हज़रत मौलाना ज़हूर अहमद क़ासमी साहब का चले जाना* क़ौम और मिल्लत की बड़ी क्षति

 मैं उन्हें कभी नहीं भुला सकता क्योंकि उन्होंने एक ज़िद्दी और दिल के सियाह इंसान को समझाने के लिए मेरे साथ चलकर कोशिश की।*

*नई दिल्ली (अनवार अहमद नूर)*

आज इस दुनिया ए फ़ानी से एक और ऐसी शख्सियत चली गई जिसकी ख़िदमात की शायद ही कोई दूसरी मिसाल हो। जी हां मैं यूपी के सहारनपुर की अज़ीम शख्सियत हज़रत मौलाना ज़हूर अहमद क़ासमी साहब की बात कर रहा हूं। जो मशहूर अध्यापक तफ़सीर मदरसा मज़ाहिर उलूम वक्फ़ सहारनपुर होने के साथ साथ जमीअत उलमा ए हिंद के सहारनपुर जिले के अध्यक्ष भी थे। मगर वाह साहब। मैंने जैसा उनको देखा तो बस देखता ही रह गया। क्या शख्सियत थे आप। उम्र दराज़ होना और उसके बावजूद पंज वक्ता नमाज़ के साथ साथ,शागिर्दों को पढ़ाना और फ़िर लोगों की खिदमत के लिए एक कहने पर चल देना। इसके अलावा आप बहुत सी खसूसियात के मालिक थे। 


मैं मुफ़्ती फारूक और मौलाना अब्दुर रशीद साहब (बागपत) के साथ उनसे मिला था। बहुत कमज़ोर और बीमार होने के बाद भी अपनी क्लास पढ़ाने के बाद वह हमारे साथ चलने को तैयार हो गए थे। रेहड़ी ताजपुरा गांव के सफ़र के दौरान मैंने उनसे मदरसे की तालीम और यूपी की योगी सरकार के संबंध में कुछ सवालात पूछे जिनका उन्होंने बड़ी सूझ-बूझ से जवाब दिया। गांव पहुंच कर उन्होंने यहां गाढ़ा बिरादरी के एक मदरसे में बैठकर,इसी बिरादरी के एक व्यक्ति को फ़ोन किया जो अलजमीयत में मुलाज़िम है लेकिन इस दिल सियाह और ज़िद्दी, ख़फ़्ती व्यक्ति ने उनकी बात नहीं मानी। उसके बाद उन्होंने जमीयत के महासचिव से भी फोन पर बातचीत की। मगर ---------?।

पिछले दिनों भी जमीयत की मीटिंग में भी उन्होंने कमज़ोरी और जईफ़ी के बावजूद शिरकत फ़रमाई। आपकी सादा मिजाज़ी और ख़िदमत ए ख़ल्क़ को लोग कभी भुला नहीं सकेंगे।

आज उनकी नमाज़ ए जनाज़ा उनके पैतृक गांव इमादपुर में पढ़ी गई। उनकी अंतिम रसूमात में भारी संख्या में लोगों ने शिरकत की। जिनमें उनके शागिर्दों की भी बड़ी तादाद मौजूद रही। जमीयत उलमा ए हिंद के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी शिरकत की।

"मौत उसकी जिस पर ज़माना करे अफसोस, 

यू तो सभी आये है इस दुनिया में मरने के लिए।"

मैं उनके लिए अल्लाह से दुआ करता हूं अल्लाह उनको जन्नत उल-फिरदौस में आला मक़ाम अता फरमाए, आमीन।

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