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हिजामा क्या है? (नीलम दवाखाना) डॉ. कासिफ ज़काई

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  हिजामा क्या है?  • यह एक अरबी शब्द है जो "हजम" शब्द के लिए लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है "चूसना" (सक्शन)  हिजामा थेरेपी यूनानी चिकित्सा के सबसे पुराने रूपों में से एक है।  यह एक थेरेपी है जिसमें कप को कुछ समय के लिए त्वचा पर रखा जाता है ताकि शरीर पर एक सक्शन पैदा हो सके।  इसलिए इसे कपिंग थेरेपी के नाम से भी जाना जाता है।  हिजामा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (कपिंग)  • क्यूपिंग का सबसे पुराना दस्तावेज 3300 ईसा पूर्व में वर्णित मैसेडोनिया में था  • मैसेडोनिया के 700 वर्षों के बाद 2600 ईसा पूर्व में इस कला ने चीन में प्रवेश किया  •प्राचीन पेपिरस 2200 ई.पू. दुनिया में हिजामा की आम प्रथा के बारे में भी बताता है  हिप्पोक्रेट्स ने अपने ग्रंथ में सूखे और गीले कपिंग दोनों का वर्णन किया है नैदानिक ​​​​उपचार के लिए गाइड जो व्यापक रूप से स्थितियों की विस्तृत श्रृंखला के इलाज और दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल करने के लिए व्यापक रूप से नियोजित किया गया है।  (द्वितीय)।  हिजामा थेरेपी का तंत्र-  त्वचा पर रखे कुछ विशेष कप जो शरीर की सतह पर उल्टा दबाव बनाते हैं।  यह उल्टा दबाव एक नकार

30 अप्रैल - विश्व पशु चिकित्सा दिवस विशेष

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पशु चिकित्सकों को भी अपने व्यक्तिगत स्वास्थ्य और कल्याण की जरूरत है। (पशु चिकित्सकों को, अपने रोगियों की तरह, अपने व्यक्तिगत स्वास्थ्य और कल्याण को बनाए रखने के लिए उचित उपकरण और सहायता की आवश्यकता होती है। स्वस्थ जानवरों को स्वस्थ  पशु चिकित्सकों की आवश्यकता होती है। पशु चिकित्सक  दैनिक चुनौतियों और संकटों को संभालने के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित होना जरूरी हैं।) -सत्यवान 'सौरभ' वेटरनरी इंस्पेक्टर, पशु पालन विभाग, हरियाणा सरकार   किसी भी क्षेत्र के अन्य डॉक्टरों की तरह पशु चिकित्सक भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। जानवर, चाहे पालतू जानवर हों या आवारा, प्यार और देखभाल की जरूरत होती है। और यहीं से पशु चिकित्सक बचाव के लिए आते हैं। हर साल अप्रैल के आखिरी शनिवार को, दुनिया भर के लोग पशु चिकित्सकों द्वारा निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिकाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक साथ आते हैं। विश्व संगठन इस दिन को पशु स्वास्थ्य और विश्व पशु चिकित्सा संघ के लिए बनाता है। विश्व पशु चिकित्सा दिवस हर साल अप्रैल के आखिरी शनिवार को मनाया जाता है। इस वर्ष, विश्व पशु चिकित्सा दिवस  30 अप्रैल, 2022

🌿🌿🌿 *19 खरब 50 अरब 40 करोड़ का सालाना व्यापार बस हम सब को बीमार बनाने के लिऐ हो रहा है। नहीं विश्वास हो रहा ना तो ये लेख ध्यान से पढ़णा:-*

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बौद्धिक लड़ाई ना एक दिन में लड़ी जाती और ना जीती जाती, इस के लिए तो सैकड़ों साल लगते हैं और पीढियाँ की पीढियाँ खप जाती हैं। एक बौद्धिक लड़ाई है जैविक कृषि बनाम रसायनिक कृषि और अंत में विजय जैविक खेती की ही होनी है कंपनियां चाहे जो मर्जी कर लें। बुद्धि का विकास शिक्षा से ही होता है और वो शिक्षा ही गलत दे दी जाए तो कोई कहाँ जा कर रोए।  आप सभी गेहूँ व चावल तो खाते ही होंगे। आज इन दो फसलों के बारे में ही बात करुंगा। जब देश में कृषि विश्व विद्यालय नहीं थे तो जैविक कृषि ही होती थी, जब देश में वन विभाग नहीं थे तो जंगलों में अनेक प्रकार के देशी पेड़ पौधे थे, जब देश में पशुपालन विभाग नहीं था तो उत्तम नश्ल के बैल, घोड़े, गधे, गाय, अन्य पशु व मोर, कबुतर, हंस, बुगले व अन्य विभिन्न प्रकार के पक्षी थे। खैर आज बस गेहूँ और चावल। गेहुं का बीज आज हमें बाजार में मिलता है, उस पर अंग्रेजी भाषा में साफ साफ लिखा होता है कि यह गेहूँ खाने योग्य नहीं है, इस पर जहर की परत चढ़ाई गयी है। यह जहर युक्त गेहूँ का बीज किसान को करीब 1000/- ₹ में 50 किलो प्रति एकड़ बोने के लिए दिया जाता है। फिर बुआई के समय सुपर फास्फेट नामक जहर

लक्ष्मी नगर में निशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन

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 नई दिल्ली। ऑल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस के तत्वावधान में रविवार लक्ष्मी नगर स्थित ललिता पार्क में एक निशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर में करीब 500 रोगियों की मुफ्त जांच की गई व उनको दवाइयां दी गईं। शिविर का नेतृत्व कर रहे वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. सैयद अहमद खान ने बताया कि शिविर का उद्देश्य लोगों को रोग मुक्त बनाना है। उन्होंने बताया कि इस शिविर में डॉ. शमसुल आफाक, डॉ. बदरुल इस्लाम, डॉ. लाल बहादुर, डॉ. हबीबुल्लाह, डॉ. शकील अहमद खां, डॉ. सादिका परवीन, हमीम अताउर रहमान, हकीम मुर्तजा देहलवी, डॉ. तबस्सुम खानम, डॉ. मोहसिन देहलवी,  डॉ. मोहम्मद अरशद ग्यास, के अलावा ललिता पार्क आरडब्ल्यूए के सदस्य नरेंद्र पाल, अजय नागपाल, अफजल खां, हाजी मोहम्मद यूसुफ, एडवोकेट शकील सैफी, रजा, मोहम्मद शाहिद आदि ने अपनी सेवाएं दी।

बिना हेपटाइटिस नियंत्रण के कैसे मिलेगी सबको स्वास्थ्य सुरक्षा?

कोविड महामारी के दौरान ,  यह सबको स्पष्ट जो गया है कि सतत विकास के लिए सबकी स्वास्थ्य सुरक्षा कितनी अहम है।  और जब हेपटाइटिस-बी से टीके के ज़रिए बचाव मुमकिन है ,  जाँच-इलाज मुमकिन है ,  हेपटाइटिस-सी का न सिर्फ़ जाँच-इलाज सम्भव है बल्कि पूर्ण उपचार भी मुमकिन है ,  तब कैसे  35  करोड़ लोगों से अधिक को हेपटाइटिस-बी और हेपटाइटिस-सी से जूझना पड़ रहा है और हर  20  सेकंड में  1  असामयिक मृत्यु हो रही है ?   भारत समेत दुनिया की सभी देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा  2015  में यह वादा किया है कि  2030  तक दुनिया से हेपटाइटिस का उन्मूलन हो जाएगा। पर अनेक देश , 2030  तक हेपटाइटिस उन्मूलन के लक्ष्य की ओर  2020  वाले लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाए। हालाँकि यह श्रेयस्कर है कि एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र के कुछ देश ऐसे हैं जिन्होंने  2020  के लक्ष्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया है जैसे कि बांग्लादेश ,  भूटान ,  नेपाल ,  थाइलैंड ,  सिंगापुर ,  मलेशिया आदि। इन देशों ने  90%  से अधिक नवजात शिशु को ,  हेपटाइटिस-बी से बचाव के लिए टीकाकरण उपलब्ध करवाने का लक्ष्य  2020  तक पूरा किया है जो सराहनीय है।   एंड-हेपटाइटिस- 2

जब एचआईवी पोज़िटिव लोग सामान्य ज़िंदगी जी सकते हैं तो फिर 2020 में 680,000 लोग एड्स से मृत क्यों?

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बॉबी रमाकांत – सीएनएस " जब वैज्ञानिक उपलब्धियों के कारण और  सामुदायिक अनुभव से हम यह जानते हैं कि एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति कैसे सामान्य ज़िंदगी जी सकता है तो  2020  में  6.8  लाख लोग एड्स सम्बंधित रोगों से कैसे मृत हुए ?   कौन ज़िम्मेदार हैं इन मृत्यु का ?   वैज्ञानिक शोध की देन है कि अनेक एचआईवी संक्रमण से बचाव के तरीक़े भी हमारे पास हैं फिर  2020  में  15  लाख लोग कैसे नए एचआईवी से संक्रमित हो गए ?   यदि हम एचआईवी नियंत्रण और प्रबंधन में कार्यसाधकता बढ़ाएँगे नहीं तो २०३० तक कैसे दुनिया को एड्स मुक्त करेंगे ?"   कहना है लून गांगटे का जो दिल्ली नेटवर्क ओफ़ पोज़िटिव पीपल के सह-संस्थापक रहे हैं।   34 वाँ विश्व एड्स दिवस  1  दिसम्बर  2021  को मनाया जा रहा है जिससे कि यह मूल्यांकन हो सके कि एड्स मुक्त दुनिया के वादे को पूरा करने में हम फ़िलहाल कितना ट्रैक पर हैं। विश्व एड्स दिवस कोई प्रतीकात्मक दिन नहीं है बल्कि एड्स उन्मूलन की ओर हम कितनी कार्यसाधकता के साथ बढ़ पा रहे हैं इसकी विवेचना ज़रूरी है। संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य को पारित कर के भारत समेत दुनिया के  194  देशों न

मील का पत्थर 1 अरब टीका नहीं बल्कि सभी पात्र लोगों का पूरा टीकाकरण है

https://youtu.be/GSk8Bgn5hwI   बॉबी रमाकांत - सीएनएस असली मील का पत्थर  1  अरब टीका खुराक देना नहीं है बल्कि  12  साल से ऊपर सभी पात्र जनता को निश्चित समय-अवधि के भीतर पूरी खुराक टीका देना है। कोविड टीके के संदर्भ में ,  किसी भी देश का यही लक्ष्य होना चाहिए। जब तक दुनिया की पूरी आबादी का टीकाकरण नहीं हो जाता ,  तब तक कोविड पर हर्ड इम्यूनिटी (सामुदायिक प्रतिरोधकता के ज़रिए) रोक लगना मुश्किल है। अनेक अमीर देशों ने अपनी अधिकांश पात्र जनता का पूरा टीकाकरण कर लिया है और कुछ तो तीसरी बूस्टर खुराक भी देने लगे हैं (हालाँकि विश्व स्वास्थ्य संगठन बूस्टर खुराक की फ़िलहाल सलाह नहीं दे रहा है)। अमरीका ,  कनाडा ,  यूरोप के अनेक अमीर देश ,  सिंगापुर ,  ने अपनी  50-80%  जनता का पूरा टीकाकरण महीनों पहले ही कर लिया है। सिंगापुर दुनिया का पहला देश है जिसने जुलाई तक ही अपनी आबादी के  80%  को पूरा टीका दे दिया था। चीन ने अपनी जनता को  223  करोड़ खुराक टीका दे दिया है। असल लक्ष्य  1  अरब या  2  अरब नहीं है बल्कि अपनी आबादी के  70%  से अधिक का ,  एक निश्चित समय-अवधि में पूरा टीकाकरण करना है।   भारत के  1  अर