समाजवाद का मुखौटा
क़िस्त- नम्बर : (01)
मुस्तकीम मंसूरी |
मुलायम सिंह यादव का जो सियासी ही नहीं समाजवादी भी कहलाए जाते हैं जिनका वजूद देश की बड़ी और सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस के विरोध की वजह से अमल में आया था।जिसको उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में सियासी उखाड़- पछाड़ एवं तोड़ -फोड़ का महारथी भी माना जाता था जिन्होंने देश की ऐसी कोई धर्मनिरपेक्ष पार्टी बहुजन समाज पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी, जनता दल, समाजवादी जनता पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल, यूनाइटेड जनता दल, कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी एवं लेफ्ट का कोई ऐसा नेता बचा नहीं जिसको कि कथित समाजवाद का चोला पहने मुलायम सिंह ने ठगा नहीं या धोखा न दिया हो, लोकबंधु राजनारायण से लेकर वी पी सिंह, चंद्र शेखर, राजीव गांधी, देवी गौड़ा, लालू प्रसाद यादव, अजीत सिंह, सोनिया गांधी, शरद यादव कल्याण सिंह, और लेफट नेताओं की सादगी भोलेपन को क्या कहें बार-बार धोखा खाने के बावजूद भी मुलायम की परिक्रमा करते रहे, हद तो तब हो गई जब बिहार में महोदय के नेतृत्व में बने महागठबंधन जिसके कि वह खुद अध्यक्ष थे धोखा देकर भागे आखिर क्यों ?
आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी जो उन्होंने बिहार के गठबंधन को तोड़कर फरारी अख्तियार की, क्या कारण था या फिर भाजपा एवं r.s.s. से किए हुए वादे को पूरा करना था धोखे और मक्कारी की इन्तिहा तब हो गई जब अपने उम्र के आखिरी पड़ाव में अपने सगे छोटे भाई को भी नहीं बख्शा और एक शातिराना षड्यंत्र के तहत बेटे से मिलकर उसकी राजनीतिक हत्या करने की कोई कसर नहीं छोड़ी और आखिर तक उसको पार्टी बनाने का भरोसा दिलाते रहे जबकि वो एक ऐसा भाई है कि जिसकी मिसाल इस दौर में कम ही देखने को मिलती है कि जो भाई की मुहब्बत में लगातार फरेब का शिकार होता रहा और आखिर तक अपने भाई के दोहरे चारित्र को ना समझ सका।.............................
शेष अगली किस्त में
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