एक देश एक चुनाँव क्या संभव है, आइए एक नजर डालते है।

 रिपोर्ट-मुस्तकीम मंसूरी


लखनऊ, इस समय देश में एक आम चर्चा है की एक देश एक चुनाँव होने चाहिए । आइए हम सब मिल कर इस पर विश्लेषण करते है । जब देश आजाद हुआ तब इसको संचालित करने के लिए एक आइन/ संविधान की जरूत थी उस समय विश्वरत्न बाबा साहब भीम रॉव अम्बेडकर के नेतृत्व वाली कमेटी ने देश को एक मुकम्मल संविधान दिया जिससे देश को चलाया जा सके और देश को तरक्की दिलाई जा सके तथा समाज के उन्नत के लिए भी बहुत कुछ किया जा सके जैसे - सामाजिक उन्नति, आर्थिक अन्नति, शिक्षा से वंचितो को शिक्षा का अधिकार, धार्मिक स्वतन्त्रता, जातीय कारणो से पिछे रह गये लोगो को प्रतिनिधित्व का अधिकार, नौकरशाही में आरक्षण का अधिकार आदि बहुसंख्यक प्रावधान किये गये है । जब देश आजाद हुआ तब देश के लोकतान्त्रिक व्यवस्था को सही स्वरूप देने के लिए बहुत बड़ी -बडी चुनौतिया थी । उस समय अलग अलग रियासते अलग - अलग राजवड़े हुआ करते थे। संविधान के बदौलत संघीय ढ़ाचा दे कर अलग अलग चुनौतियो को स्वीकार कर एक बेहतर व्यवस्था देने में उस समय के लीडरो ने अपना सर्वस निवाछावर कर दिया । लेकिन वर्तमान सरकार का अपने राजनीतिक महत्वाकांछा के लिए किस किस तरह का मदारीपन है किसी से छुपा नही है। जब की होना यह चाहिए था कि बदलते परिवेश में सरकार को यह चाहिए की एक देश एक शिक्षा प्रणाली व एक देश एक स्वास्थ व्यवस्था करना चाहिए था। अब बात चुनाँव की ही कर लेते है की एक देश एक चुनाँव मान लिजिए पूरे देश में लोक सभा व विधान सभा एक साथ चुनाँव कराकर केन्द्र में भारत सरकार के रूप में सरकार बन जाये और राज्यो मे राज्यसकार के रूप में सरकार बन जाये तो क्या गारन्टी है की इस गठबन्ध के दौर में कोई सरकार स्थिर रह पायेगी अगर किसी राज्य में किसी सहयोगी दल ने अपना सिक्का न जम पाने के कारण सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो सरकार अल्पमत मे आ कर विश्वास खो देगी और वह सरकार गिर जायेगी । इस स्तिथि में क्या जब तक पूरे देश में एक देश एक चुनाँव का कानून होगा उस राज्य में आखिर कैसे सरकार चलेगी यही बात देश के केन्द्र सरकार पर भी लागू होती है। इस गठबन्धन के दौर में किसी अतिमहवाकांक्षी सहयोगी दल से सर्मथन वापस लेने पर क्या सरकार अल्पमत में होने के कारण गिर नही जायेगी । तो क्या इस स्तिथि मे अल्पमत सरकार  आखिर सरकार कैसे चलेगी । फिर मध्यावधि चुनाँव नही होगे । यह इस लिए उदाहरण दिये जा रहे है की पिछले वर्षो में भी सरकारें बनी और कार्यकाल पूरे होने से पूर्व ही गिर गयी और वहाँ मध्यावधि चुनाँव कराने पड़ते है। और यह भी की एक देश एक चुनाँव के दायरे में पंचायती चुनांव, कोआपरेटिव चुनाव, राज्यसभा के चुनाँव, विधानपरिषद के चुनाँव,राष्ट्रपति का चुनांव, एवम उप राष्ट्रपति का चुनांव आदि चुनाँव दायरे में होगें की नही यह भी स्पष्ट होना चाहिए । 

जब कि लोकतंत्र में यह मायने नही रखता की एक देश एक चुनाँव हो या एक देश कई चुनाँव हों मायने यह रहखता है की लोकतन्त्र की मुल भावना क्या है मुल भावना यह है की देश का कोई भी नागरिक चुनांव लड़ कर जनता का प्रतिनिधित्व करते हुए जनता के प्रति जाबाब देही कर पाता है या नही । जब की वास्तविक में कुछ और दिखने को मिल रहा है। अब तो यह स्पष्ट है जिसको नकारा नही जा सकता है सासंद, विधायक या कोई साधारण सा भी चुनाँव निर्धन व्यक्ति लड़ सकता है क्या अगर वास्तविक में ऐसा है तो लोकतन्त्र की मुल भावना कहाँ खड़ी है इसका अन्दाजा हम सब लगा सकते है।


उपरोक्त विचार हमारे व्यक्तिगत है बाकी आप सभी से संवाद, सौहार्द व सदभावना के साथ फिर विचार विमर्श होती रहेगी

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बहेड़ी विधायक व प्रदेश महासचिव अता उर रहमान के नेतृत्व में बहेड़ी विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ता समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिले

*उत्तर प्रदेश पंचायती राज ग्रामीण सफाई कर्मचारी संघ का स्वच्छता ही सेवा कार्यक्रम हुआ*

बहेड़ी: स्टेट बैंक के गार्ड ने युवक के सिर पर किया हमला, गंभीर रूप से घायल