मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री जिसने पिछड़े (पसमांदा) मुसलमानों की बात की और अब जातीय जनगणना का ऐलान- मुस्तकीम मंसूरी
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यह बात साफ है की हिस्सेदारी के मामले में मुसलमानों को जो कुछ मिला वह सब 15% अशराफ ने ले लिया, 85% पिछड़ा मुसलमान हर जगह पीछे रह गया, इसलिए पसमांदा मुसलमानों की हिस्सेदारी पर हमें ग़ौर करना चाहिए, हमारी आने वाली नस्लो का सवाल है।
बरेली, अखिल भारतीय मंसूरी समाज के प्रदेश अध्यक्ष मुस्तकीम मंसूरी ने कहा कि मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री जिसने पिछड़े पसमांदा मुस्लिम समाज की बात की और अब जातीय जनगणना की घोषणा करके पसमांदा मुस्लिम समाज में एक बार फिर विश्वास पैदा किया है। यह बात अलग है कि हम पसंद करें या ना करें, लेकिन इस मुद्दे पर ग़ौर करना चाहिए की लोकसभा चुनाव से पहले हैदराबाद में भाजपा के पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को सलाह दी थी, उन्होंने कहा था कि
मुसलमानों में पिछड़ी (पसमांदा) बिरादरियों की आबादी बहुत ज्यादा है, मुसलमान वैसे तो भाजपा को वोट देता नहीं लेकिन भाजपा कार्यकर्ता स्थानीय पसमांदा बिरादरियों से संपर्क करें, उनकी समस्याएं सुनें, ज़ाहिर था कि ऐसा करने से पिछड़ी पसमांदा बिरादरियां तुरंत भाजपा को वोट देने लगेंगी ऐसा तो होने वाला नहीं था, वो नरेंद्र मोदी को भी पता था। मुस्तकीम मंसूरी ने कहा कि नरेंद्र मोदी के इस बयान से मुसलमानों के कुछ मसीहा कूद पड़े और उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी यह सब मुसलमानों को आपस में लड़ाने के लिए कर रहे हैं, इस बीच लोकसभा चुनाव हुए, कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया, हिंदू समाज में एससी, एसटी, ओबीसी, जातियों के हिस्सेदारी की बात की, लोकसभा में इंडिया एलाइंस को जो सफलता मिली, तब से यह माना गया कि राहुल गांधी की हिस्सेदारी वाली बात ने पिछड़ी हिंदू जातियों को जागरूक किया, जब कुछ दिन पहले हरियाणा के चुनाव हुए तब भाजपा ने भी खूब प्रचार किया के हिस्सेदारी वाली बात करके कांग्रेस हिंदुओं को आपस में लड़ना चाहती है, और मुसलमानों के एक मुश्त वोट लेना चाहती है, और भाजपा का यह सिक्का चल गया और हरियाणा में हारी हुई बाजी भाजपा ने पलट दि, मुस्तकीम मंसूरी ने कहा कि हरियाणा विधानसभा के नतीजे आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी पर निशाना साधा और कहा कि गांधी केवल हिंदू पिछड़ों की बात करते हैं लेकिन मुसलमान पिछड़ों की नहीं, यह दूसरा मौका था जब मोदी ने खुले मंच से पसमांदा पिछड़े मुसलमानों की बात की, जबकि मुसलमान हमेशा भाजपा का विरोध करता आया है, आज भी हम पसंद करें या ना करें हमें यह बात तो माननी पड़ेगी की आजाद हिंदुस्तान में पिछड़ी मुसलमान बिरादरीयों की बात करने वाले मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं, मुस्तकीम मंसूरी ने कहा जो मुसलमान बाहर से आए, जैसे शेख़, सैय्यद, पठान, मुग़ल, वह अपने आप को अशराफ यानी ऊंची जात के मुसलमान समझते हैं, वह अपने पुरखे अरब, तुर्क, अफ़ग़ान से आए ऐसा दावा करते हैं, इनकी आबादी कुल मुस्लिम आबादी में केवल 15% है, लेकिन जो भारत के मूल निवासी थे जैसे पिंजरी, मंसूरी(धुना), अंसारी (जुलाहा), तांबोली, बागवान, छप्परबंद, सलमानी (नाई) कलंदर,ढफ्फाली (मिरासी) भांड,शिकवे, सिकलगार,गव्ली,तेली, जैसी बिरादरियां जिन्होंने इस्लाम अपनाया इनकी कुल आबादी मुस्लिम आबादी में 85% है जिन्हें आजकल पसमांदा भी कहा जाता है, जबकि 50 से ज्यादा पसमांदा बिरादरियों को महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण मिला हुआ है, यह बात साफ है कि हिस्सेदारी के मामले में मुसलमानों को जो कुछ मिला वह सब 15% अशराफ ने ले लिया और 85% पिछड़ा मुसलमान हर जगह पीछे रह गया, इसलिए पसमांदा मुसलमान की हिस्सेदारी पर हमें ग़ौर करना चाहिए हमारी आने वाली नस्लों का सवाल है। मुस्तकीम मंसूरी ने कहा कि हिस्सेदारी के हिसाब से देखा जाए तो 15% अशराफ ने पसमांदा को दबाया हुआ है, बिहार सरकार ने जातिगत सर्वेक्षण के आंकड़े ज़ाहिर किये, उसे पता चला कि बिहार में अशराफ मुसलमान स्वर्ण हिंदुओं से भी अमीर हैं, वहीं दूसरी ओर बिहार के पसमांदा मुसलमान पिछड़े हिंदुओं से भी गरीब हैं, सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में साफ दिखाया की रेलवे की नौकरी में अशराफ 4. 5% और पिछड़ा मुसलमान 0. 4% सरकारी यूनिवर्सिटी की नौकरी में अशराफ 3. 9% और पिछड़ा मुसलमान 1. 4% सरकारी कंपनियां PSU में अशराफ 2. 7% और पिछड़ा मुसलमान 0. 6% है, सरकारी फंडिंग से चलने वाले वक्फ बोर्ड, हज हाउस, माइनॉरिटी यूनिवर्सिटी-कॉलेज में भी अशराफ का ही दबदबा है, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) मैं नौकरी करने वाले कल 1288 प्रोफेसर में 1138 प्रोफेसर हैं, और सिर्फ 62 प्रोफेसर ओबीसी-पिछड़ी बिरादरी के हैं, मिली गॅजेट की एक रिसर्च में पाया गया के भारत में आजादी से आज तक मुस्लिम समाज से 400 सांसद खासकर लोकसभा में चुनकर गए, इसमें से 340 सांसद अशराफ थे, और सिर्फ 60 पिछड़ी ओबीसी बिरादरी से थे,
यह कुछ उदाहरण पेश किये गए हैं।
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