*शैक्षणिक संस्थानों को सांप्रदायिकता की राजनीति से दूर रखा जाये- कलीमुल हफ़ीज़*

जेएनयू दिल्ली में नॉनवेज पर एबीवीपी का हंगामा भारतीय संविधान के विरूध है- AIMIM Delhi

 

प्रेस रिलीज़ 12-04-22 नई दिल्ली

शैक्षणिक संस्थान शिक्षा के लिए हैं यहां क़ौम और देश का भविष्य शिक्षा पाता है लेकिन बीजेपी और आरएसएस ने सांप्रदायिक राजनीति का ज़हर मासूम ज़हनो मे भी भर दिया है। जिसका प्रदर्शन जेएनयू मे देखने को मिल रहा है। यह विचार ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्त्तेहादुल मुस्लिमीन दिल्ली के अध्यक्ष कलीमुल हफ़ीज़ ने प्रेस को जारी एक व्यान मे व्यक्त किए। 

उन्होनें कहा कम से कम विश्वविद्यालय और महाविद्यालय के माहौल को एैसा रखा जाये ताकि छात्र अपनी शिक्षा पर ध्यान दे सकें। विश्वविद्यालयों में  छात्र लीडरशिप को शैक्षणिक मुद्दों पर ही राजनीति को प्राथमिकता देनी चाहिए और देश की राजनीति मे अपनी सकारात्मक भूमिका निभाना चाहिए। देश के संविधान और लोकतंत्र को बचाने मे अपनी राजनैतिक दूरदर्शिता को इस्तेमाल करना चाहिए। कोशिश करना चाहिए की शैक्षणिक संस्थानों मे शिक्षा का माहौल प्रभावित ना हो। इसलिए कि छात्रों का पहला उद्देश्य शिक्षा प्राप्ति है। अलबत्ता सांप्रदायिक राजनैतिक चाहती है कि छात्रों के ज़हनो को भी सांप्रदायिक कर दिया जाये। 

कलीमुल हफी़ज़ ने कहा, मुल्क मे एक हज़ार साल से हिंदु-मुस्लमान साथ-साथ रहते आए हैं। नवरात्र और रामनवमी भी हज़ारों साल से मनायी जा रही है लेकिन कभी भी किसी को किसी के खाने-पीने से एतराज़ नही हुआ। 

जेएनयू में नॉनवेज को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का हंगामा असंवैधानिक है।

आजकल संप्रादायिक शक्तियाँ हर त्यौहार पर कोई न कोई गुल खिला रही हैं और वातावरण को ख़राब कर रही है। पहले राजस्थान और अब मध्यप्रदेश एवं गुजरात समेत 7 राज्यों में संप्रादायिक दंगे हो चुके हैं। हमें याद रखना चाहिए नुक़सान किसी का भी हो असल नुक़सान देश का है। 

मजलिस अध्यक्ष ने कहा कि यही राजनिति अगर शैक्षणिक संस्थानों मे निकल चली तो शिक्षा संस्थान लड़ाई के अडडे बन जाऐंगें। जिससे शिक्षा की सारी व्यवस्था ठप हो जाऐगी।

  छात्र संगठन को अपना ध्यान छात्रों की समस्याओं हो हल करने, बेहतर शिक्षा का माहोल बनाने, नये कोर्सो को परिचित कराने, छात्रों की तालीमी मे मदद करने और ज़िंदगी को बेहतर व खुशहाल बनाने पर केंद्रित करना चाहिए। उन्हें हिंदु-मुस्लमान की सियासत से दूर रहना चाहिए। महाविद्यालयों के अधिकारियों को भी चाहिए कि तालीमी इदारों के लोकतांत्रिक माहौल को क़ायम रखें और संविधान के मुताबिक कार्यवाही करें।


प्रकाशन के लिए


*अब्दुल ग़फ़्फ़ार सिद्दीक़ी*

मीडिया प्रभारी, मजलिस दिल्ली

8287421080

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