प्लास्टर का सारा बजट दरबार खा गया

 प्लास्टर का सारा बजट दरबार खा गया


---------------------------------------------



ख़बर बहुत सच्ची थी अखबार खा गया,

एक गीदड़ भी शेर का शिकार खा गया।


मज़बूत मेरे वतन का विकास कैसे होता,

प्लास्टर का सारा बजट दरबार खा गया।


समन्दर में घूमने की कोई शर्त ना रखिए,

मेरी कश्ती को ग़म का पतवार खा गया।


वो मैदान-ए-जंग में उतरा नहीं था मगर,

तामाशाई था इसलिए तलवार खा गया।


मेरी हिम्मत ने सच तो कह दिया लेकिन,

इसी दौर का अमीरे शहर ख़ार खा गया।


कहने को उसने मुझे देखा नहीं है छूकर,

नज़र से मगर अपनी आर-पार खा गया।


परेशानियां थीं घर को छोड़कर चलीं गईं,

मेहमान बेशक रोटियां दो-चार खा गया।


तुम अकेले उदास नही, रातों की गोद में,

मेरा भी खिलखिलाना घर-बार खा गया।


तुम तो नासमझ हो तुम्हारी बिसात क्या,

ज़फ़र भी अपने मुक़द्दर से मार खा गया।


ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र

एफ़-413,

कड़कड़डूमा कोर्ट,

दिल्ली-32

zzafar08@gmail.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सपा समर्थित उम्मीदवार श्रीमती उजमा आदिल की हार की समीक्षा

सरधना के मोहल्ला कुम्हारान में खंभे में उतरे करंट से एक 11 वर्षीय बच्चे की मौत,नगर वासियों में आक्रोश

विधायक अताउर्रहमान के भाई नसीम उर्रहमान हज सफर पर रवाना