रुचि वीरा विधायक का इतिहास और कागज बताते हैं की रुचि वीरा सिर्फ 2.5 साल के लिए विधायक बनी, और वह एक कैबिनेट मंत्री से भी अधिक बजट बिजनौर में लेकर आई,
बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए मुस्तकीम मंसूरी की रिपोर्ट,
रुचि वीरा की कहानी भी एक फिल्मी व यादगार रही हैं।
इस बार बिजनौर सीट से रुचि वीरा लोकसभा चुनाव में मैदान में होंगी।
रुचि वीरा के कैरियर पर नज़र डालना भी ज़रूरी है, ये लोकसभा का चुनाव है जीते हुए सदस्य की आवाज़ पूरे देश में जाती है।
श्री मति रुचि वीरा पूर्व गवन्नर,सांसद, मंत्री धर्मवीरा जी के परिवार की बहू है,कुँवर उद्धन वीरा जी की धर्मपत्नी है,रुचि वीरा बिजनौरः से जिलापंचायत सदस्य व जिलापंचायत अध्यक्ष, ओर विधायक रह चुकी हैं,बनारस विश्व विद्यालय में भी इसी परिवार का बहुत बड़ा योगदान रहा है,।
बिजनौर से दिल्ली मेरठ जाने वालों के लिए एक सीमा पर बेराज का पुल बना हुआ है,इस बैराज के पुल को बनवाने में इस परिवार की कड़ी मशक्कत थी,जो इनके परिवार की बदौलत बना ।
समाजवादी पार्टी की सरकार में रुचि वीरा विधायक बनी, इतिहास और कागज़ बताते हैं कि रुचि वीरा सिर्फ 2.5 साल के लिए विधायक बनी,ओर वो एक केबिनेट मंत्री से भी अधिक बजट अपने बिजनौर में लेकर आई,।
रुचि वीरा की विधायकी का समय बताता है कि इन्होंने,करीब 962 करोड़ रूपये बिजनौर विधानसभा में खर्च किए,जिसमे 3 हज़ार से अधिक नल,600 टॉयलेट, 100 मकान ,करीब 100 सड़के, सड़कों का चौड़ीकरण, देश के आज़ाद होने के बाद बिजनौर के दो गाँव में बिजली नही थी,वहां बिजली देने का काम किया है,गजरौला, सुहाड़ी, मंडवार को मिनी बिजली घर देने का काम किया, बिजनौर की बिजली सुधारने में बड़ा योगदान रहा, बालावाली का पुल बनवाने में योगदान रहा, जनपद के लिए मुख्यमंत्री से सिफारिश करके मेडीकल कॉलेज लेकर आई,ऐसी अनेक उपलब्धि रुचि वीरा के नाम रही हैं।
इतिहास बताता है कि इनका ओर इनके परिवार का बिजनौर ओर आसपास के बच्चों को शिक्षा देने में सबसे बड़ा योगदान आज भी है, आज की तारीख़ में इनके स्कूलो व कॉलेजो में अभी भी लगभग 20 हज़ार बच्चे शिक्षा लेते है।
रुचि वीरा शुरू से ही सेकुलर राजनीति करती आई है,बेटी को भी उसी रास्ते पर लेकर जाना चाहती है, कुँवर रानी पर अरबों रुपये की संपत्ति बताई जाती है, लेकिन लोगों के लिए कुछ करने का जज़्बा रखती है, रुचि वीरा बिजनौर से आंवला आकर पिछला चुनाव लोकसभा का आंवला से लड़ी थी, तो एक एक घर में मिलने जाती थी,इनके पैरों से खून निकलता था, जख्मी हो जाती थीं तो जूतों में पैरों के नीचे कॉटन रखकर चलती थी। पिछले
लोकसभा में इनको कम लोग जानते थे, फिर भी मोदी लहर में भी क़रीब 5 लाख वोट ले गई थी।
रुचि वीरा की मेहनत और इनके जज़्बे को देखते हुए बिजनौर के लोगों ने इनका नाम बिजनौर की शेरनी रख दिया,एक महिला पत्रकार ने लाइव कैमरे पर इन से सवाल कर दिया कि आप बीजेपी में क्यों नही चली जाती, आप का राजनीतिक कैरियर ओर अच्छा बन सकता है, रुचि वीरा ने जवाब में राजनीति से सन्यास लेने का जवाब देते हुए कहा था,कि मैं बीजेपी में कभी नही जाऊंगी,इस से बेहतर राजनीति से सन्यास ले लूगी।
दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से भी वह चुनाव हारी हैं।
2017 के चुनाव से पहले बिजनौर के एक गांव में हिंसा और झड़प हुई, जिसमे कई लोगों की मौत हुई,उस घटना में ये मौके पर पुहंच गई थी,कहा जाता है महिला विधायक अपने पति की लाल बत्ती लगी हुई गाड़ी से थी, घायलों को अपनी गाड़ी में डाल डालकर हॉस्पिटल ले गई थी, मृतकों के शवों पर इन्होंने ने अपने सर का पल्लू डाल दिया था, ओर नग्गे सर हॉस्पिटल की सीढ़ियों पर बैठी रही थी, इस लिए बिजनौरः के लोगों के दिलों में इन्होंने जगह बना ली,कहा जाता है कि इनकी सभाओं में कई बार लोगों की आंखों से आँसू तक निकलने लगते हैं।
रुचि वीरा की उपलब्धि बताती हैं अगर वोटों का बिखराव ना हुआ करता तो ,आवाम को इनको निर्दलीय ही जीता देना चाहिए था।
इस बार रुचि वीरा बिजनौर लोकसभा सीट से चुंनाव लड़ रही हैं, बताया जा रहा कि इंडिया गठबंधन इनको ही प्रत्याशी बना रहा है, अगर ऐसा होता तो सेकुलर राजनीति करने वाली इसी महिला रुचि वीरा को एकतरफा जीता मिलना चाहिए, क्यों कि इस तरह की राजनीति करने वाले लोग देश मैं बेहद कम रहे हैं।
इस लोकसभा से बीजेपी लोकदल गठबंधन ने मीरापुर विधायक चंदन चौहान को प्रत्याशी घोषित कर दिया है, चंदन चौहान के पिता जी बिजनौर सीट से सांसद रहे हैं, लेकिन उन्होंने बिजनौर के लिए कोई ऐसा काम या विकास कार्य नही कराया था, जो बिजनौर के लोग और प्रत्याशी उनके बेटे उपलब्धि गिना सके।
रुचि वीरा ने कहा हर बार की तरह चुनाव खराब करना, और लोगों को जुमलों से प्रभावित ना होकर,गुमहराः करने वालों से इस बार सतर्क रहने की जरूरत है।
रुचि वीरा ने कहा कि,ये चुनाव संविधान बचाने व उसकी रक्षा करने का चुनाव है।
इतिहास की बात करें तो यहां से 1957 में एक मुस्लिम सांसद रहा है, पूर्व में यहां से शाहनवाज राणा, शाहिद सिद्दीकी, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, भी चुनाव लड़े लेकिन बड़े मार्जनों से हारे,इस लिए ही समझदारी से सेकुलर नेता को चुनने में ही भलाई दिखाई देती हैं।
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