जिला कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग की ओर से जिलाधिकारी के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया गया

रिपोट-रफी मंसूरी 

बरेली, काँग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के चेयरमैन शाहनवाज आलम के निर्देश पर जिला काँग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के जिलाध्यक्ष क़मर गनी के नेतृत्व मे बरेली कलेक्ट्रेट पहुँच कर महामहिम राष्ट्रपति को सम्बोधित ज्ञापन  जिलाधिकारी बरेली की  अनुपस्थिति में उपजिलाधिकारी सदर उदित पंवार को सौंपा गया।


इस अवसर पर जिलाध्यक्ष क़मर गनी ने ज्ञापन को पढ़कर सुनाते हुए कहा कि 7 जनवरी 2024 को इंडियन एक्सप्रेस में गुजरात के सोमनाथ और द्वारिकाधीश मन्दिरों में आप के द्वारा अपनी आस्था के सार्वजनिक प्रर्दशन की खबर प्रकाशित हुई है। आपको अखबार ने उद्धरित करते हुए आपकी टिप्पणी छापी है कि

"आप महात्मा गॉंधी के जीवन और मूल्यों से प्रभावित होकर न्यायपालिका के सामने पेश चुनौतियों को समझने और उनके हल ढूंढने के लिए विभिन्न राज्यों में घूम रहे हैं।"



हम आपके इस तर्क से इस बुनियाद पर असहमति जताते हैं इतिहास के अनुसार दक्षिण अफ्रीका से भारत आने पर गांधी जी ने पूरे देश का भ्रमण कर समाज को समझने की कोशिश ज़रूर की थी लेकिन वो सार्वजनिक तौर पर किसी मंदिर में नहीं गए थे, सिवाए मदुरई के मीनाक्षी मंदिर के और वो भी 1946 में जब मंदिर प्रशासन ने दलितों को प्रवेश की अनुमति दे दी थी।

निसंदेह गांधी जी एक आस्थावान हिंदू थे लेकिन उनकी पूजाशैली सर्वधर्म प्रार्थना की हुआ करती थी। इस प्रार्थनाशैली से उन्होने सार्वजनिक जीवन में यह संदेश दिया था कि देश पर सभी आस्थाओं के लोगों का बराबर का हक़ है। क्या सेक्युलर राज्य के मुख्य न्यायाधीश जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुए आपका यह आचरण आप द्वारा उद्धृत किए गए गांधी के जीवन और मूल्यों के अनुरूप है? 

निश्चित तौर पर आपने गांधी जी की हत्या की जांच के लिए गठित कपूर कमीशन की रिपोर्ट, गोडसे के बयानों और गांधी जी की हत्या से ठीक पहले हिंदू महासभा के लोगों द्वारा उनके खिलाफ़ इसलिए विरोध प्रदर्शन करने के बारे में जरूर पढ़ा होगा कि वो गांधी द्वारा अपने प्रिय भजन में ईश्वर और अल्लाह का नाम एक साथ लेने से नाराज़ थे। गांधी के विचारों में हमेशा हिंदू मूल्य दूसरे धर्मों के मूल्यों के समान थे। उनका वजूद एक दूसरे से जुड़ा था। क्या भारत के मुख्य न्यायाधीश के बतौर आपके द्वारा एक आस्था के साथ खड़े होना और गलत तरीके से गांधी को उद्धरित करना उचित है? फिर भी, एक नागरिक के बतौर आपके मंदिर जाने से किसी को ऐतराज नहीं है, (हालांकि आपसे पहले किसी भी मुख्य न्यायाधीश ने अपनी आस्था को सार्वजनिक प्रदर्शन की चीज़ नहीं बनाया था) 


ऐतराज़ गांधी जी को गलत तरीके से उद्धरित करने से है।  


इंडियन एक्सप्रेस की उस खबर में आपके कुछ अन्य कोट भी हैं जो ऐतिहासिक तथ्यों से मेल नहीं खाते। 

"सोमनाथ और द्वारिका मंदिरों पर फहराते धर्म ध्वजा पर उन्होंने कहा कि वो आज सुबह इससे बहुत प्रभावित हुए और ऐसी ही ध्वजा उन्होंने जगन्नाथ पुरी में भी देखी है। हमारे देश की परंपरा की सार्वभौमिकता को देखिए जो हम सबको एक सूत्र में बांधता है।


मुख्य न्यायाधीश महोदय जब आप एक साथ गांधी, द्वारिका और पुरी की धार्मिक परंपराओं से प्रभावित होने की बात कर रहे हैं तो हम आपको कुछ ऐतिहासिक तथ्य याद दिलाना चाहेंगे - गांधी जी द्वार छुआछूत के खिलाफ़ चलाए गए आंदोलन से प्रभावित जब कुछ राष्ट्रवादी नेताओं ने मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए अंग्रेज़ सरकार के सामने विधेयक लाने का सुझाव दिया तब पुरी के शंकराचार्य ने वायसरॉय को पत्र लिखकर इसका विरोध किया कि दलितों और सवर्णों का एक साथ पूजा करना सनातन धर्म की मृत्यु के समान होगा। 



वहीं कई अन्य धार्मिक शख्सियतों ने गांधी जी को हिंदू धर्म से बाहर करने के लिए हस्ताक्षर अभियान भी चलाया था।


यह बहुत आश्चर्य की बात है कि इस संदर्भ में आप संविधान ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के दलितों के मन्दिर प्रवेश के आंदोलनों को कैसे भूल गए? क्या वाकई यह भूल है?


मुख्य न्यायाधीश महोदय यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि हमारा संविधान गांधी, नेहरू, अंबेडकर, सावित्री और ज्योतिबा फुले, गोखले और रानाडे जैसे सामाजिक क्रांतिकारियों और सुधारकों के मूल्यों से निकला है। संविधान सभा में धर्मों के विद्वान जरूर थे लेकिन उसमें कोई भी धार्मिक ओहदे पर बैठा व्यक्ति नहीं था। 


महोदय, एक ऐसे समय में जब वरिष्ठ क़ानूनविद, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और वरिष्ठ वकील आपके एक साल के कार्यकाल पर सार्वजिनिक तौर पर सवाल उठा रहे हों और आप उनके सवालों का जवाब देने से स्पष्ट तौर पर इनकार कर दे रहे हों, एक ऐसे समय में जब यह आम धारणा बनती जा रही हो कि आप मोदी सरकार के खिलाफ़ मौखिक सख्ती तो दिखाते हैं लेकिन कोई कार्यवाई नहीं करते, आपकी नेतृत्व वाली कोलेजियम हेट स्पीच करने वाली भाजपा महिला मोर्चा की नेत्री विक्टोरिया गौरी को चेन्नई हाई कोर्ट का जज नियुक्त कर देती हो और वरिष्ठता के बावजूद जस्टिस अकील कुरैशी को सरकार के दबाव के कारण सुप्रीम कोर्ट में जज नहीं बनाया जाता हो, या संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द की मौजूदगी को कलंक बताने वाले जम्मू कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्तल को प्रमोट करके सुप्रीम कोर्ट में जज बना दिया जाता हो या इस धारणा का मजबूत होते जाना कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 को आप कमज़ोर करने की दिशा में बढ़ रहे हैं, जब सुप्रीम कोर्ट मौलिक ढांचे में बदलाव के खिलाफ़ दिए गए अपने ही सबसे बड़ी संवैधानिक बेंच के फैसले के खिलाफ़ जाकर संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी और सेकुलर शब्द हटाने की याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर रहा हो, प्रधान मंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष द्वारा सार्वजनिक तौर पर संविधान को बदल देने की वकालत करने पर भी जब आप चुप रहते हों तब अपनी आस्था के सार्वजनिक प्रर्दशन और गांधी जी के गलत उद्धरणों के इस्तेमाल से आपकी मंशा पर संशय उत्पन्न होना स्वाभाविक है।


यह कुछ ऐसा ही है जैसे गांधी को उनके राजनैतिक और सामाजिक मूल्यों से काट कर जबरन स्वच्छता का प्रतीक बनाने की कोशिश की गई। गोडसे ने गांधी की शारीरिक हत्या की थी उन्हें गलत संदर्भों में व्याख्यायीत करना उनकी वैचारिक हत्या की कोशिश जैसी है। देश नहीं चाहेगा कि उसके मुख्य न्यायाधीश इस अपराध के आरोप के कटघरे में हों। 


विधायिका और कार्यपालिका से कहीं ज़्यादा लोग अब भी न्यायपालिका पर विश्वास करते हैं। इस विश्वास को कायम रखना और मजबूत करना आपकी ज़िम्मेदारी है। इसमें आपकी विफलता संवैधानिक मूल्यों को कमज़ोर करेगा। निश्चित तौर पर इसकी इजाज़त आपको नहीं दी जा सकती। 

कार्यक्रम मे मुख्य रूप से  उत्तर प्रदेश काँग्रेस के पूर्व प्रदेश सचिव चौधरी असलम मियाँ,अल्पसंख्यक काँग्रेस के प्रदेश महासचिव हसनैन अंसारी,प्रदेश सचिव आसिफ हुसैन,एन एस यू आई के जिलाध्यक्ष मोहम्मद नदीम,अल्पसंख्यक काँग्रेस के जिला उपाध्यक्ष गुलाम हुसैन अंसारी,महासचिव मैदान शाह,महानगर उपाध्यक्ष फहीम अंसारी,सेवा दल के जिलाध्यक्ष अवनीश बख्शी टोनू ,मोईनुद्दीन आदि उपस्थित रहे।

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