उत्तर प्रदेश विधान परिषद चुनाव में भाजपा ने 33 सीटें जीत कर इतिहास रच दिया वहीं मुस्लिम समाज की नाराजगी ने सपा का सूपड़ा साफ कर दिया, आखिर क्यों?

m a mansoori
बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए मुस्तकीम मंसूरी की खास रिपोर्ट, 

 लखनऊ, उत्तर प्रदेश विधान परिषद चुनाव    में आज मतगणना के बाद समाजवादी पार्टी विधान परिषद चुनाव में कहीं मुकाबले में नजर नहीं आई आज के घोषित परिणामों ने  स्पष्ट कर दिया कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी भाजपा को रोकने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई है।


आपको बताते चलें सपा सुप्रीमो के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की यह लगातार पांचवी पराजय है, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने 2012 में उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद पहली पराजय 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री रहते स्वीकार की थी, उसके बाद 2017 में दूसरी पराजय के रूप में सत्ता से बाहर होने के बाद भी किसी तरह का कोई मंथन न करना अखिलेश यादव की राजनीतिक सूज बुझ पर कई सवाल खड़े कर रहा था, परंतु राजनीतिक अज्ञानता और घमंडी स्वभाव के कारण 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश को एक और  पराजय का सामना करना पड़ा, जिसमें उनके परिवार के कई दिग्गज चुनाव हार गए| लगातार हार की हैट्रिक के बाद 2022 विधानसभा चुनावों में सत्ता में वापसी का सपना देखने वाले अखिलेश यादव को चौथी बार पराजय स्वीकार करना पडी़, क्योंकि उनके समाज के साथ साथ अन्य हिंदू पिछड़ा वर्ग भी उनका साथ छोड़कर भाजपा के साथ चला गया, और अकेला मुस्लिम समाज अपनी वफादारी को साबित करने और भाजपा को हराने के मकसद से कांग्रेस और बसपा से दूरी बना कर सपा की साइकिल पर चडा़ रहा और भाजपा सत्ता पर काबिज हो गई, परंतु अब मुस्लिम समाज यह बात अच्छी तरह समझ चुका है, कि सपा भाजपा को हरा तो नहीं सकती, परंतु  मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में करके भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने में सहयोग अवश्य कर सकती है, गौरतलब है उत्तर प्रदेश विधान परिषद चुनाव में कांग्रेस और बसपा ने अपने प्रत्याशी ना उतार कर मुकाबले को सीधा भाजपा बनाम सपा करके मुस्लिम समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया, नतीजे सबके सामने हैं, विधान परिषद की 33 सीटें जीतकर भाजपा ने इतिहास रच दिया, हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का परिणाम भाजपा के लिए किसी सदमे से कम नहीं रहा यहां उसके प्रत्याशी सुदामा पटेल की जमानत जप्त हो गई, क्योंकि इस चुनाव में सांसद, विधायक, जिला पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान, बीडीसी, चेयरमैन और पार्षद ही वोट करते हैं, इस तरह भाजपा को विधान परिषद में स्पष्ट बहुमत मिला है, कुल रिक्त 36 सीटों में से 9 पर भाजपा ने पहले ही निर्विरोध जीत हासिल कर ली थी, बाकी 27 सीटों के लिए 10 अप्रैल को हुए मतदान के बाद आज मंगलवार को आए नतीजों में भाजपा ने 33 सीटों पर जीत हासिल की है, जबकि दो निर्दलीय प्रत्याशियों के हिस्से में सीटें आई हैं, वही एक पर जनसत्ता दल को जीत मिली है, मुख्य विपक्षी दल सपा का सूपड़ा साफ हो चुका है, गौरतलब है विधान परिषद चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत में मुस्लिम समाज के मतदाताओं का भाजपा के पक्ष में वोट देना सपा से मुसलमानों की नाराजगी एक बड़ी वजह बनी है, 

वही वाराणसी विधान परिषद सीट पर बाहुबली बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा देवी का भाजपा के सुदामा पटेल को बुरी तरह हराना और भाजपा प्रत्याशी सुदामा पटेल का तीसरे नंबर पर आना भाजपा के लिए चिंता का विषय जरूर होना चाहिए, क्योंकि बृजेश सिंह इस समय जेल में है | 

कौन कहां से जीता

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लखनऊ उन्नाव रामचंद्र प्रधान, जौनपुर बृजेश सिंह प्रिंस, देवरिया कुशीनगर रतन पाल सिंह, मेरठ गाजियाबाद धर्मेंद्र भारद्वाज, आगरा फिरोजाबाद विजय शिवहरे, गाजीपुर विशाल सिंह चंचल, सीतापुर पवन सिंह चौहान, रायबरेली दिनेश प्रताप सिंह, बस्ती सुभाष यदुवंश, इटावा फर्रुखाबाद प्रांशु दत्त द्विवेदी, बाराबंकी अंगद कुमार सिंह, बलिया रविशंकर सिंह पप्पू, गोरखपुर सीपी चंद, झांसी जालौन ललितपुर रमा निरंजन, प्रयागराज केपी श्रीवास्तव, सुल्तानपुर शैलेंद्र प्रताप सिंह, मुरादाबाद बिजनौर सतपाल सिंह सैनी, अयोध्या हरिराम पांडे, बहराइच श्रावस्ती प्रज्ञा त्रिपाठी, गोंडा अवधेश कुमार सिंह, रामपुर बरेली कुमार महाराज सिंह, कानपुर फतेहपुर अविनाश सिंह चौहान, पीलीभीत शाहजहांपुर डॉक्टर सुधीर गुप्ता, मुजफ्फरनगर सहारनपुर वंदना मुदित शर्मा, यह सभी भाजपा से जीते है इसके अलावा  प्रतापगढ़ से अक्षय प्रताप सिंह एवं आजमगढ़ मऊ विक्रांत सिंह निर्दलीय के साथ ही वाराणसी से अन्नपूर्णा सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के ग्रुप में चुनाव जीते हैं, जबकि 9 प्रत्याशी भाजपा के निर्विरोध चुने गए हैं, इस तरह भाजपा के 24 प्रत्याशी चुनाव जीत कर आए हैं और नव प्रत्याशी निर्विरोध चुने जाने के बाद भाजपा के जीते हुए प्रत्याशियों की संख्या 33 है, और सपा का विधान परिषद चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया है, आखिर क्यों?

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