मदरसे बंदी, शिक्षा की आड़ में व्यवस्था या व्यवस्था की आड़ में पक्षपात? जो प्रशासन की संवेदनशीलता नीति नियत और निष्पक्षता पर भी गंभीर प्रश्न खड़े कर रही है।

लखनऊ, आल इंडिया मुस्लिम मजलिस के राष्ट्रीय महासचिव मुस्तकीम मंसूरी ने कहा कि उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले में 11 दिनों के भीतर 105 गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों को बंद करने की कार्रवाई ने न केवल शिक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर किया है, बल्कि प्रशासन की संवेदनशीलता, नीति-नियत और निष्पक्षता पर भी गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं। यह मामला केवल "अवैध निर्माण" या "बिना मान्यता" तक सीमित नहीं है—इसके भीतर सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक परतें भी मौजूद हैं, जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता।


मुस्तकीम मंसूरी ने कहा कि प्रशासन का पक्ष है कि यह कार्रवाई केवल कानूनी मानकों के तहत की गई, ख़ासकर नेपाल सीमा से सटे इलाकों में बिना पंजीकरण और मान्यता के चल रहे मदरसों पर। इनमें भूमि अतिक्रमण, पाठ्यक्रम की अनियमितता और सुरक्षा संबंधी चिंताओं का हवाला दिया गया। शासन की सतर्कता और पारदर्शिता अपेक्षित है, लेकिन क्या यह कार्रवाई निष्पक्ष, चरणबद्ध और मानवीय दृष्टिकोण से की गई?

मुस्तकीम मंसूरी ने कहा कि अब तक ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं सामने आया है कि इन मदरसों का उपयोग देशविरोधी गतिविधियों में हुआ हो। और यदि किसी एक संस्थान या व्यक्ति पर संदेह हो भी, तो क्या उसका समाधान पूरे समुदाय या शिक्षा प्रणाली को दंडित कर देना है? क्या किसी विश्वविद्यालय में एक छात्र के अपराध के लिए पूरी यूनिवर्सिटी को बंद किया जाता है? मुस्तकीम मंसूरी ने कहा कि हमारे लोकतंत्र में कई संगठनों से जुड़े व्यक्तियों पर गंभीर आरोप लगते रहे हैं—किन्तु जब कार्रवाई केवल उन्हीं संगठनों पर होती है जो किसी एक समुदाय से जुड़े हों, तो सवाल उठना स्वाभाविक है। जैसे कि हाल के वर्षों में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) पर की गई व्यापक कार्रवाई—जिसे कई लोगों ने पक्षपातपूर्ण बताया। क्या इसी पैमाने से बाकी संगठनों को भी तौला जाता है?कई मदरसा संचालकों ने आरोप लगाया कि कार्रवाई से पहले कोई नोटिस नहीं दिया गया और जिन संस्थानों में NCERT पाठ्यक्रम के अनुरूप शिक्षा दी जा रही थी, वे भी निशाने पर आ गए। अगर किसी संस्थान की वैधता में खामी है, तो क्या उसे सुधार का अवसर नहीं मिलना चाहिए? सीधे सील करना या बुलडोजर चलाना, क्या यही एकमात्र विकल्प रह गया है?

मुस्तकीम मंसूरी ने कहा कि इस तरह की कार्रवाइयों से यह आशंका गहराती है कि कहीं शासन की प्राथमिकता मुस्लिम समुदाय के शैक्षिक प्रयासों को प्रोत्साहित करने की जगह, उन्हें सीमित करना तो नहीं है।

इस पृष्ठभूमि में जब भारत-पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव की स्थिति बनी हो और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान भारत में मुसलमानों के साथ कथित व्यवहार को मुद्दा बना रहा हो, तब प्रशासन से अपेक्षा होती है कि वह संयम और विवेक से काम ले। लेकिन दुर्भाग्यवश, मदरसों और मस्जिदों के खिलाफ लगातार हो रही कार्रवाइयाँ यह दर्शाती हैं कि यह शक्ति प्रदर्शन का मामला बन गया है, संवेदनशील प्रशासनिक संतुलन का नहीं।मुस्तकीम मंसूरी ने कहा कि भारत के अधिकतर मुसलमान आपसी सहयोग से छोटे-छोटे मदरसे संचालित करते हैं, जो धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ बुनियादी साक्षरता का कार्य भी करते हैं। ये संस्थान अक्सर गरीब तबकों के बच्चों के लिए एकमात्र आशा होते हैं—जहाँ उन्हें शिक्षा, भोजन और सुरक्षा मिलती है। जब इन्हें बिना विकल्प और संवाद के अचानक बंद कर दिया जाता है, तो उन बच्चों का भविष्य अधर में लटक जाता है। क्या शासन ने उनके लिए कोई वैकल्पिक योजना बनाई?

ऐसी कार्रवाइयाँ महज़ कानूनी नहीं, राजनीतिक प्रतीक बन जाती हैं—जो सत्ता पक्ष के एक विशेष संदेश को दर्शाती हैं। जब बुलडोजर बार-बार एक ही दिशा में चलता है, तो निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं।मुस्तकीम मंसूरी ने कहा कि यह स्थिति धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यदि कोई मदरसा मान्यता के बिना चल रहा है, तो उसे बंद करने से पहले सुधार और वैधता की प्रक्रिया अपनाना लोकतांत्रिक शासन की प्राथमिकता होनी चाहिए। दमन की भाषा नहीं, संवाद और सहयोग की नीति आगे आनी चाहिए।

यदि श्रावस्ती और अन्य जिलों में की गई कार्रवाई वास्तव में प्रशासनिक थी, तो उसमें पारदर्शिता, संवेदनशीलता और नियमानुसार प्रक्रिया का पालन होना चाहिए था। लेकिन जब कार्यवाही प्रतीकात्मक और चयनात्मक लगने लगे, तो यह सामाजिक न्याय और लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर करती है।

मुस्तकीम मंसूरी ने कहा कि आज जब देश को समावेशी और न्यायपूर्ण शिक्षा नीति की सर्वाधिक आवश्यकता है, तब ज़रूरी है कि कोई भी समुदाय—विशेषकर अल्पसंख्यक—भय या उपेक्षा में न जिएं। शिक्षा को राजनीति का शिकार नहीं बनाया जाना चाहिए, बल्कि इसे सामाजिक समावेशन और सशक्तिकरण का साधन बनाना चाहिए।

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