क्या वास्तव में हम आर. ओ. के पानी को शुद्ध पानी मान सकते हैं?
रिपोर्ट- रुबि न्यूटन
रुबि न्यूटन |
WHO ने बताया कि इसके लगातार सेवन से हृदय सम्बन्धी विकार, थकान, कमजोरी, मांसपेशियों में ऐंठन, सिरदर्द आदि दुष्प्रभाव पाए गए हैं।
कई शोधों के बाद पता चला है कि इसकी वजह से कैल्शियम और मैग्नीशियम पानी से पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं जो कि शारीरिक विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं।RO के पानी के लगातार इस्तेमाल से शरीर में विटामिन B-12 की कमी भी होने लगती है ।
वैज्ञानिकों के अनुसार मानव शरीर 400 TDS तक सहन करने की क्षमता रखता है परन्तु RO कम्पनियों में तैनात अनपढ़ आर ओ इंजीनियरों द्वारा 18 से 25 TDS तक पानी की शुद्धता सेट की जाती है जो कि नुकसानदायक है।
इसके विकल्प में क्लोरीन को रखा जा सकता है जिसमें लागत भी कम होती है एवं पानी के आवश्यक तत्व भी सुरक्षित रहते हैं जिससे मानव का शारीरिक विकास अवरूद्ध नहीं होता।
जहां एक तरफ एशिया और यूरोप के कई देश RO पर प्रतिबन्ध लगा चुके हैं वहीं पढ़े लिखे समझदार लोगों की वजह से भारत में RO की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, कारण हेमा मालिनी, आलोक नाथ और सचिन तेंदुलकर जो कर रहे हैं प्रचार और कई विदेशी कम्पनियों ने तो यहां पर अपना अड्डा बनाकर बड़ा बाजार बना लिया है।
इसलिए स्वास्थय के प्रति जागरूक रहना और जागरूक करना ज़रूरी हैं।
अब शुद्ध पानी के लिए नए अविष्कारों की ज़रूरत है।
याद रखें कि लम्बे समय तक R.O. का पानी, लगातार पीने से, शरीर कमजोर और बीमारियों का घर बन जाता है।
अत: प्राकृतिक (खनिज युक्त) पानी परम्परागत तरीकों से साफ कर के पीना, हितकर है जैसे कि घड़े का पानी।
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