खानकाहे रज़वीया नूरिया तहसीनिया के प्रबंधक सोहैब रजा़ ख़ान राष्ट्रीय अध्यक्ष इत्तेहाद एअहले सुन्नत मिशन ने रमजान के तीसरे आशरे की फजीलत बयान की,

बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए बरेली से मुस्तकीम मंसूरी की रिपोर्ट , 

शब ए  कद्र की  इबादत का सवाब 1000 साल की इबादत हो के बराबर होता है, सोहैब रज़ा

 रमजान की फ़ाज़िलत और नमाज़े जुमा की अफ़ज़लियत l

रमजान उल मुबारक महीने में रोजेदार इबादत में मशगूल हैं। मस्जिदों में खतमे क़ुरान का दौर जारी है l वही बाजार मे तरावीह की नमाज़ के बाद रौनक परवान पर है l

खानकाहे तहसीनिया के प्रबंधक सोहैब रज़ा खान  राष्ट्रीय अध्यक्ष इत्तेहाद ए अहले सुन्नत मिशन  ने रमजान के तीसरे आशरे की फजीलत बयान करते हुए बताया कि रहमतों का महीना है रमजान। रमजान को तीन अशरे में बांटा गया है। पहला अशरा रहमत का है। इस अशरे में अल्लाह ताला अपने रहमत से अपने बंदों को नवाजता है। दूसरा अशरा मगफिरत का है यानी रब्बुल आलमीन से अपने गुनाहों की माफी मांगने का। इस अशरे में अल्लाह का कोई भी बंदा अगर दिल से अपने गुनाहों की माफी मांगता है तो रब्बुल आलमीन उसे माफ कर देता है। तीसरा अशरा निजात का है। इस अशरे में खुदा की इबादत करने वालों को जहन्नुम की आग से मुक्ति मिलती है lपांच रात को जागकर करते हैं खुदावंद करीम की इबादत
सोहैब रज़ा ने अपने बयान में कहा कि वैसे तो रमजान का पूरा महीना ही रहमतों का महीना है, लेकिन सबसे अहम है तीसरा अशरा क्योंकि इसी अशरे की ताक रातों में यानी 21, 23, 25, 27, शब ए कद्र हो सकती है और शब ए कद्र की इबादत का सवाब 1000 साल की इबादतों के बराबर होता है। 27 रमजान की रात को कुरआन शरीफ नाजिंल हुआ इसलिए इन रातों की अहमियत काफी बढ़ जाती है इसलिए रोजे़दार इन पांचों रात को जागकर ख़ुदावंदे करीम की इबादत करते हैं।

इस्लाम में जुमे की नमाज की फजीलत बहुत ज्यादा है

जुमेतुल विदा रमजानुल मुबारक महीने का आखिरी जुमा (शुक्रवार) है और इस्लाम में जुमे की नमाज की फजीलत बहुत ज्यादा है। रहा सवाल जुमेतुल विदा उर्फ जुमे की आखिरी नमाज अलविदा का तो इसकी अलग से कोई अहमियत नहीं है। हां, रमज़ान का मुबारक महीना अच्छे से बीत गया। हम सब लोगों ने परहेज से रोजे रखे और अल्लाह ताला की रहमत हम पर बनी रही। हमें इस बात की खुशी होती है तो इस बात का गम भी होता है कि इतनी रहमतों का महीना इतनी जल्दी बीत गया।

रमजान ले जाता है इंसानियत की राह पर

सोहैब मिया ने कहा कि तीसरे अशरे में ही हम फितरा और जकात भी निकालते हैं, जिससे ईद की नमाज गरीब लोग भी खुशी से पढ़ सकें। वैसे ईद के बाद भी फितरा और जकात निकाला जा सकता है, लेकिन रमजान में ही यह निकालना बेहतर होता है क्योंकि रमजान में हर नेकी का सवाब सत्तर गुना बढ़कर मिलता है। रमजान हमें बताता है कि हर किसी के साथ मिलकर रहें, बुराइयों से बचें, सिर्फ भूखे न रहें, हर नफ्स का रोजा़ रखें मतलब एक इंसान को इंसानियत के राह पर ले जाने वाला होता है रोज़ा ।

मुल्क की तरक्की के लिए खूसूसी दूआ करें

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