बुरी चुनाव प्रणाली में अच्छा इंसान राजीव यादव
राजीव यादव हमारे बहुत पुराने मित्र हैं, और हम उन्हें इसलिए बहुत पसंद करते हैं, कि वे सत्ता से बिना डरे आए दिन, एक के बाद एक साहसिक काम करते रहते हैं, चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो। उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों पर होने वाले दमन के खिलाफ सबसे मुखर होकर बोलने वाले राजीव और उनका उनका संगठन रिहाई मंच है, जबकि ये ऐसा मुद्दा है, जिस पर बोलने से प्रगतिशील लोग और जन संगठन भी बचते हैं। किसी भी ऐसी घटना पर लोगों को बाद में बोलने का साहस भी तभी मिल पाता है जब रिहाई मंच की ओर से राजीव और मुहम्मद शुऐब पीड़ित पक्ष की ओर से बयान दे देते हैं।
तुरंत ख़्याल आया - "कौन सी पार्टी में शामिल हुए होंगे?"
ये सुनकर दुख कुछ तो कम हुआ ही कि "किसी में नहीं, वे निर्दलीय लड़ेंगे।" क्योंकि जो काम वे करते रहे हैं, उसमें सभी पार्टियों की राजनीति एक ही है - अल्पसंख्यक विरोध और हिन्दू तुष्टिकरण।
राजीव और उनकी पूरी टीम के लिए मेरे मन में जो प्यार और सम्मान है उसे देखते हुए मेरी शुभकामनाएं है कि वो जीतें, लेकिन इस भ्रष्ट और गंदी चुनावी व्यवस्था में वो विधायक बन कर पहले की तरह कुछ कर सकेंगे इसमें संदेह है। दरअसल वे इस बुरी सत्ता व्यवस्था में एक अच्छे प्रत्याशी हैं। यह अंतर्विरोध क्या रंग लायेगा, आगे देखना है।
राजीव को मैं तब से जानती हूं, जब वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे और अपनी राह तलाश रहे थे। मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल में वे हमारे सहकर्मी थे, शाहनवाज़ के साथ उनकी दोस्ती भी प्रसिद्ध थी, दोनों हमेशा साथ देखे जाते। दोनों से मेरी तीखी बहसें भी हुआ करती थी, शाहनवाज इसमें कटु हो जाते लेकिन राजीव हमेशा विनम्र बने रहते, सबको साथ लेकर चलने का उनका व्यक्तित्व बन रहा था। बाद में दोनों पत्रकारिता की पढ़ाई करने बाहर चले गए। जब 2010 में हम जेल गए और 2012 में हमें आजीवन कारावास हो गई तो एक दिन राजीव, शाहनवाज, संदीप पाण्डेय और अरुंधती धुरू के साथ मिलने आए। मैं और विश्वविजय बहुत खुश हुए, जब पता चला कि वे हमारी रिहाई के प्रयासों में लगे हुए हैं।
बाद में दोनों ने "रिहाई मंच" के माध्यम से महत्वपूर्ण काम किया। शाहनवाज तो जल्दी ही कांग्रेस में शामिल हो गए, लेकिन राजीव ने इस अभियान को आगे बढ़ाया।
ध्यान दें कि पिछले 20 सालों से मुसलमान लड़कों को आतंकवादी घोषित कर गिरफ्तार करने और उन्हें फर्जी एनकाउंटर में मार देने का काम सभी सरकारें जोर-शोर से कर रही है। यह प्रचार इतना खतरनाक स्तर तक है कि कोई भी व्यक्ति गिरफ्तार या मार दिए गए मुसलमान लड़के के पक्ष में बोलने की हिम्मत नहीं करता। ऐसे खतरनाक समय में राजीव ने रिहाई मंच के माध्यम से इस डर को तोड़ने का काम किया। वे ऐसे हर मामले में पीड़ित परिवार के साथ खड़े होते, उन्हें हिम्मत देते, मोहम्मद शुऐब के नेतृत्व में उन्हें कानूनी मदद देते, और मामले जांच कर उसकी रिपोर्ट प्रकाशित कर इस "सरकारी आतंक" की पोल खोलने का काम करते। उनके इस तरह के कामों ने लोगों के खौफ को तोड़ने का काम किया है, और इस बनाए गए सरकारी मिथ को भी कि "हर मुसलमान आतंकवादी होता है।"2009 में हुए बाटला हाऊस फर्जी एनकाउंटर के बाद जब आजमगढ़ के संजरपुर को आतंकवाद की नर्सरी घोषित कर दिया गया, तो राजीव और रिहाई मंच ने इस दुष्प्रचार के खिलाफ महत्वपूर्ण काम किया। लखनऊ में रिहाई मंच का दफ्तर हमेशा गहमा गहमी से भरा रहता है। बहुत सारे दूसरे शहरों के एक्टिविस्ट, जिन्हें शहर में कोई दूसरा ठिकाना न मिले, उनका ठिकाना हुआ करता है। मुझे भी कई बार बहुत मुसीबत के समय यहां आसरा मिला, साथ ही राजीव और शुऐब साहब का साथ भी।
राजीव ने अच्छे पत्रकार की भूमिका निभाते हुए कई महत्वपूर्ण विषयों की जांच करके लिखा है, जिसमें "ऑपरेशन अक्षरधाम" सबसे महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होंने सरकार के सांप्रदायिक षड्यंत्रों का पर्दाफाश किया है। उन्होंने बाटला हाउस फर्जी एनकाउंटर पर लिखा। मुख्यमंत्री अजय बिष्ट उर्फ आदित्यनाथ के सांप्रदायिक आपराधिक कारनामों पर उन्होंने लिखा और बोला भी।
राजीव और रिहाई मंच के कामों की सूची बहुत लंबी है और काम बेहद महत्वपूर्ण। वे हमेशा जनता के सबसे पीड़ित पक्ष के साथ रहे हैं। चुनावी राजनीति में जाने के बाद भी वो इन कामों को आगे बढ़ा सकें, इसके लिए राजीव को बहुत शुभकामनाएं। लेकिन साथी राजीव, अगर ये संभव न हो सका तो लौट आना, हम स्वागत करते मिलेंगे।
सीमा आज़ाद
संपादक
दस्तक नए समय की
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