प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी और भाजपा के पसमांदा प्रेम की उप्र में जमीनी हकीकत पर एक नजर?

 मुस्तकीम मंसूरी की रिपोर्ट, 

मुस्तकीम
 मंसूरी

भाजपा के पसमांदा प्रेम के फेंके गए जाल में फसने से पहले पसमांदा समाज को सोचना होगा? 

देश में हुई 2011 की जनगणना के अनुसार उप्र में 19.33% कुल मुसलमान और उनमें लगभग 16% अकेले पसमांदा यानी पिछड़े– दलित मुसलमान अब इन पसमांदा मुसलमानों की भाजपा की सरकार और संगठन में हिस्सेदारी पर एक नजर, 

1– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के पसमांदा प्रेम को देखते हुवे उप्र की सरकार में, 16% वोटों वाले पसमांदा मुसलमान से, हम 4–6 कैबिनेट मंत्रियों के होने का, भरोसा तो कर ही सकते थे ? लेकिन अल्पसंख्यक कल्याण, मुस्लिम वक्फ और हज, कैबिनेट मंत्री भी कोई मुसलमान नहीं, बल्कि चौधरी धर्मपाल सिंह जी हैं ? सिर्फ उप्र ही नही, केंद्र सहित सभी भाजपा शासित, सभी राज्यों में पसमांदा के साथ, हिस्सेदारी के नाम पर यही सौतेलापन और नाइंसाफी आखिर क्यों? पिछड़ा वर्ग आयोग, एससी आयोग जैसा उप्र के 16% पसमांदा मुसलमानों के लिए, कोई अलग से आयोग क्यों नहीं ?

2– भाजपा के संगठन के मुख्य मोर्चे सहित युवा, महिला, कृषक, यहां तक ओबीसी मोर्चे में एक पदाधिकारी भी, कोई मुसलमान नहीं आखिर क्यों ? जबकि उप्र के कुल 52% पिछड़ों में लगभग एक तिहाई यानी 16% पिछड़े मुसलमान ? सिर्फ उप्र ही नही, पूरे देश के भाजपा संगठन में मोदीजी के पसमांदा के साथ यही सौतेलापन और नाइंसाफी आखिर क्यों जिस प्रदेश में?

3– जिस प्रदेश में 99% से अधिक सुन्नी मुसलमान यानी पसमांदा और खान, पठान या अन्य सवर्ण मुसलमान हों उस प्रदेश में हज कमेटी का चेयरमैन एक शिया मुसलमान, जिस की आबादी कुल मुसलमानों में एक प्रतिशत से भी कम है वगैरह– वगैरह ? क्या ये भाजपा या उप्र सरकार द्वारा, पूरे देश के सभी सुन्नी मुसलमानों के भावनाओं के साथ, किया जाने वाला एक भद्दा_मज़ाक नहीं ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी, क्या ऐसा ही कोई प्रयोग कर, यानी सिर्फ अपने बयानबाजी के दम पर बगैर सरकार और संगठन में कोई हिस्सेदारी दिए, आप पिछड़ों और दलितों के साथ, अपनी हमदर्दी होने और उनके वोटों को पाने की उम्मीद कर सकते हैं ?

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