सहारनपुर के मदरसा मज़ाहिर उलूम की आज़ादी, शिक्षा और समाज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका।

मुफ़्ती फारूक़ और अब्दुर रशीद के साथ मदरसा दौरे के बाद एक रिपोर्ट। 


(अनवार अहमद नूर) 
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में स्थित मदरसा मज़ाहिर उलूम (वक्फ) में जाने का अवसर मिला, मेरे साथ मुफ़्ती फारूक़ और अब्दुर रशीद (उर्दू पत्रकार) भी रहे। अक्सर माना जाता है कि मदरसे राष्ट्र और कौम का बड़ा सरमाया हैं। तो यकीनन यह सही है कि मदरसे राष्ट्र निर्माता और समाज निर्माता और शिक्षा संस्थान होने के साथ साथ आदर्श नागरिक तैयार करने के केन्द्र हैं। हमने देखा कि जितनी विशाल इमारत और वर्ग क्षेत्र में यह मदरसा है शायद ही कोई दूसरा और हो। मुफ़्ती फारूक़ पूरी तरह से हमारा मार्गदर्शन कर रहे थे।





हमारी यहां के प्रसिद्ध व्यक्तित्व, नेक इंसान तथा उम्र दराज़ होने के बाद भी विधार्थीयों को शिक्षा बांट रहे मौलाना ज़हूर साहब से मुलाकात हुई। मदरसों की तालीम के संबंध से उनसे बातचीत हुई। उनके सादा विचार यकीनन दिल को प्रभावित करने वाले थे। उन्होंने बताया कि यह सच है कि मदरसों की भूमिका देश और समाज को बनाने की है। सहारनपुर ही नहीं बल्कि यह पूरा इलाका देश की आज़ादी के आंदोलन में आगे आगे रहा है। मदरसों और उलमा हज़रात ने बड़ी कुर्बानियां दीं हैं। जिसके बाद हमें आज़ादी मिली। मौलाना ज़हूर के साथ ही हम लोग निकटवर्ती ग्राम रेहड़ी ताजपुरा के एक बड़े मदरसे भी गए। और हमने इन्हीं के साथ वहां नाश्ता करने के बाद खाना भी खाया। रास्ते में एक बार फिर मैंने मौलाना ज़हूर साहब से बातचीत की। तो उन्होंने बड़े संक्षिप्त और सधे हुए जवाब दिए। भाजपा सरकार की मदरसों के प्रति नीति से जुड़े सवाल को उन्होंने यह कहते हुए टाल दिया कि फिलहाल तो कुछ नहीं  हो रहा है सब ठीक है चाहे इसकी वजह यूपी के मौजूदा विधानसभा चुनाव ही क्यों न हों। 
मदरसा मज़ाहिर उलूम जिसकी यहां कई बड़ी बड़ी इमारतें हैं। एक विशाल पुस्तकालय है। जिसमें बड़ी संख्या में किताबें मौजूद हैं। बाहर बरामदे में मदरसे और उसके इतिहास से जुड़ी अनेक जानकारी वाली बातें लिखीं हैं। यहीं पता चला कि बड़े पैमाने पर स्वतंत्रता आन्दोलन में जामिया के संस्थापक सदस्यों और अध्यापकों तथा स्टाफ ने भाग लिया। जिनमें हज़रत मौलाना सआदत अली सहारनपुरी, 
हज़रत मौलाना मोहम्मद मज़हर नानौतवी, 
मौलाना खलील उर रहमान सहारनपुरी, 
ख्वाजा सैयद अहमद हसन सहारनपुरी, 
मौलाना सैयद मोहम्मद इसहाक सहारनपुरी 
मौलाना अहमद अली मुरादाबादी 
मौलाना सिकंदर अली मोहददिस हज़ारवी
मौलाना हबीब अहमद सहारनपुरी 
मौलाना इस्माईल मुजफ़्फ़रनगरी
हाजी सूफी महमूद हसन आदि के नाम प्रमुख हैं। 
मदरसा को देखते हुए हमने अनेक ऐतिहासिक और महत्व वाले स्थान देखे और उनकी ऐतिहासिक प्रष्ठ भूमि को जाना। हमने उस मुबारक और ऐतिहासिक हुजरे को भी देखा 
जिसमें 1857 के महान स्वतंत्रता सेनानी हज़रत मौलाना मोहम्मद मज़हर नानौतवी रहा करते थे जो मज़ाहिर उलूम सहारनपुर के संस्थापकों में से हैं।हज़रत मौलाना खलील अहमद सहारनपुरी (रहo) और इस्लामी विद्वान हज़रत मौलाना मौहम्मद क़ासिम नानौतवी जैसे अपने समय के प्रसिद्ध उलमा आपके विधार्थीयों में हैं। आपके बाद यह हुजरा हज़रत मोहददिस सहारनपुरी (रहo) का निवास स्थल रहा। इसी के पास दूसरा वह हुजरा भी है जहाँ से तब्लीग़ और दावत (प्रचार प्रसार) का काम शुरू हुआ और पूरी दुनिया में फैल गया। यह हुजरा तब्लीग़ी जमात के संस्थापक मौलाना मोहम्मद इलियास कांधलवी(रह.) का है। यह वह ऐतिहासिक हुजरें हैं जहां अपने समय के बड़े बड़े औलिया और उलमा हज़रात आते रहे हैं।
सहारनपुर के इस विशाल और महत्वपूर्ण दीनी शिक्षा संस्थान को देख कर और जान कर लगा कि यही मदरसे हैं जिन्होंने देश की आज़ादी की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाई और आज भी शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा योगदान दे रहे हैं। और देश - समाज तथा आदर्श नागरिक बनाने में लगे हैं हालांकि कुछ तत्वों की गंदी नज़र इन पर लगी हुई है। 

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