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रोज़े के दौरान हमारे जिस्म का रद्देअमल क्या होता है? इस बारे में कुछ दिलचस्प जानकारी डॉक्टर मोहम्मद फ़ाज़िल ने दी|

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 बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए मुस्तकीम मंसूरी की खा़स रिपोर्ट,  बरेली,आलाहजरत सर्जिकल एंड ट्रामा सेंटर मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल के डायरेक्टर डॉक्टर मोहम्मद फ़ाज़िल से हमारे संवाददाता ने रोजे़ के दौरान   रोजे़दारों के जिस्म का रद्दे अमल क्या होता है? इस बारे में डॉक्टर मोहम्मद फ़ाज़िल ने कुछ दिलचस्प जानकारी देते हुए बताया| पहले दो रोज़े: के दौरान पहले ही दिन ब्लड शुगर लेवल गिरता है यानी ख़ून से चीनी के ख़तरनाक असरात का दर्जा कम हो जाता है। दिल की धड़कन सुस्त हो जाती है और ख़ून का दबाव कम हो जाता है। नसें जमाशुदा ग्लाइकोजन को आज़ाद कर देती हैं। जिसकी वजह से जिस्मानी कमज़ोरी का एहसास उजागर होने लगता है। ज़हरीले माद्दों की सफाई के पहले मरहले के नतीज़े में- सरदर्द सर का चकराना, मुंह का बदबूदार होना और ज़बान पर मवाद का जामा होता है। डॉक्टर मोहम्मद फाजिल ने बताया की तीसरे से सातवें   रोज़े तक: जिस्म की चर्बी टूट फूट का शिकार होती है और पहले मरहले में ग्लूकोज में बदल जाती है। कुछ लोगों में चमड़ी मुलायम और चिकना हो जाती है। जिस्म भूख का आदी होना शुरु हो जाता है। और इस तरह साल भर मसरूफ रहने वाला हाज़मा सिस्

हजरत शाह शराफत अली मियां के 55 वें उर्स के मौके पर जश्ने शाह शराफ़त अली मियां रह. अलैह का शानदार इनिकाद,

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बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए बरेली से रफी मंसूरी की रिपोर्ट,  बरेली,माहे ईद मिलादुन्नबी सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम व उर्स-ए-शराफ़ती के पुरनूर मौके पर शहर में जगह -जगह हमेशा की तरह "जश्ने शाह शराफ़त अली मियां" मनाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में आज बतारीख 30 सितंबर बरोज़ जुमा मुताबिक 3 रबीउल अव्वल मोहल्ला गुलाब नगर घोसियों वाली मस्जिद के पास जश्ने शाह शराफ़त अली मियां रहमतुल्लाह अलैह मनाया गया। प्रोग्राम का आगाज़ तिलावते कलामे पाक से बाद नमाज़े ईशा रात 9:00 बजे किया गया, जिसकी निज़ामत मुख्तार तिलहरी सकलैनी ने की। प्रोग्राम पीरो मुरशिद हज़रत शाह मुहम्मद सक़लैन मियां (मियां हुज़ूर) की सरपरस्ती में हुआ। इससे पहले बाद नमाज़ मगरिब शाम 7 बजे पीरो मुरशिद मियां हुज़ूर गुलाब नगर तशरीफ़ ले गए, पीरो मुरशिद की आमद पर अहले मोहल्ला ने आपका ज़ोरदार इस्तकबाल किया और फातिहा कराई और इसके बाद पूरे मोहल्ले व दूर दराज़ के हज़ारों अकीदतमंदों के लिए लंगर शुरू कर दिया गया, लंगर का एहतिमाम शाह सकलैन एकेडमी (यूनिट गुलाबनगर) की जानिब से बड़े पैमाने पर किया गया, पूरी रात लंगर जारी रहा।  तकरीरी प्रोग्राम की शुरुआत

शाह शराफत अली शाह मियां के 55 वें उर्स ए शराफ़ती का पोस्टर जारी,28 सितंबर 2022 को परचम कुशाई से होगा उर्स का आग़ाज़|

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बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए बरेली से नाजिश अली की रिपोर्ट की रिपोर्ट,  आठ अक्टूबर बरोज हफ्ता सुबह 11:00 बजे पीर ओ मुर्शिद शाह मोहम्मद सकलैन मियां हुजूर कुल शरीफ की रस्म अदा करेंगे| बरेली,आज दिनांक 25 सितंबर 2022 दिन इतवार दोपहर 3:00 बजे दरगाह शाह शराफ़त अली मियां के मेहमान खाने में "55 वें उर्स ए शराफ़ती" के संबंध में एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की गई। प्रेस कांफ्रेंस हज़रत मुंतखब मियां साहब की अध्यक्षता में हुई। उर्स की जानकारी देते हुए मुनतख़ब मियां ने बताया कि इस साल 55 वां उर्स ए शराफ़ती मनाया जायेगा, जिसका आग़ाज़ 28 सितंबर को परचम कुशाई से होगा, इस साल बहुत बड़ी तादाद में देश-विदेश के ज़ायरीन उर्स में शिरकत करने आ रहे हैं, उन्होंने कहा 55 वां उर्स ए शराफ़ती एक तारीखी उर्स होगा, क्योंकि पिछले दो सालों से कोविड व लॉकडाउन की वजह से उर्स सरकारी गाइड लाइन के तहत सादगी से मनाया गया था, इसलिए इस साल उर्स में ज़ायरीन का एक सैलाब उमड़ने की उम्मीद है। मीडिया प्रभारी हमज़ा सकलैनी ने बताया 28 सितंबर बरोज़ बुध को उर्स की परचम कुशाई होगी जिसकी तैयारियां पूरी कर ली गईं हैं और उर्स दिना

आला हजरत फ़ाज़िल ए बरेलवी के 104 वें उर्स ए रज़वी में देश विदेश से शिरकत करने बरेली पहुंचे लाखों अकीदतमंदों ने अपने मोहसिन को खिराज़ पेश किया।

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बरेली से मुस्तकीम मंसूरी की रिपोर्ट,  मुसलमानों से अपने बच्चे बच्चियों पर तालीम देने व उन पर खास नज़र रखने की कि गयी अपील। उर्स ए रजवी के आखिरी दिन आज 2.38 पर कुल शरीफ की रस्म अदा की गई।    बरेली,आज 104 वे उर्से रज़वी के आखिरी दिन  आला हज़रत फ़ाज़िले बरेलवी के कुल शरीफ की रस्म लाखों के मज़मे में अदा की गई। इस मौके पर सज्जादानशीन समेत तमाम उलेमा ने दुनियाभर के मुसलमानों के नाम खास पैगाम जारी किया गया। कुल शरीफ के बाद तीन रोज़ा उर्स का समापन हो गया। कुल के बाद इस्लामियां मैदान में सज्जादानशीन मुफ़्ती अहसन मियां ने नमाज़ ए जुमा अदा कराया। इससे पहले मुल्क-ए-हिंदुस्तान समेत दुनियाभर में अमन ओ सुकून व खुशहाली की ख़ुसूसी दुआ की। मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने जानकारी देते हुए बताया कि आज की महफ़िल का आगाज़ दरगाह प्रमुख हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खान(सुब्हानी मियां) की सरपरस्ती,सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रज़ा क़ादरी(अहसन मियां) की सदारत व सय्यद आसिफ मियां और उर्स प्रभारी राशिद अली खान की देखरेख में हुआ। कारी अलीम रज़ा (साउथ अफ्रीका) ने कुरान की तिलावत की। फिर उलेमा की तक़रीर का सिलसिला शुरू हुआ। मुफ़्ती गुलफ़ाम रामपु

उर्स ग्राउंड में मुफ्ती ए आज़म चैरिटेबल सोसाइटी की जानिब से फ्री हेल्थ क्लिनिक शुरू

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बरेली से मुस्तकीम मंसूरी की रिपोर्ट रजवी दारुल उलूम मजहर ए इस्लाम में लंगर और ठहरने के किए गए इंतजाम । आई एम सी प्रमुख ने किया आगाज़  बरेली, नबीरा ए आला हज़रत मौलाना तौकीर रज़ा खान फाउंडर मुफ्ती ए आज़म हेल्थ चैरिटेबल सोसाइटी की जानिब से उर्स ग्राउंड में फ्री हेल्थ कैंप लगाया गया है जिस का आगाज़ हज़रत मौलाना तौकीर रज़ा खान ने किया इस कैंप में शहर के मशहूर डॉक्टर अपनी खिदमात अंजाम देंगे जिनमें डॉक्टर अयूब अंसारी,डॉक्टर तारिख अख्तर डॉक्टर आफताब आलम,डॉक्टर लईक अहमद अंसारी,डॉक्टर तसव्वर हुसैन,डॉक्टर जावेद खान के साथ मुफ्ती ए आज़म चैरिटेबल क्लिनिक के सभी डॉक्टर मौजूद रहेंगे। इस कैंप के साथ साथ सिटी स्टेशन के सामने जारी क्लिनिक में भी मरीजों की खिदमात जारी रहेगी। इस कैंप के लिए आई एम सी की जानिब से मरीजों की खिदमात के लिए एक  कमेटी का गठन किया गया जिसमे डॉक्टर जावेद कुरैशी,अफजाल बेग,मुहम्मद अतहर,मुहम्मद रज़ा,रईस रज़ा,डॉक्टर नफीस खान,नदीम खान,मुनीर इदरीसी, शाने सिद्दीकी,शामिल रहेंगे

हजरत हामिद मियां उर्फ ​​मामू मियां जी के कुल शरीफ संपन्न

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 अनीता देवी की रिपोर्ट   हजरत हामिद मियां उर्फ ​​मामू मियां जी का कुल शरीफ बड़ी अकीदत के साथ मनाया गया। उर्स में आए अकीदत मंथ जाए जिन्होंने  हजरत हामिद मियां उर्फ मामू मियां की जिंदगी  से सबक हासिल करने  और अल्लाह और रसूल के बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लिया । उर्स में मौजूद समाजवादी पार्टी बहेडी नगर पालिका परिषद के संभावित अध्यक्ष प्रत्यशी आरिफ एडवोकेट ... दुआ करते हुए। सज्जादा नशीन हाजी नवाब मियां सब, साथ मे फारुख सेठ कुरैशी, फारुख सैफी, इफ्तिखार खान एडवोकेट, फरीद अंसारी, फरमान कुरैशी, कबीर अहमद मंसूरी, आदि लोग मौजूद रहे।

वन्य जीवों और पेड़ों के लिए अपनी जान पर खेलता बिश्नोई समाज

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  राजस्थान के बिश्नोई समाज की महिलाएं हिरण के बच्चों को बिल्कुल मां की तरह पालती है, यहां तक की उन्हें अपना दूध भी पिलाती है। बिश्नोई समाज ने पर्यावरण संरक्षण की स्मृतियों पर एक अमिट छाप छोड़ी है और लोगों के मानस पर दीर्घकालिक प्रभाव डाला है। ) -सत्यवान 'सौरभ' बिश्नोई आंदोलन पर्यावरण संरक्षण, वन्यजीव संरक्षण और हरित जीवन के पहले संगठित समर्थकों में से एक है। बिश्नोइयों को भारत का पहला पर्यावरणविद माना जाता है। ये जन्मजात प्रकृति प्रेमी होते हैं। पर्यावरण आंदोलनों के इतिहास में, यह वह आंदोलन था जिसने पहली बार पेड़ों को अपनी सुरक्षा के लिए गले लगाने और गले लगाने की रणनीति का इस्तेमाल किया। बिश्नोई समाज के लिए हिरण का मतलब भगवान है। बिश्नोई समाज के लिए हिरण भगवान श्रीकृष्ण के अवतार की तरह हैं वो उनको पूजते हैं। साथ ही बिश्नोई समाज की महिलाएं हिरण के बच्चों को अपने बच्चों की तरह स्तनपान करवाती हैं। इसी तरह बिश्नोई समाज पेड़ों के लिए प्रतिबद्ध रहता है। वो कहते हैं हम पेड़ और जीव-जन्तुओं के लिए जान तक दे सकते हैं। मां हमेशा अपने बच्चों का ख्याल रखती है और उनकी हर जरूरतों को पूरा करने

पंडितों ने ऐलान किया के ये बादशाह औरंगजेब आलमगीर के इन्साफ की खुशी में हमारी तरफ से इनाम है, और सेनापति को जो सजा दी गई, वो इंसाफ एक सोने की तख़्त पर लिखा गया था| जो आज भी धनेडा की मस्जिद में मौजूद है|

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धनेड़ा की मस्जिद : ओरंगजेब की न्यायप्रियता का यादगार स्तम्भ औरंगज़ेब काशी बनारस की एक ऐतिहासिक मस्जिद (धनेडा की मस्जिद) यह एक ऐसा इतिहास है जिसे पन्नो से तो हटा दिया गया है लेकिन निष्पक्ष इन्सान और हक़ परस्त लोगों के दिलो से (चाहे वो किसी भी कौम का इन्सान हो) मिटाया नहीं जा सकता, और क़यामत तक मिटाया नहीं जा सकेगा…।औरंगजेब आलमगीर की हुकूमत में काशी बनारस में एक पंडित की लड़की थी जिसका नाम शकुंतला था, उस लड़की को एक मुसलमान जाहिल सेनापति ने अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा, और उसके बाप से कहा के तेरी बेटी को डोली में सजा कर मेरे महल पे 7 दिन में भेज देना…. पंडित ने यह बात अपनी बेटी से कही, उनके पास कोई रास्ता नहीं था और पंडित से बेटी ने कहा के 1 महीने का वक़्त ले लो कोई भी रास्ता निकल जायेगा…। पंडित ने सेनापति से जाकर कहा कि, “मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं के मैं 7 दिन में सजाकर लड़की को भेज सकूँ, मुझे महीने का वक़्त दो.” सेनापति ने कहा “ठीक है! ठीक महीने के बाद भेज देना” पंडित ने अपनी लड़की से जाकर कहा “वक़्त मिल गया है अब?”लड़की ने मुग़ल सहजादे का लिबास पहना और अपनी सवारी को लेकर दिल्ली की तर

औरंगजेब धर्म विशेष विरोधी था तो मंदिरों को बनाने के जमीन क्यों देता था? बी एन पांडे का यह लेख औरंगजेब के बारे में आपकी सारी भ्रांतियों को दूर कर देगा

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 लेखक बीएन पांडे  औरंगजेब धर्म विशेष विरोधी था तो मंदिरों को बनाने के जमीन क्यों देता था? सोचिए यदि एक बादशाह किसी धर्म विशेष का विरोधी हो और उसके मंदिरों को तोड़ता फिरता हो, तो वह उसी धर्म के तमाम मंदिरों को बनाने के लिए ज़मीन और पूजा भोग के लिए 8 गांव और 330 बीघा कृषि योग्य जमीन क्यों देगा?... 1 : इलाहाबाद में गंगा नदी के किनारे बसे नाग वासुकी मंदिर औरंगजेब की दी हुई ज़मीन पर बना हुआ है.. (प्रोफसर विशेश्वर नाथ पांडेय द्वारा सत्यापित)...  2 : उज्जैन का महाकालेश्वर का मंदिर औरंगजेब की दी हुई ज़मीन पर बना हुआ है... 3 : गुवाहाटी का कामाख्या देवी मंदिर औरंगजेब की दी हुई ज़मीन पर बना हुआ है...  4 : उत्तर प्रदेश के मथुरा में श्रीकृष्ण मंदिर भी औरंगजेब की दी हुई ज़मीन पर बना हुआ है... 5 : चित्रकूट का बालाजी मंदिर तो औरंगजेब ने अपने सेनापति गैरत खान की देखरेख में बनवाया और इस मंदिर के महंत बालक दास के नाम आदेश अपने 35वें शासन के 19वें रमज़ान के दिन जारी किया जिसे राजकीय रजिस्टर में 25वें रमज़ान को दाखिल किया गया... औरंगज़ेब के विरुद्ध हिन्दू विरोधी होने के झूठे आरोप को झुठलाते ऐतिहासिक तथ्य...

55वां छमाही उर्से शाह शराफ़त अली मियां रह. हर साल की तरह इस साल भी 9,10,11 अप्रैल को मनाया जा रहा है, हमजा सकलैनी

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बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए बरेली से मुस्तकीम मंसूरी की रिपोर्ट बरेली, दरगाह शाह शराफत अली मियां शाहबाद बरेली से मीडिया प्रभारी हमजा सकलैनी ने बताय की हज़रत किब्ला शाह मौलाना शराफत अली मियां रहमतुल्लाह अलैह का शिशमाही(छमाही) उर्स पाक  रमज़ान उल मुबारक की 9,10,11 तारीखों में हर साल मनाया जाता है। इस साल 55 वां उर्स होने जा रहा है, उर्स का आगाज़ आज दिनांक 11 अप्रैल बरोज़ पीर से हो गया जो 12 व 13 अप्रैल तक जारी रहेगा। तीन रोज़ा उर्स पीरो मुरशिद हज़रत शाह मुहम्मद सक़लैन मियां हुज़ूर की सरपरस्ती में मनाया जायेगा। उर्स के तीनों दिन खानकाह सक़लैनिया शराफ़तिया पर लंगर जारी रहेगा और रोज़ा अफतार कराया जायेगा। उर्स में शिरकत करने के लिए दूर दराज़ के दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार, बंगाल, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ व उत्तर प्रदेश आदि राज्यों के ज़ायरीन उर्स में शामिल होंगे उर्स के प्रोग्रामों का तीनों दिन लाइव टेलीकास्ट भी किया जाएगा *13 अप्रैल बरोज़ बुध को बाद नमाज़ असर शाम 5:30 बजे  कुल शरीफ़ की रस्म अदा होगी*

रोज़े के दौरान हमारे जिस्म का रद्देअमल क्या होता है? इस बारे में कुछ दिलचस्प मालूमात, रोज़ा ज़रूरी क्यों?

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  बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए मुस्तकीम मंसूरी की कलम से पहले दो रोज़े : पहले दिन से ही ब्लड शुगर लेवल गिरता है यानी खून से चीनी के खतरनाक अश्राथ का दर्जा कम हो जाता है | दिल की धड़कन सुस्त हो जाती है और खून का दबाव कम हो जाता है| नशे जमा शुदा ग्लाइकोजन को आजाद कर देती हैं| जिसकी वजह से जिस्मानी कमजोरी का एहसास उजागर होने लगता है| जहरीले माद्दो की सफाई के पहले  मरहले के नतीजे में- सर दर्द  सर का चकराना, मुंह का बदबूदार होना और ज़वान पर मवाद का जामा होता है| तीसरे से सातवें रोज़े तक : जिस्म की चर्बी टूट फूट का शिकार होती है और पहले मरहले में ग्लूकोज में बदल जाती है| कुछ लोगों में चमड़ी मुलायम और चिकना हो जाती है| और जिस्म भूख का आदि होना शुरू हो जाता है| और इस तरह साल भर मसरूफ़ रहने वाला हाज़मा सिस्टम छुट्टी मनाता है| खून के सफेद जरसूमे (White Blood Cells) और इम्युनिटी मैं बढ़ोतरी शुरु हो जाती है| हो सकता है रोजगार के फेफड़ों में मामूली तकलीफ हो इसलिए के जहरीले मद्दो की सफाई का काम शुरू हो चुका है| आंतों और कोलोन की मरम्मत का काम शुरू हो जाता है| आंतों की दीवारों पर जमा मवाद ढीला होना

रोज़ा सब्र, बर्दाश्त, क़ुर्बानी, हमदर्दी और आपसी मुहब्बत की सिफ़ात को परवान चढ़ाता है’

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*(इस मुबारक महीने का इस्तक़बाल कीजिए और इस से भरपूर फ़ायदा उठाइये)* *कलीमुल हफ़ीज़* *रमज़ान का मुबारक महीना शुरु होने वाला है। इस महीने की फ़ज़ीलतें क़ुरआन और हदीसों में बेशुमार हैं। लेकिन इसकी सबसे बड़ी फ़ज़ीलत ये है कि इस महीने में क़ुरआने-पाक नाज़िल हुआ। यह महीना हमें रूहानी और अख़लाकी बुलंदी पर पहुँचाने के लिये है। इस महीने में हमदर्दी और मुहब्बत के जज़बात और अहसासात पैदा होते हैं। ये महीना हमें एक बड़े मक़सद के लिए तैयार करता है। लेकिन अफ़सोस यह है कि यह पवित्र महीना हर साल आता है और चला जाता है। हमारी ज़िन्दगी में कोई बदलाव नहीं आता। हमारी अख़लाक़ी हालत में और ज़्यादा गिरावट आ जाती है। हमारा समाजी और सियासी पिछड़ापन और बढ़ जाता है।* *इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि हम शऊरी तौर पर इससे फ़ायदा नहीं उठाते। इस्लाम की दूसरी इबादतों के साथ हमने जो हाल किया है वही हाल हमने रमज़ान के साथ भी किया है। जो रोज़ा नहीं रखते उनका तो ज़िक्र ही क्या करना लेकिन जो लोग रोज़ा रखते हैं उनको तो कम से कम रोज़े के मक़ासिद पर नज़र रखनी चाहिए ताकि वो जिस भूख-प्यास और तकलीफ़ को बर्दाश्त करते हैं उसका फायदा उन्हें पहुंचे। रमज़ान का इस्तक़बाल कीजि

सारे मुसलमानों को चाहिए कि अपनी जिंदगी कुरान और हदीस के मुताबिक गुज़ारें"

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मदरसा फ़ैज़ उल उलूम मिर्ज़ापुर पोल में दस्तारबंदी व पुरस्कार वितरण समारोह का पैग़ाम।  उम्मत के नौजवान- बच्चों को दीनी व आधुनिक शिक्षा से सुसज्जित करना समय की मुख्य आवश्यकता : मौलाना ज़हूर साहब मिर्ज़ापुर पोल ( सहारनपुर) /नई दिल्ली (अनवार अहमद नूर)  मदरसा फ़ैज़ उल उलूम मिर्ज़ापुर पोल में एक दस्तारबंदी, फज़ीलत व पुरस्कार वितरण के मौके पर एक अज़ीम ओ शान दीनी समारोह का आयोजन किया गया जिसमें मदरसे के विभिन्न विभागों के कुल 138 विधार्थीयों को दस्तार फज़ीलत बांधकर पुरस्कार व ट्राफी वगैरह से हौसला अफ़ज़ाई की गई। समारोह का शुभारंभ क़ुरआने करीम की तिलावत और नात नबवी से किया गया। मौलाना तय्यब क़ासमी और मौलाना अब्दुल खालिक मज़ाहिरी ने संयुक्त रूप से समारोह का संचालन करते हुए जलसे के सभी मेहमानों का परिचय कराया। अध्यक्षता हज़रत मौलाना मोहम्मद सुफियान साहब मोहतमिम दारुल उलूम वक्फ देवबंद ने की। समारोह में बेंगलुरु, दिल्ली, पंजाब, उत्तराखंड, दारुल उलूम व मज़ाहिर उलूम सहित आसपास के उलेमा मुहददीसीन  और इस्लामी विद्वानों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। 29 विद्यार्थियों को क़ुरआने करीम की तकमील हज़रत मौलाना

मुहम्मद उमर गौतम और मुफ्ती काजी जहांगीर आलम कासमी की गिरफ्तारी को पांच महीने से अधिक समय बीत चुका है,

 दिल्ली: यूपी के धर्मांतरण विरोधी धर्म कानून के तहत मुहम्मद उमर गौतम और मुफ्ती काजी जहांगीर आलम कासमी की गिरफ्तारी को पांच महीने से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन अभी तक उनकी जमानत के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है।  हालांकि, उनके वकील ने इसे एक "रणनीतिक कदम" बताते हुए इस कदम को सही ठहराया, जो उमर गौतम की बेटी की चिंताओं को पुष्ट करता है, जिन्होंने पहले मुस्लिम संगठनों की "ठंडी प्रतिक्रिया" पर सवाल उठाया था। जमीयत उलेमा-ए-हिंद का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों, जो उन्हें कानूनी सहायता प्रदान कर रहे हैं, ने जमानत आवेदन को स्थानांतरित नहीं करने के निर्णय को बरकरार रखा।  एडवोकेट एमआर शमशाद ने तर्क दिया, "यह कानूनी रणनीति का हिस्सा है।  सार्वजनिक रूप से कारणों का खुलासा करना उचित नहीं है।" फातिमा तकदीस गौतम ने हाल ही में मुस्लिम संगठनों द्वारा आवश्यक सहयोग की कमी पर नाराजगी व्यक्त की है।  "किसी ने हमारी परवाह नहीं की, अब हम अकेले रह गए हैं," उन्होंने कहा। "हमारा अधिकांश समय कानूनी मुद्दों के बारे में बहस करने, वकीलों का अनुसरण करने आदि में बर्बाद ह

सत्यशोधक समाज के संस्थापक ज्योतिबा फूले (1827–1890)* –28 नवम्बर, 1827 (निर्वाण दिवस विशेष)

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महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में शूद्र वर्ण की 'माली' जाति में हुआ था। जिन्हें ‘मनुस्मृति’ के विधान के हिसाब से न शिक्षा प्राप्त करने की आजादी थी और न अपनी मर्जी का पेशा चुनने की। लेकिन वक्त बदल चुका था। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में ‘दासता उन्मूलन अधिनियम-1833’ और मैकाले द्वारा प्रस्तुत ‘मिनिट्स ऑन एजुकेशन’ (1835) लागू किये जा चुके थे। यह मनुस्मृति-आधारित सामाजिक व्यवस्था को बदलने वाली एक महान पहल थी जिसमें जॉन स्टुअर्ट मिल की उल्लेखनीय भूमिका रही।  1848 में मात्र 21 वर्ष की अवस्था में उन्होंने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया। वर्ष 1840 में उनका विवाह मात्र 9 वर्ष की सावित्रीबाई फुले से हुआ। वे पढ़ना चाहती थीं। परंतु उन दिनों लड़कियों को पढ़ाने का चलन नहीं था। शिक्षा के प्रति पत्नी की ललक देख जोतीराव फुले ने उन्हें पढ़ाना शुरू कर दिया। लोगों ने उनका विरोध किया। परंतु फुले अड़े रहे। तीन वर्षों में पति-पत्नी ने 18 स्कूलों की स्थापना की। उनमें से तीन स्कूल लड़कियों के लिए थे।24 सितंबर, 1873 को पुणे में, सत्य शोधक समाज की स्थापना के मौके पर

संघ शक्ति कलयुगे"

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मनोज शर्मा जन्माष्टमी का पर्व है। कल भगवान कृष्ण का भी यही उपदेश है "संघ शक्ति कलयुगे"  संघ माने संगठन ।कलयुग में संगठन ही शक्ति होगी और मैं भी वही वास करूँगा। मतलब जब जब धर्म की हानि होगी मैं वहां आऊंगा। पर वहां जहां संगठन होगा। चार लोग मिलकर धर्म की रक्षा के लिये संगठित होंगे।  क्योंकि अकेला व्यक्ति सम्पत्ति तो एकत्र कर सकता है। धन जोड़ सकता है मकान पे मकान बना सकता है पर वो न तो अपनी रक्षा कर सकता है और न ही समाज की और न ही अपने जोड़े हुए धन की। अतः कलयुग में मुझे पाना है अधर्म से अपने को बचाना है क्योंकि कलयुग में अधर्मी लोग संगठित होंगे तरह तरह के पाप कार्य करेंगे क्रूरता पूर्ण व्यवहार करेंगे। माता बहनों की लाज बचाने कोई भी आगे नही आएगा क्योंकि वो ज्यादा संख्या में होने के बाद भी संगठन में नही होंगे और अधर्मी लोग कम संख्या में होने के बाद भी संगठित होंगे। वो आपका वो सब छीन लेंगे जो आपने एकत्र किया होगा। कलयुग में लोग पैसे को ही अहमियत दे रहे होंगे। चाहे वो किसी तरह भी कमाया गया हो। वेश्या दलाल और ग्राहक को लोग इज्जत दे रहे होंगे क्योंकि वो ज्यादा संख्या में संगठित होंगे।