सियासत के इस दौर में तो पलटूओं की भीड़ है
कैसे मेरा दिल कह दे कि जंगजूओं की भीड़ है, सियासत के इस दौर में तो पलटूओं की भीड़ है। घुट रहा है दम सभी का, नफ़रतों के धुएं में, कह रहा है राजा फिर भी, खुशबूओं की भीड़ है। एक बाज़ीगर जो आ गया है, नक्शे के बीच में, पब्लिक के हाथों में भी, डमरूओं की भीड़ है। उसके मन की बात में जब, जादू अजब-गजब है, क्यूं उसकी मदद को फिर घुंघरूओं की भीड़ है। झूठा ढिंढोरा पिट रहा है, नारी के सम्मान का, मेरे शहर के हर चौराहे पर मजनूओं की भीड़ है। कोई तो समझा दे अपने मन की कहने वाले को, जनता के भी मन के अंदर आरज़ूओं की भीड़ है। सोचता हूं, सोचता रहता हूं, अक्सर मैं यही, किसको अपना लीडर मानूं स्वयंभूओं की भीड़ है। विकास के इस दौर में भी, मर रहे हैं भूख से, फैसला होता नहीं कुछ, गुफ्तगूओं की भीड़ है। इधर कौन बेगुनाह और कौन गुनहगार है, ज़फ़र, कैसे पहचानोगे तुम, हुबहूओं की भीड़ है। ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र एफ-413, कड़कड़डूमा कोर्ट, दिल्ली -32 zzafar08@gmail.com