दिल्ली दंगा सुनियोजित था जिसके लिए सरकार और प्रशासन दोषी है।" *

दिल्ली दंगे के पीड़ितों ने की बयान दर्दनाक सच्चाई।

नई दिल्ली (अनवार अहमद नूर) 
"देश की राजधानी दिल्ली में हुआ दंगा एक दो दिन नहीं पूरे हफ्ते चलता रहा, खून खराबा और हत्या आगज़नी होती रही और सरकार प्रशासन उसे रोक नहीं सके। दंगाइयों को रोका नहीं गया। एक वर्ग के लोगों को चुन चुन कर निशाना बनाया गया। इससे स्पष्ट है कि वह पूरी तरह से सुनियोजित दंगा था। एक तरह का नरसंहार था न कि दो वर्गों में हुआ झगड़ा फसाद। इसके लिए सरकारें और प्रशासन पूरी तरह से ज़िम्मेदार हैं "ऐसे ही अनेक खुले आरोप प्रेस क्लब आफ इंडिया में लगाए गए। जहां दंगे के अनेक चश्मदीद और पीड़ित मौजूद थे। उनकी दर्दनाक सच्चाई ने सभी की आंखों को नम और दिल ग़मज़दा कर दिया। 

मलिका जिसके शौहर को मार कर जला दिया गया था ने बताया कि भगवती विहार की तीसरी मंजिल पर जब उसने अपने शौहर को कपड़ों और बिस्तरों के अंदर छुपा दिया तब भी जय श्री राम का नारा लगाते हुए आए लोगों ने उन्हें सरिया से मार डाला और मारने के बाद उनको आग में फेंक दिया और साथ ही उनसे कहा कि हम तुम्हारे बच्चों को मारेंगे और तुम मुसलमानों की लड़कियों की इज्जत लूट लेंगे। मालिका गोकुलपुरी थाने में अकेली चक्कर लगा लगा कर थक गई। बाद में ज़ीटीबी के मुर्दाघर से उसे अपने पति की लाश मिली। आज उसका और उसके बच्चों का कोई पुरसाने हाल नहीं है। वह अपनी यह सच्चाई बयान करते करते कई बार सिसकियों से रोई। ऐसी ही दंगा पीड़ित एक बुर्कानशीं महिला इमराना जिस की 8 बेटियां हैं और आज उसके लिए उनकी परवरिश करना एक बड़ा मुश्किल काम बन गया है। दंगे में उसके पति मुदस्सिर को गोली मार दी गई। पति के मरने के बाद वह बेसहारा अपने बच्चों के पालन पोषण के लिए परेशान है। इमराना भी कई बार अपनी सच्चाई को बयान करके सिसक सिसक कर रोई। इसके अलावा यहां वकील जिनका नाम है वह एक ऐसे पीड़ित हैं जिन पर तेज़ाब फेंका गया और उनकी दोनों आंखें हमेशा के लिए चली गईं। और बहुत ही क्रूरता के साथ उनके ऊपर तेजाब फेंका गया था। वहीं एक नौजवान समीर जिसे व्हील चेयर पर लाया गया, यह 9th क्लास का स्टूडेंट था इसके पांव पर गोली मारी गई और जिससे इसकी टांग बेकार हो गई और पैरालाइज का असर हो गया। यह भी आज प्रेस क्लब में अपनी आपबीती सुनाने के लिए मौजूद था। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष जफरुल इस्लाम और कई अन्य लोगों के समक्ष जब दंगा पीड़ितों ने अपनी यह दर्द भरी सच्चाई बयान की तो शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा कि जिसकी आंखों में आंसू न आए हों और उसके मन में यह विचार न आया हो कि शर्म है ऐसे शासन प्रशासन पर कि जो अपने नागरिकों को दंगा या दंगाइयों से न बचा सके।

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