खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा लागू की गई मंडी सूची दोहरी नीति के बारे में उठाया मुद्दा उधोग व्यापार प्रतिनिधि मंडल ने* *माननीय मुख्यमंत्री को सम्बोधित जिलाधिकारी महोदय को सौंपा ज्ञापन*

 *बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए पीलीभीत से शाहिद खान की रिपोर्ट*

खाद्यान्न के पूरे व्यापार पर मंडी शुल्क एक समान करने के संबंध में*

किसानों को इस नीति के सिद्धांत का नही हुआ पूरा लाभ*

उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल द्वारा माननीय मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन के माध्यम से जिलाधिकारी महोदय जी से कहा गया कि फरवरी 2023 में खाद एवं प्रसंस्करण विभाग द्वारा कृषको को मंडी प्रांगण की जगह सीधे राइस एवं फ्लोर मिलों पर अपने उत्पाद के विक्रय की छूट प्रदान कर दी गई। यह किन्हीं मायनों में एक अच्छा कदम माना जा सकता है "परंतु इसके साथ प्रत्येक मिलर (बड़े क्रेता) को उनकी नियमवत खरीद पर मंडी शुल्क एवं विकास सेस में छूट प्रदान करते हुए उपरोक्त विभाग द्वारा मंडी शुल्क के भुगतान की व्यवस्था बनाना और मंडी में चल रहे अधिनियम अनुरूप व्यापार पर मंडी शुल्क एवं विकास सेस की पूर्ववत देयता बनाए रखना कहां तक न्यायोचित है।

यदि यह कृषक हित में लागू किया गया हो तो सर्वथा अनुचित अनुचित एवं अनुपयुक्त साबित हुआ है , क्योंकि प्रत्येक किसान को मंडी के भाव का ही मिलर्स द्वारा भुगतान मिला है और "मंडी शुल्क का लाभ क्रेता मिलर्स को प्राप्त हुआ साथ ही क्रेता को अपने ढंग से व्यापार की खुली छूट उपहार में सरकार ने प्रदान कर दी।" दूसरी तरफ एक बंद कैंपस (मंडी प्रांगण) में मंडी समिति के लाइसेंस धारी के व्यापारियों को मंडी शुल्क विकास सेस का पूरा भुगतान करते हुए मंडी अधिनियम के अनुपालन के साथ-साथ दुकानों का किराया बिजली बिल आदि और अन्य खर्चो को बहन करने की पूर्ववत व्यवस्था माननी पड़ रही है जो की सरासर अन्यायपूर्ण है।


आदरणीय हिंदू हृदय सम्राट को  संबोधित ज्ञापन में कहा गया कि

हम लोग सदैव से वर्तमान "रामराज्य" की परिकल्पना करते आए हैं और जब एक सुदृढ़ स्वाशाशी युग का सूत्रपात हुआ है तो हम ही लोग उपेक्षित कर दिए गए हैं पुनः स्मरण कराते हुए हम निवेदन करते हैं कि "अगर मिलर्स के पास मनी पावर है तो हमारे साथ मेंन पावर सदैव से है फिर भी यदि प्रदेश की किन्हीं मंडियों में मंडी अधिनियम का अनुपालन किन्हीं कारणों बस नहीं हो पा रहा है तो उसे मंडी समितियों द्वारा अक्षरशः सुनिश्चित किया जाना चाहिए। अरबों की रूपयों की लागत से बनी मंडियों का उपयोग व्यापारियों से अधिक कृषक हित में होना चाहिए उन्हें उनके उत्पाद का एक प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य (नीलामी द्वारा) प्रदान करते हुए सही एवं पूरी तोल करवा कर नगद और तुरंत भुगतान (पीलीभीत मंडी की तरह) उन्हें मिलना चाहिए। आज इस असमंजस पूर्ण स्थिति के बावजूद बिहार जैसे राज्य के किसानों के मुकाबले प्रदेश का कृषक काफी अधिक खुशहाल है वहां के धान और गेहूं के व्यवहारिक मूल्य उत्तर प्रदेश के मुकाबले 150 से 250 रूपये तक कम है।

 "क्योंकि वहां पर मंडियां समाप्त कर दी गई है"

व्यापारियों द्वारा आग्रह किया गया कि इस दोहरी व्यवस्था को अतिशीघ्र समाप्त कर पूरे प्रदेश में एक सी पारदर्शी व्यवस्था लागू की जाए और कृषकों को प्रोत्साहित करते हुए उनको अपने उत्पाद विक्रय की नियमवत व्यवस्था ही लागू की जाए।

आज के इस ज्ञापन देने में युवा जिला अध्यक्ष शैली शर्मा, युवा जिला मंत्री शेर सिंह, पूर्व अध्यक्ष सुधीर पाल सिंह, पूर्व अध्यक्ष विजयपाल सिंह आदि व्यापारी मौजूद रहे।

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