हजरत हकीम इमामुद्दीन जका़ई का जीवन एक मिसाल है , युवा हकीम व डॉक्टरों के लिए आदर्श और प्रेरणा के स्रोत है
जनाब हकीम इमामुद्दीन जकाई साहब का जीवन एक ऐसे इंसान की जिंदगी का आईना है जो संघर्षशील, जुझारू ,मेहनती, लगन शील और प्रगतिशील इंसान है। खुदा पर अटूट विश्वास करने वाले, और सब्र करने वाले, लेकिन हर वक्त आगे बढ़ना इनकी जिंदगी का मकसद रहा है। यूनानी देसी ,जड़ी - बूटियों में खोज करना और निरंतर मरीजों को फायदा पहुंचाना, इस तरह का ताना-बाना इनके दिमाग में हर वक्त रहता है । समाज के शोषित, उत्पीड़ित, उपेक्षित, वंचित, मजलूम और कमजोर लोगों के दुख दर्द को बांटना उनकी हर संभव सहायता करना हकीम साहब का रोजाना का शगल बन गया है। तभी तो इन्होंने आज हिकमत के साथ-साथ समाज सेवा में भी अपना एक उच्च स्थान बना लिया है ।जिसका समस्त समाज को फक्र है। जिस इंसान में दुश्मनों को भी दोस्त बनाकर, नफरत को भी मोहब्बत में बदल कर चलने की आदत हो ऐसे इंसान के विशाल हृदय में कितना प्यार - मोहब्बत और भाईचारे की का समावेश होगा? सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है । सर्व गुणों से भरपूर व्यक्ति की जिंदगी का अंदाजा लगाना आसान काम नहीं है । पत्रकारिता के जीवन में बहुत अच्छे अच्छे लोगों से और बड़े नामचीन लोगों से मुलाकात होती रहती है, लेकिन जो बात अपने हकीम साहब के अंदर देखी ऐसी बात दूसरे लोगों में बहुत कम देखने को मिलती है। हिकमत और समाज सेवा के अनमोल रत्न हकीम इमामुद्दीन जताई अत्यंत शालीन और स्वच्छ छवि के इंसान हैं । विशिष्ट गुणों से विदमान , सम्मानित और प्रशंसनीय है ।समाज और अपने कर्तव्य के प्रति पूरी तरह समर्पित है । हिकमत के क्षेत्र में आज हकीम साहब के सलाह - मशवरे के बिना कोई भी अध्ययन अधूरा समझा जाता है । समाज सेवा और खिदमत ए खल्क इनके जीवन का मिशन है ।आपका व्यक्तित्व ऐसा बहुआयामी है कि आज दिल्ली और आसपास में ऐसा शायद ही कोई आयोजन हो जिसमें आपको नहीं बुलाया जाता हो। आपके दोस्त वह अहबाब आपके बारे में बताते हैं कि आप एक विश्वस्त, सहयोगी ,मजहब का पालन करने वाले, विशाल समुद्री रूपी कोमल हृदय के मालिक हैं । दूसरों की खिदमत करना ,गरीबों ,मजदूरों, यतीमो,बेवाओ की मदद करना कोई हकीम साहब से सीखे
हकीम साहब का जन्म
जनाब इमामुद्दीन जकाई साहब का जन्म 15 जुलाई 1947 को उस वक्त हुआ, जब देश की आजादी की खातिर मतवाले फांसी के फंदे को चूम रहे थे । करीब एक महीने बाद देश को आजादी मिल गई और हिंदुस्तान का प्रत्येक व्यक्ति खुली हवा में सांस लेने लगा। जिस वक्त देश को आजादी मिली और हिंदुस्तान पाकिस्तान का बंटवारा हुआ उस वक्त मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे लेकिन आपके दादा पिता ने कहा कि हम पाकिस्तान नहीं जाएंगे । यही जिएंगे यही मरेंगे, जबकि बहुत से रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए थे । आपके दादा कहा करते थे कि उन्हें अपनी सरजमीं से इतना प्यार है कि हम इस सरजमीं को नहीं छोड़ सकते ।
उन्होंने पाकिस्तान जाने से बिल्कुल इनकार कर दिया था। हकीम इमामुद्दीन जकाई कि तीन बहने पाकिस्तान के कराची शहर में रह रही है। जिनकी शादी उनकी खाला के बेटों से की गई थी जो आजकल कराची में रह रहे हैं । आपके वालिद मोहतरम पिता हकीम सिराजुल हुक्मा के नाम से जाने जाते थे । इलाके में मशहूर थे। लोग उन्हें हकीम साहब के नाम से ही पुकारा करते थे। हकीम इमामुद्दीन जकाई बचपन में दीनी तालीम हासिल करने घर से दूर हो हौजवाली मस्जिद में जाया करते थे। आप मोहल्ला कब्रिस्तान में रहा करते थे । इसी के बराबर में दरगाह दादा पीर है ।जहां पर हिंदू -मुस्लिम, सिख ,ईसाई सभी धर्म के लोग आया करते थे। यहां पर 1947 के शहीदों को दफन किया गया था। जहां पर चंद घर मुजाहिदीन आजादी के थे । इसलिए यहां का नाम मौहल्ला कब्रिस्तान रखा गया ।
हकीम इमामुद्दीन जकाई साहब दीनी तालीम लेने हौज वाली मस्जिद में जाया करते थे। वहां पर मौज्जन हामिद साहब पढ़ाया करते थे। वह बड़े अल्लाह वाले थे ।रूहानियत से भरपूर उनकी जिंदगी एक आईना थी। नमाज पढ़ना ,जिक्र ए इलाही में मशगूल रहना। और तमाम उम्र मस्जिद के अंदर ही रहे । जवानी से बुढ़ापे तक मस्जिद के अंदर ही अपनी जिंदगी खत्म की, वह कभी मस्जिद से बाहर नहीं निकलते थे। अल्लाह की इबादत में लगे रहते थे ।उनका पैगाम था किसी को बुरा मत कहो चाहे वह हिंदू हो, मुसलमान हो ,सिख हो, इसाई हो, प्रत्येक धर्म का आदर करना हकीम साहब ने उन्ही से सीखा । उनका कहना था कि अपने धर्म का पालन मजबूती से करो। आपसी भाईचारा ,राष्ट्रप्रेम मानवता का पाठ पढ़ाया करते थे। उन्होंने सच्चाई ,ईमानदारी और राष्ट्रीयता का जो पाठ पढ़ाया था हकीम साहब उसी का अनुसरण कर रहे हैं। मस्जिद में हकीम साहब को नैतिकता का जो पाठ पढ़ाया गया, मानवता की जो घुट्टी पिलाई गई उसी का यह असर है आज उनके दवाखाने पर लोगों की लाइन लगती है । वह बताते हैं मुझे आज भी याद है वहीं पर मुफस्सिर ए कुरान( कुरान के ज्ञाता ) मुफ्ती zia-ul-haq थे जो सुईवालान में रहा करते थे। उन्होंने 20- 25 साल तक तफसीर कुरान किया ।
मुफ्ती जिया उल हक साहब मोज्जन हामिद साहब से बैत थे । पवित्र कुरान का इंसानियत के बारे में जो संदेश है उसी को फैलाते थे । इंसानियत और भलाई के लिए पूरी दुनिया के इंसानो को सीधे रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते थे । आप मुफ्ती ए आजम बनकर पाकिस्तान चले गए थे। आप का शुमार पाये के बुजुर्गों में होता है । हकीम इमामुद्दीन जकाई साहब बताते हैं कि मैंने दिल्ली नगर निगम के प्राइमरी स्कूल में दाखिला लिया और पढ़ाई की शुरुआत कर दी । यह स्कूल तुर्कमान गेट से पाठक तेलीयान मे था। जो घर से काफी दूर था। बच्चे गली कूचे से होकर यहां पढ़ने आया करते थे। बड़ा शांत वातावरण था ।और उस वक्त इतना ट्रैफिक भी नहीं था। हम बड़ी आसानी से स्कूल आ जाया करते थे मेरी क्लास में 20 -22 बच्चे पढ़ते थे उस वक्त जो मेरे उस्ताद थे वह हिंदू थे जिनका नाम राममूर्ति था । जो शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य के बारे में भी पढ़ाया करते थे । उनमें एक खास आदत थी कि वह चना खा कर पढ़ाया करते थे और पढ़ाते हुए भी चना खाया करते थे । वह बताते थे कि चने खाओ और सेहत बनाओ, चना ताकतवर है और सेहत के लिए फायदेमंद भी है। वह खादी का कुर्ता, धोती, पजामा और बास्केट जैकेट पहना करते थे । पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया करते थे। जो बच्चा पढ़ाई में ध्यान नहीं देता था अथवा काम पूरा करके नहीं आता था उसे धूप में खड़ा कर दिया करते थे। वह कहा करते थे जो बात समझ में ना आए मुझसे पूछ लिया करो। मैं चाहता हूँ प्रत्येक विद्यार्थी यहां से काबिल बनकर निकले। यहां प्राइमरी शिक्षा प्राप्त करने के बाद यहां से पांचवी क्लास पास करने के बाद कूचा चेलान के मिडिल स्कूल में दाखिला लिया। यहां पर उर्दू और इंग्लिश पढ़ाई जाती थी। यहां पर मेरे उस्ताद हेड मास्टर बरनी साहब हुआ करते थे।॰
यहां पर उर्दू और इंग्लिश पढ़ाई जाती थी जो बनिसा भारत के बहुत अच्छे थे बच्चों पर विशेष ध्यान देने वाले थे जो बच्चे शरारती होते थे तथा पढ़ाई से मन चुराया करते थे उन्हें अंदर ले जाकर नसीहत दिया करते थे कि अपने बाप का पैसा और वक्त बर्बाद मत करो वह पिटाई से ज्यादा नसीहत दिया करते थे अगर बच्चा ज्यादा शरारती हुआ करता था तो उसे हर क्लास में बच्चों के सामने घुमाया करते थे और कहलाते कि बदमाश हूूँ।अपने माँ बाप का पैसा और वक्तत बर्बाद कर रहा हूं ।॰ तो बच्चा रोया करता था और सीधे रास्ते पर आ जायाा करता था और यही वजह थी कि मिडिल क्लास स्कूल टॉप आया करता था इसीी दौरान एक उस्ताद जर्रार हैदर थे ....
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