::::::::::::::::::::::::दर्द- ए- किसान:::::::::::::::::: ***************
::::::::::::::::::::::::दर्द- ए- किसान::::::::::::::::::
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अपना हक सच लेने पर किसान आ गया,
ज़मी पे लग रहा है आसमान आ गया l
मेरी फसल का दाम कोई और तय करें,
अजीबो गरीब तुगलकी फरमान आ गया l
अपनी फसल को बेचने दर-दर भटक रहा,
लग रहा है फिर से अब लगान आ गया l
साल भर लगा रहा खुशी की आस में,
फायदा हुआ नहीं, नुकसान आ गया l
दो बैल और एक झोपड़ी हिस्से में आ गई,
औरो के हिस्से में गाड़ी और मकान आ गया l
कर्ज़ में डूबा रहा कभी, कभी ज़हर खा गया,
अपनी ही ज़िन्दगी से, मैं हलकान आ गया l
बेच दो हड्डी मेरी, लहू भी मेरा बेच दो *हबीब*
लो तुम्हारे सामने लहूलुहान आ गया ll
*हबीबुर्रहमान सैफी एडवोकेट कस्बा जोया जिला अमरोहा उत्तर प्रदेश*
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