फ़िल्म और अदब से जुड़ी मशहूर हस्ती इक़बाल दुर्रानी के सम्मान में दिल्ली उर्दू एकेडमी में समारोह और मुशायरा

डॉ. इक़बाल दुर्रानी ने जब अपनी कामयाबी और ज़िन्दगी की दास्तां बयां की तो हैरत और ख़ुशी से वाह वाह कह उठे लोग।

नई दिल्ली (अनवार अहमद नूर)

मशहूर प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, स्क्रिप्ट राइटर,फिल्म एक्टर और अदब से जुड़े रहने वाले इक़बाल दुर्रानी ने दिल्ली उर्दू एकेडमी में अपने सम्मान में आयोजित समारोह में अपनी ज़िंदगी और लम्बे संघर्ष की यादों को जब लोगों से बयान किया तो सभी लोग मंत्रमुग्ध हो गए। और वाह-वाह कहते हुए तालियां बजाने लगे।




इस शानदार सम्मान समारोह और मुशायरे की नशिस्त की अध्यक्षता उर्दू एकेडमी के वाइस चेयरमैन हाजी ताज मोहम्मद ने और संचालन मशहूर एंकर अतहर सईद ने किया। खचाखच भरे क़मर रईस जुब्ली हाल में इस समारोह में अनेको मशहूर शायरों, लेखकों,पत्रकारों, समाजसेवियों और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया। 

सबसे पहले सभी मुख्य अतिथियों का स्वागत करते हुए इक़बाल दुर्रानी को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर उर्दू एकेडमी के वाइस चेयरमैन हाजी ताज मोहम्मद, एक्ज़ीक्यूटिव मेंबर जावेद रहमानी,असरार कुरैशी,अतहर सईद,शायर मुनीर हमदम,अमीर अमरोही,शरफ नानपारवी,अख्तर आज़मी, आरिफ़ देहलवी,अना देहलवी,सईद हुसैन बारी,हामिद अली अख्तर, ख़ानज़मां,नफीस मंसूरी, मौलाना शाकिर, डॉ नदीम, पत्रकार लेखक अनवार अहमद नूर, अब्दुर रशीद, दानिश अय्यूबी, सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

मशहूर शायर आरिफ़ देहलवी, अख़्तर आज़मी,अमीर अमरोहवी,शरफ़ नानपारवी,शायरा अना देहलवी ने अपना अपना कलाम पेश करके खूब वाहवाही लूटी।

आरिफ़ देहलवी ने "महबूब मेरे ताज से बढ़कर तू हंसी हैं" पेश किया तो अख़्तर आज़मी ने अपनी ख़ूबसूरत ग़ज़ल "शाम को लेके तेरे लब की शफ़ाक़ आ गया आफ़ताब पानी में" सुनाई।

अमीर अमरोहवी ने अपने शेरों पर ख़ूब वाहवाही बटोरी तो शरफ़ नानपारवी ने "घात लगाकर उसने मेरे मासूमों को मार दिया, दुश्मन इतना बुज़दिल होगा ये कब मैंने सोचा था " पर ख़ूब दाद हासिल की। शायरा अना देहलवी को भी खूब सुना गया और दाद दी गई।

स्वयं इक़बाल दुर्रानी ने जब माइक संभाला तो लोगों ने ज़ोरदार तालियों से उनका स्वागत किया और फ़िर उनके साथ ही उनकी दास्तान में सराबोर हो गये। इक़बाल दुर्रानी का शायराना, सूफियाना और बयान करने के अंदाज़ के सभी कायल हो गए और जी भर कर उन्हें दाद, तालियां और वाहवाही दी।

इक़बाल दुर्रानी ने कहा कि "हिम्मत है तो मांग, ए खुदा मुझे दर्द दे, दर्द रहेगा तो खुदा याद रहेगा, जो खुदा याद रहेगा, तो फिर दर्द कहां रहेगा।

उन्होंने कहा कि वह अपनी इसी हिम्मत और सहारे के साथ बिहार से चलकर दिल्ली और फिर दिल्ली से मुंबई चले गए और उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिल्मों में एक्टिंग डायरेक्शन और  डायलॉग राइटिंग, स्क्रिप्ट राइटिंग यानि तरह तरह से जुड़े रहे। फिल्म फूल और कांटे, दिल आशना है, धरतीपुत्र, शिवा, खुद्दार, यमराज, ज़हरीला, नच गोविंदा, शेषनाग, खोज, कालचक्र आदि अनेकों फिल्मों से उनका जुड़ाव रहा।  परदेसी फिल्म में मेन एक्टर रहे। उन्होंने बताया कि मंडी हाउस से बैस्ट एक्टर का अवार्ड लेकर बम्बई गये और अब तक उन्हें दर्जनों अवार्ड मिल चुके हैं, जिनमें झारखंड रत्न अवॉर्ड, उर्दू प्रेस ऑफ इंडिया का राजीव गांधी अवॉर्ड, बाबा साहब अंबेडकर अवार्ड, साहित्यकार संगम प्रतापगढ़ की विद्यावाचस्पति (डॉक्टरेट) की उपाधि प्रमुख हैं।

डाक्टर इक़बाल दुर्रानी ने फिल्म जगत के अलावा धर्म के क्षेत्र में काम करते हुए बड़ा कारनामा कुरान शरीफ़ के अनुवाद और तफ्सीर का किया है। साथ ही उन्होंने चार वेदों में से सामवेद का उर्दू अनुवाद करके हैरतअंगेज कारनामा अंजाम दिया है। उनकी एक पुस्तक "गांधी से पहले गांधी" रांची के एक सिटी में ग्रेजुएशन में पढ़ाई जाती है सुनकर सभी आश्चर्यचकित रह गए। झारखंड में एक सड़क का नाम उनके नाम पर उनके जीवनकाल में ही सरकार ने रख दिया है। 

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