामहिम राष्ट्रपति जी के द्वारा  भारतीय प्रवासी दिवस पर ‘प्रवासी भारतीय सम्मान' से  विभूषित। ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------ दो लघु कविताएँ..... बेटियाँ आँखों का नूर, बेटियाँ आँखो

सदा-ए-दिल से झोली भरनी नहीं है आज

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  &&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& सदा-ए-दिल से झोली भरनी नहीं है आज &&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&& मेरे जन्म दिन पर मेरी जननी नहीं है आज, इज़हार-ए-खुशी मुझे, करनी नहीं है आज। बहारों से कह दो कि अपने बाग़ लौट जाएं, बज़्म मुबारकबाद की सजनी नहीं है आज। मां चीज़ क्या है, मुझे अब महसूस हो गया, सदा-ए-दिल से झोली भरनी नहीं है आज। चाहे लाख कोशिश करो, मां याद ना आए, आंखों से अश्के धारा, टलनी नहीं है आज। अपने अकेलेपन से ही कुछ गुफ्तगू कर लूं, दोस्तों की ख़ास पार्टी रखनी नहीं है आज। मैने हाथों से छिपा लिए, सारे दर्द के आंसू, उनमें अजब मेंहदी तो रचनी नहीं है आज। हवाएं भी अब तो ख़ुशबू चुराएंगी कहां से, दुआओं की धूपबत्ती जलनी नहीं है आज। दिन की तो बात छोड़ो अलग बात है मगर, मेरे रोये बग़ैर रात भी ढलनी नहीं है आज। ज़फ़र बैठे हो किसलिए ख़्यालों में खो कर, मां नहीं तो कोई ज़िद पलनी नहीं है आज। -ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र एफ-413, कड़कड़डूमा क

बन सौरभ तू बुद्ध !!

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  बन सौरभ तू बुद्ध !! ●●● मतलबी संसार का, कैसा मुख विकराल ! अपने पाँवों मारते, सौरभ आज कुदाल !! ●●● सिमटा धागा हो सही, अच्छे है कम बोल ! सौरभ दोनों उलझते, अगर रखे ना तोल !! ●●● काँप रहे रिश्ते बहुत, सौरभ हैं बेचैन ! बेरूखी की मार को, झले रहें दिन-रैन !! ●●● जहर आज भी पी रहा, बनता जो सुकरात ! कौन कहे है सत्य के, बदल गए हालात !! ●●● दिला गयी है ठोकरें, अपनों का अहसास ! सौरभ कितने साथ है, कितने खासमखास !! ●●● होते कविवर कब भला, वंचित और उदास ! शब्दों में रस गंध भर, संजोते उल्लास !! ●●● विचलित करते है सदा,मन मस्तिक के युद्ध ! अगर जीतना स्वयं को, बन सौरभ तू बुद्ध !! ●●● ✍ - डॉo सत्यवान सौरभ, रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, --     ---   डॉo सत्यवान  सौरभ,  रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,   दिल्ली यूनिवर्सिटी,   कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,   आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

मेरी गुमशुदगी

  मुंबई लौटते - लौटते आशंकाओं का बाजार गर्म हो चुका था। इस प्रकार अचानक मेरे लुप्त हो जाने से मेरे शुभचिंतक, मित्र और परिचित आशंकित हो उठे थे। कुछ लोगों के मन में यह सवाल घुमड़ रहा था कि सोशल मीडिया पर निरंतर सक्रिय रहने वाला यह व्यक्ति जो भाषा  और राष्ट्रीय मुद्दों पर सोशल मीडिया पर सक्रिय रहता है, वह अचानक ओझल कैसे हो गया ?  और वह भी इतने दिन तक ?  शायद   कोई व्यस्तता होगी। लेकिन इतने दिन दोनों फोन लगातार बंद आ रहे हैं। ऐसा तो कभी न हुआ था। कहीं कुछ तो गड़बड़ है।   दफ्तर में मेरे सहयोगी अमित दुबे ने मुझे फोन लगाया और बार-बार प्रयास करने पर भी जब संपर्क न सधा तो उसके मन में खटका हुआ। उसने दफ्तर में दूसरों को बताया। चिंतित चेतना मालवणकर ने तो मेरी दिवंगत पत्नी के पुराने फोन पर जानकारी के लिए भी कोशिश की, लेकिन वह बंद मिला। दफ्तर के साथियों द्वारा संपर्क के प्रयास विफल होने पर उन्होंने मेरे साथी और मित्र भाई अनंत श्रीमाली, से संपर्क किया गया। खबर तो उन्हें भी कोई न थी। आखिरकार श्रीमाली जी ने राजभाषा विभाग के सेवानिवृत्त वरिष्ठ तकनीकी निदेशक केवल कृष्ण जी को दिल्ली में संपर्क किया। केवल

परिंदे भी अपने पेट भरने निकलते हैं

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  परिंदे भी अपने पेट भरने निकलते हैं ------------------------------ ---- घर से कभी भी ना डरने निकलते हैं, काम मुश्किलों को करने निकलते हैं। तरक़्क़ी ऐसे ही हांसिल नहीं जहां में, चट्टानों को चीरकर झरने निकलते हैं। क़िस्मत का लिखा, ख़ुद नहीं मिलता, परिंदे भी अपने पेट भरने निकलते हैं। उनके बच्चों को पूरा दूध नहीं मिलता, जो पशु जंगल में ना चरने निकलते हैं। एक दिन ज़रूर दुनिया अच्छा कहेगी, लोगों का दुःख सारा हरने निकलते हैं। मेरे मुल्क का कैसा है अच्छा निज़ाम, अभी भी आन्दोलन धरने निकलते हैं। चुग्गे की जुस्तजू में हैं दुनिया 'ज़फ़र', वतन पर कहां लोग मरने निकलते हैं। - ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र एफ-413, कड़कड़डूमा कोर्ट, दिल्ली-32 9811720212

" साहित्यिक पुरस्कार "

" साहित्यिक पुरस्कार "                               आजकल पालक से पेट्रोल तक की कीमत में आग लगी हुई है !कोरोना ने आटा से लेकर अर्थव्यवस्था तक का मुंडन कर डाला है , पर साहित्यकार की प्रतिभा में सूनामी ना रोक पाया ! रचनाओं की वेगमती धारा ने कोरोना को भी तबीयत से लपेटा ! मार्च 2020 से जून २०२० तक का समय संक्रमण और साहित्य से मालामाल होता रहा ! ( अनुकूल जलवायु पाकर कुछ अस्पताल " किडनी" में भी आत्मनिर्भर हो गए !) लॉक डॉउन में पत्नी का अत्याचार झेल रहे अधिकांश रचनाकर साहित्य में नई नई सुरंग खोदने लगे ! साहित्य सृजन से संपदा कम और समस्या ज़्यादा आती है ! ( ये कोई लेखक के पड़ोसी से पूछे ! कई लोग रचनाकार और कोरोना दोनो से सोशल डिस्टेन्स बना कर चलते हैं !)          अमूमन साहित्यकार की दो प्रजातियां पाई जाती है !  एक झेला जा सकता है, दूसरा लाईलाज ! पहले किस्म का रचनाकार टैलेंट की जगह जुगाड को आधार बनाता है ! ये जुगाड़ू साहित्यकार अक्सर टैलेंट वाले साहित्यकार के हिस्से की साहित्यिक पंजीरी चट कर जाते हैं ! जुगाड़ू रचनाकार की  बगैर रीढ़ वाली रचनाएं भी आसानी से छप जाती हैं, समीक्ष

कल गंदे नाले के ऊपर फुलवारियां बढ़ी हैं

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 कल गंदे नाले के ऊपर फुलवारियां बढ़ी हैं  ------------------------------ --------------------- ज़िन्दगी में दुश्मनों की मक्कारियां बढ़ी हैं, आंधियों  से उजालों  की दुश्वारियां बढ़ी हैं। लगता है आ गया है मेरे मुल्क में इलैक्शन, सरहद पर मेरी फ़ौज की तैयारियां बढ़ी हैं। कुछ अपनों को और बांटनी हैं रेबड़ी अभी, इसलिए भी मंत्रालयों की क्यारियां बढ़ी हैं। शायद आ रहा है अफ़सर, मुआयना करने, कल गंदे नाले के ऊपर फुलवारियां बढ़ी हैं। वो आदमी हो ना हो, मगर ख़ास है, ज़रूर, उसके खाने में चार पांच तरकारियां बढ़ी हैं। अगर कहना था उसको अबला ही हर बार, फिर सियासत में किसलिए नारियां बढ़ी हैं। ज़फ़र मंहगाई पूछती है सुबह भी, शाम भी, अब ग़रीबों के घर क्यूं किलकारियां बढ़ी हैं। -ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र एफ़-413, कड़कड़डूमा कोर्ट, दिल्ली-32 zzafar08@gmail.com

अगर पासे पलट गए चौकीदार कुछ नहीं

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दौलत बग़ैर इल्म भी असरदार कुछ नहीं,  ज़हालत की नज़र में ओहदेदार कुछ नहीं।  झौपड़ी में रहने वाले नासमझ आदमी को,  महलों में रहने वाला किरायेदार कुछ नहीं।    क़िस्मत उठा लाई सियासत के शिखर पर,  अगर पासे पलट गए, चौकीदार कुछ नहीं।   तुम आंख मिलाने का हौसला तो कीजिए,  अब ईमान बेचने वालो खरीदार कुछ नहीं।    वो निकलता है घर से, बन्दूक साथ लेकर,  इसलिए हाथों में चाकू बटनदार कुछ नहीं।    लोकतंत्र का मामला है भीड़ होनी चाहिए,  वोटों की राजनीति में, नंबरदार कुछ नहीं।    फेवर अगर चाहिए ऊपर से लेकर आओ,  सिफारिश के सांचे में हवलदार कुछ नहीं।    लिखा है जो क़िस्मत में होना है वही सब,  उसमें प्रधान कुछ नहीं ठेकेदार कुछ नहीं।    "ज़फ़र" जीते जी की है हमदर्दी सभी की,   वरना मौत के सामने तरफ़दार कुछ नहीं।  -ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र एफ़-413, कड़कड़डूमा कोर्ट, दिल्ली-32 zzafar08@gmail.com

वो चल दिया तो रफ़ाकत के सारे रंग गये

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सरफ़राज़ अहमद फ़राज़ देहलवी   वो चल दिया तो रफ़ाकत के सारे रंग गये मैं किस से रूठ सकूँगा किसे मनाऊँगा                     - सरफ़राज़ अहमद फ़रा स्वर्गीय  सर्वेश चंदौसवी ज़ देहलवी  उर्दू ज़बान के लिए तारीख़ का वो दिन मोज़्ज़िज़ घराने में एक ऐसी किरन फूटी जिसने पूरे खानवादे को बहुत जल्द अपनी जानिब मुतावज्जा कर लिया। मौज़ूदा दौर के शायरों में जो नाम उभरकर सामने आते हैं, उसमें सर्वेश चंदोसवी का नाम सर-ए-फ़हरिश्त है। सर्वेश चंदोसवी की शायरी मौज़ूदा ज़माने के साथ क्लासिकी रवायत से जुड़ी हुई है। इस अहद के लिखने वालों को पढ़कर उन पर माज़ी में लिखने वालों की याद ज़हन में ग़ालिब होने लगती है। मगर सर्वेश चंदोसवी को पढ़कर 'सर्वेश चंदोसवी' ही ज़हन में आते हैं, कोई दूसरा नहीं। सर्वेश चंदोसवी वैसे तो उर्दू के शायर थे, मगर उन्होंने हिन्दी का इस्तेमाल करने में भी परहेज़ नहीं किया। सर्वेश चंदोसवी की शायरी का एक बड़ा हिस्सा ग़ज़लियात का है, मगर उन्होंने नाअत, नज़्मों, रुबाइयात और क़तात का भी इस्तेमाल अपनी शायरी में किया है। सर्वेश चंदोसवी बुनियादी तौर पर ग़ज़ल के शायर थे। इसलिए जो रचा हुआ अंदाज़,

सच्चे पावन प्यार से महके मन के खेत

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