संजीवनी पिता प्रयोग धर्मी होतें हैं,


पिता प्रयोग धर्मी होतें हैं,

और माँ की ममता भावुक।।
पिता सिर्फ समझते हैं,
कर्म और धर्म की बोली,
माँ दिल की धड़कने ।
माँ समझती हैं बेटे का हाल,
बेटे के अरमानों का आकाश ,
दिल के भीतर की हलचल,
ह्रदय का स्पंदन,धड़कने।
चेहरे के हाव-भाव,
दोस्तों की आवारगी,
धड़कनो की सिसकियाँ,
बढ़ते अरमानो की,
लम्बी लंबी फरमाईसे,
प्रेमिका के सपने ,
और
टूट जाना किसी के लिए दिल का,
माँ सब कुछ जान जाती हैं ।।
पिता होते हैं सख्त,मजबूत
निर्विकार,
कड़क,
सीधे किसी से समझौता न करने कटिबद्ध,अनुभवी,चट्टान की तरह,
माँ होती है
भोली, नादान और सहज वात्सल्य से ओतप्रोत,
उनके चेहरे पर ही होता माँ होंने का अहसास.
पिता के चहरे पर,
इसकी जरुरत नहीं होती।
पिता निस्पृह,कर्मयोगी होते,
माँ गंगा सी पवित्र,निर्झरिणी,
सच पिता ऊष्मा,ऊर्जा देते,
माँ शीतलता,स्निगधता, भोलापन।
पिता सदैव चट्टान की तरह होते हैं,
मां दूब की तरह नरम ओश सी मुलायम।।
पिता आकाश की छतरी की तरह,
मां छाया की तरह शीतल, पानी की बूंदों की तरह पवित्र।।

माता-पिता दोनों को
नमन, प्रणाम।।

संजीव ठाकुर, अंतरराष्ट्रीय कवि, रायपुर,छत्तीसगढ़, 9009 415 415 रायपुर।

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