पेड़ों के बगैर हमारा जीवन असंभव -पर्यावरण प्रेमी गयास हाशमी
एस ए बेताब |
अमरोहा के रहने वाले हकीम गयास हाशमी ने एक ऐसी मिसाल कायम की है जो तमाम मानव समाज के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है, यूं तो अपने लिए सभी जीते हैं जीना तो उनका है जो पूरी मानवता के लिए जिए,ऐसे ही पर्यावरण प्रेमी है गयास हाशमी।
"कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता। एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो
किसी शायर की इन पंक्तियों को अमलीजामा पहनाया है पर्यावरण प्रेमी गयास हाशमी ने, पेड़ों के प्रति उनका जुनून, उनका समर्पण,उनका लगाव दर्शाता है कि पेड़ हमारे आने वाली पीढ़ी की धरोहर है, पेड़ ही हमारी जिंदगी है, पेड़ ही हमारी आशा है, पेड़ ही हमारी आने वाली पीढीयो के संरक्षक है। अमरोहा के रहने वाले एक हकीम ने पर्यावरण की एक अनोखी पहल पेश कर दी अपनी घर परिवार को छोड़कर एक वीराने जंगल में 50 हजार पौधे लगा दिए और ऑर्गेनिक खेती करनी शुरू कर दी अमरोहा तहसील के सलेमपुर गांव में बने , स्वदेशी सेवा फॉर्म पर, बड़े से बड़े जिले के अफसर पहुंच रहे हैं और एडवोकेट हकीम गयासुद्दीन को शाबाशी दे रहे हैं जो अब पर्यावरण के लिए एक युवा जोश लेकर निकले हैं अगर दिल्ली का भी सफर करते हैं तो गाड़ी में अक्सर पौधे रखे हुए होते हैं जहां कहीं अगर गाड़ी रोकते हैं तो वहां अपनी निशानी यानी पेड़ लगाकर जाते हैं।
आपको बता दें कि देश विदेश में जाने जाने वाला हकीमो का शहर अमरोहा, अमरोहा के सपूत ने खाली पर्यावरण बचाने की सौगंध और सफर पर निकलें में भी रखते हैं गाड़ी में हरे भरे पौधे जहां भी जाते हैं अपनी निशानी छोड़कर यानी उस विराने जंगल पर पेड़ लगाते हैं और तो और ईद या बकर ईद पर वह किसी से मिठाइयां ना ही तो लेते हैं और ना ही देते हैं और ईद की खुशी पर वह सिर्फ खुद भी तोहफे में अच्छे-अच्छे पौधे देते हैं और दूसरों से भी उपहार में पौधा ही लेना पसंद करते हैं। अब आप सोचिए कि आखिर जिले के एक ही युवा ने ऐसी सोच रख ली और उनकी राह पर चलने के लिए सिर्फ हर जिले से 25% लोग ही इस तरह का काम करने लगे तो हमारा देश भी सुरक्षित रहेगा हम भी सुरक्षित रहेंगे और ऐसी भयंकर बीमारियों यानी ऑक्सीजन की किल्लत भी दूर हो सकती है। अमरोहा के सलेमपुर में बने , स्वदेशी सेवा फार्म हाउस पर अब मिट्टी से सोना उगा रहे हैं। डॉक्टर सिराजुद्दीन हाशमी के छोटे भाई गयासुद्दीन हाशमी, ऑर्गेनिक खेती की शुरुआत की पिछले कई वर्षों से कर रहे हैं यूं तो सरकार भी लाख प्रयास लगा रही हैं लेकिन वह किसी की मदद से नहीं बल्कि अपने निजी खर्चे से ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। डॉक्टर सिराजुद्दीन हाशमी के छोटे भाई एडवोकेट गयासुद्दीन हाशमी का कहना है कि शुरुआत में अपने घर से करूंगा और फिर 40 गांव गोद लेकर उन्हें भी बताऊंगा कि हम किस रास्ते पर जा रहे हैं क्योंकि आजकल खेती में घातक दवाइयां लगाई जा रही है जो भयंकर बीमारी से भी सेवन करने वाला झुज सकता है तो ऐसे में, हाशमी परिवार के युवा ने आने वाली हमारी पीढ़ी के बारे में हरियाली के लिए सौगंध खायी है। गयास हाशमी की सोच बहुत ऊंची है और यह उनकी सोच ही दर्शाती है कि उन्होंने ऑर्गेनिक खेती करने का बीड़ा उठाया और पेड़ लगाने की ऐसी लगन लगी कि अब तक 50000 पेड़ लगा चुके हैं और उनकी गाड़ी में हमेशा पेड़ रखा होता है और जहां कहीं भी ऐसी जगह देखते हैं कि पेड़ लगाया जा सकता है वह गाड़ी से उतरते हैं और तुरंत पेड़ लगा देते हैं। पेड़ दान करते हैं ,पेड़ों के प्रति जागरूकता पैदा करते हैं। हमने गयाश हाशमी से बातचीत की उनका कहना था कि पेड़ों के बगैर मानव समाज का दुनिया पर रहना असंभव है, यदि पेड़ ना हो तो हमें ऑक्सीजन नहीं मिलेगी, पेड हमारे जीवन की बहुत सारी जरूरतों को पूरा करते हैं, आप किसी भी धर्म में आस्था रखते हो पेड़ आपकी अंतिम यात्रा तक काम आते हैं। मानव की जब चिता जलाई जाती है तो पेड़ की लकडिया काम आती है, जनाजे को जब कब्र में दफन किया जाता है तो उसके पटाव में भी लकड़ी के तख्ते लगाए जाते हैं। मशहूर कव्वाल हबीब पेंटर की पेड़ों के बारे में क्या खूब कव्वाली है "देख तमाशा लकड़ी का" और लकड़ी कहां से आती है लकड़ी तो पेड़ के बगैर आ नहीं सकती। तो हमें पेड़ों को लगाना चाहिए, पेड़ों की सुरक्षा करनी चाहिए, उन्हें खाद, पानी देना चाहिए और जिस तरह पेड़ हरियाली और खुशहाली का प्रतीक है उससे हमें सीख लेनी चाहिए कि हमारा जीवन भी हरियाली और खुशहाली की तरह संपन्न रहें।
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