रोज़े के दौरान हमारे जिस्म का रद्देअमल क्या होता है? इस बारे में कुछ दिलचस्प मालूमात, रोज़ा ज़रूरी क्यों?

 

बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए मुस्तकीम मंसूरी की कलम से

पहले दो रोज़े :

पहले दिन से ही ब्लड शुगर लेवल गिरता है यानी खून से चीनी के खतरनाक अश्राथ का दर्जा कम हो जाता है | दिल की धड़कन सुस्त हो जाती है और खून का दबाव कम हो जाता है| नशे जमा शुदा ग्लाइकोजन को आजाद कर देती हैं| जिसकी वजह से जिस्मानी कमजोरी का एहसास उजागर होने लगता है| जहरीले माद्दो की सफाई के पहले  मरहले के नतीजे में- सर दर्द  सर का चकराना, मुंह का बदबूदार होना और ज़वान पर मवाद का जामा होता है|

तीसरे से सातवें रोज़े तक :

जिस्म की चर्बी टूट फूट का शिकार होती है और पहले मरहले में ग्लूकोज में बदल जाती है| कुछ लोगों में चमड़ी मुलायम और चिकना हो जाती है| और जिस्म भूख का आदि होना शुरू हो जाता है| और इस तरह साल भर मसरूफ़ रहने वाला हाज़मा सिस्टम छुट्टी मनाता है| खून के सफेद जरसूमे (White Blood Cells) और इम्युनिटी मैं बढ़ोतरी शुरु हो जाती है| हो सकता है रोजगार के फेफड़ों में मामूली तकलीफ हो इसलिए के जहरीले मद्दो की सफाई का काम शुरू हो चुका है| आंतों और कोलोन की मरम्मत का काम शुरू हो जाता है| आंतों की दीवारों पर जमा मवाद ढीला होना शुरू हो जाता है|

आठवें से पंद्रहवें रोज़े तक :

आप पहले से चुस्त महसूस करते हैं | दिमाग की तौर पर भी चुस्त  और हल्का महसूस करते हैं| हो सकता है कोई पुरानी चोट या ज़ख्म महसूस होना शुरू हो जाए | इसलिए कि आप का जिस्म अपने बचाव के लिए पहले से ज्यादा एक्टिव और मज़बूत हो चुका होता है | जिस अपने मुर्दा सेल्स को खाना शुरू कर देता है जिसको आमतौर से केमोथेरपी से मारने की कोशिश की जाती है| इसी वजह से सेल्स में पुरानी बीमारियों और दर्द का अहसास बढ़ जाता है| नाड़ियों और टांगों में  तनाव इसी अमल का कुदरती नतीजा होता है| जो इम्यूनिटी के जारी अमल की निशानी है| रोजाना नमक के गरारे नसों की अकड़न का बेहतरीन इलाज है|

सोलहवें से तीसवें रोज़े तक :

जिस्म पूरी तरह भूख और प्यास को बर्दाश्त करने का आदी हो चुका होता है| आप अपने आप को चुस्त, चाक व चौबंद महसूस करते हैं |

इन दिनों आपकी जु़बान बिल्कुल साफ और सुर्ख हो जाती है| सांस मैं भी ताजगी आ जाती है | जिस्म के सारे जहरीले माद्दों का खा़त्मा हो जाता है| हाजमा के सिस्टम की मरम्मत हो चुकी होती है, जिस्म से फालतू चर्बी और खराब माद्दे निकल चुके होते हैं| बदन पुरी तरह ताकत के साथ  अपने फराइज अदा करना शुरू कर देता है| बीस रोजों के बाद दिमाग़ और याददाश्त तेज हो जाते हैं | तवज्जो और सोच को मरकूज़ करने की  सलाहियत बढ़ जाती है| बेशक बदन और रूह तीसरे अशरे की बरकात को भरपूर अंदाज से अदा करने के काबिल हो जाते हैं| ये तो दुनिया का फायदा रहा जिसे बेशक हमारे खा़लिक ने हमारी ही भलाई के लिए हम पर फर्ज किया है| मगर देखिए उसका अंदाज है कारनामा की उसके एहकाम मानने से  दुनिया के साथ-साथ हमारी आखि़रत भी सवांरने का बेहतरीन बंदोबस्त कर दिया गया है|

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