सड़क सुरक्षा के लिए सरकारों का वादा: अधिकतम गति सीमा 30 किमी/घंटा हो

 

सड़क सुरक्षा के लिए सरकारों का वादा: अधिकतम गति सीमा 30 किमी/घंटा हो

बॉबी रमाकांत - सीएनएस

 

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सड़क हर इंसान के सुरक्षित और आरामदायक आवागमन के लिए है (न कि सिर्फ मोटर वाहन सवार लोगों के लिए). सरकारों के दशकों के तमाम सड़क सुरक्षा के प्रयास के बावजूद दुनिया में 5 करोड़ से अधिक लोग हर साल सड़क दुर्घटनाओं में ज़ख़्मी होते हैं और 13.5 लाख लोग मृत (भारत में 1.5 लाख से अधिक लोग हर साल सड़क दुर्घटना में मृत होते हैं). 90% सड़क दुर्घटनाएं विकासशील देशों में ही हो रही हैं. 15-29 साल के लोगों के लिए सड़क दुर्घटना असामयिक मृत्यु का एक बड़ा कारण है. भारत में सड़क दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण है तेज़ गति से गाड़ी चलाना जिसके कारणवश 70% दुर्घटनाएं होती हैं.

 

सरकार द्वारा तय अधिकतम गति सीमा से अधिक तेज़ मोटर वाहन चलाना सड़क दुर्घटना का सबसे बड़ा कारण है तो क्यों न अधिकतम गति सीमा 30 किमी प्रति घंटा कर दी जाये और सख्ती से उसको लागू किया जायेयही कुछ देशों में चुनिन्दा शहरों ने किया. नतीजा यह हुआ कि सड़क दुर्घटनाओं में ज़ख़्मी और मृत होने वालों की संख्या में भारी गिरावट आईजनता अधिक इत्मीनान से साइकिलपैदल और सुरक्षित गति से मोटर वाले वाहन से आवागमन कर सकी.

 

स्टॉकहोम डिक्लेरेशन (स्टॉकहोम घोषणापत्र)

 

पिछले साल 19-20 फरवरी 2020 कोस्टॉकहोम में दुनिया के सभी देशों के मंत्री के लिए उच्च-स्तरीय बैठक हुई और सड़क सुरक्षा के लिए सबने संयुक्त रूप से एक स्टॉकहोम डिक्लेरेशन (स्टॉकहोम घोषणापत्र) ज़ारी किया. इस बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे हमारे देश के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी. इस स्टॉकहोम घोषणापत्र का एक बहुत महत्वपूर्ण वादा है कि सभी देश अधिकतम गति सीमा को 30 किमी प्रति घंटा करे और सख्ती के साथ प्रभावकारी ढंग से उसको लागू करवाएं. इस बैठक और घोषणापत्र में इस बात का भी उल्लेख है कि मंत्रियों ने इस बात को माना कि अधिकतम गति सीमा कम करने से सड़क दुर्घटनाएं और इनमें होने वाली मृत्यु कम होती है इसका ठोस प्रमाण है. अधिकतम गति सीमा को कम करना सड़क सुरक्षा की ओर एक मज़बूत कदम होगातथा पर्यावरण और वायु पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

 

30 किमी प्रति घंटा (20 मील प्रति घंटा) की अधिकतम गति सीमा काफ़ी है: रॉड किंग

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सड़क सुरक्षा के प्रति सराहनीय कार्य के लिए इंग्लैंड के रॉड किंग कोउनके देश का तीसरा सबसे बड़ा सम्मानएम.बी.ई. (मेम्बर ऑफ़ मोस्ट एक्सीलेंट आर्डर ऑफ़ ब्रिटिश एम्पायर) से सम्मानित किया गया. 2004 से रॉड किंग इस अभियान से पुरजोर जुड़े हुए हैं कि अधिकतम गति सीमा कम हो और 20 मील प्रति घंटा (या 30 किमी प्रति घंटा) से अधिक न हो. उन्होंने यह अभियान 2004 में इंग्लैंड के वारिन्ग्तन से शुरू किया था. उनका मानना है कि जनसमुदाय से अधिकतम गति सीमा पर संवाद हो तो उन्हें समझ में आएगा कि चाहे वह पैदल चलने वाले लोग हों या साइकिल पर या मोटर वाले वाहन परसभी के लिए यह हितकारी है और जीवनरक्षक है कि लोग सरकार द्वारा तय अधिकतम गति सीमा का अनुपालन करें - और अधिकतम गति सीमा 30 किमी प्रति घंटे से ज्यादा न हो.

 

2004 से शुरू हुए इस अभियान से आज इंग्लैंडआयरलैंडअमरीकाकनाडा और ऑस्ट्रेलिया में 500 से अधिक स्थानीय सड़क सुरक्षा अभियान जुड़े हुए हैं जो अपने-अपने शहरी प्रशासन से यह मांग कर रहे हैं कि अधिकतम गति सीमा को कम किया जाए और 30 किमी प्रति घंटा या 20 मील प्रति घंटा को ही अधिकतम गति सीमा तय किया जाए. रॉड किंग ने इंग्लैंड के 40 शहरी प्रशासनों को 30 किमी प्रति घंटा की अधिकतम गति सीमा तय करने की ओर महत्वपूर्ण कार्य किया है. 'इनर लन्दनके सभी 'बोरोहमें यह लागू की गयी है. 2017 में रॉड किंग ने विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक सड़क सुरक्षा सप्ताह के लिए भी योगदान दिया था.

 

रॉड किंग ने सिटिज़न न्यूज़ सर्विस (सीएनएस) से साक्षात्कार में कहा कि नेल्सन मंडेला का कथन कि 'समाज की आत्मा का आइना देखना हो तो यह देखें कि वह अपने बच्चों के साथ कैसा बर्ताव करता है'. रॉड किंग ने कहा कि सरकारों को यह सोचना है कि क्या उनकी सड़क सुरक्षासमाज के बच्चों को मद्दे-नज़र रख कर बनायीं गयी है जिससे कि बच्चे सुरक्षित रूप से सड़क पर साइकिल चला कर स्कूल जा सके या पैदल चल सके या सुरक्षित आरामदायक सार्वजनिक परिवहन का उपयोग कर सकेंरॉड किंग कहते हैं कि हमारी आत्मा का चरित्र कैसा होगा यह इस बात से अंदाज़ा लगायें कि हम करोड़ों अरबों रुपया कारमोटरसाइकिल और उनको तेज़ दौड़ाने के लिए चौड़ी-चौड़ी बड़ी सड़कों और अन्य व्यवस्था के निर्माण पर व्यय करते हैं जिसके कारणवश हमारी सड़क व्यवस्था की असलियत ऐसी हो गयी है कि इसी के कारण अनावश्यक ही बच्चे-युवा ज़ख़्मी या मृत होते हैं.

 

कार पार्किंग के लिए सरकारी व्यवस्था देख लीजिये तो अंदाज़ा लग जायेगा कि कार सवार लोगों को आरामदायक परिवहन सुख देने के लिए सरकारों ने कितना व्यय किया हुआ है. परन्तु पैदल चलना दूभर और ज़ोखिम भरा होता जा रहा है.

 

रॉड किंग कहते हैं कि यदि हम लोग थोड़ा धीमा चलें तो सड़कें सभी के लिए सुरक्षित बन जाएँगी. लोग अक्सर कहते हैं कि समस्या की जड़ तो वह मोटर वाहन चालक हैं जो तेज चलाते हैं - पर रॉड किंग कहते हैं कि वह समस्या हैं तो समाधान भी उनके साथ ही निकलेगा. यदि 30 किमी प्रति घंटे की अधिकतम गति सीमा तय कर दी जाये (जो स्टॉकहोम घोषणापत्र में सरकारों का वादा भी है)तो दुर्घटना में ज़ख़्मी और मृत होने के दर में गिरावट आएगी.

 

गति सीमा कम करने से यात्रा अवधि पर लगभग कोई फर्क नहीं पड़ता है

 

रॉड किंग कहते हैं कि दुनिया के जिन शहरों के अधिकतम गति सीमा 30 किमी प्रति घंटा है वहां पर दुर्घटनाएं और मृत्यु दर में गिरावट आई है - और लोगों का अनुभव यह रहा है कि यात्रा के समय में पहले की तुलना में लगभग कोई फर्क नहीं पड़ता है. यह सही बात है: मैं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रहता हूँ. घर से चारबाग़ रेलवे स्टेशन 14 दूर है और 30 मिनट गाड़ी से जाने में लग ही जायेंगे चाहे जितनी तेज़ चलायें. यानि कि औसतन गति रफ़्तार हुई 28 किमी प्रति घंटा. यदि सभी लोग 30 किमी प्रति घंटा से (या उससे कम)सभी सड़क नियमों का अनुपालन करते हुए चलें तो यात्रा अवधि में शायद ही कोई फर्क पड़े - पर - सड़क सुरक्षा और पर्यावरण पर बहुत ही सकारात्मक फर्क पड़ेगा. मोटर वाहन वाले लोग तेज़ दौड़ा न पाएंगे पर पैदलसाइकिलरिक्शाइ-रिक्शाटेम्पोऑटोठेले आदि पर चलने वाले लोग बहुत सुरक्षित महसूस करेंगे और सुरक्षित रहेंगे भी.

 

रॉड किंग ने एक और महत्वपूर्ण बात की: उनके अनुसार सभी सरकारी प्रशासन का यह अनुभव है कि अधिकतम गति सीमा कम करना सबसे सस्ता और आसानी से लागू किये जाने वाला कदम है - जिसका सीधा प्रभाव सड़क सुरक्षा पर पड़ता है.

 

भारत में सड़क दुर्घटनाएं और उनमें होने वाली मृत्यु कम-नहीं हो रही है बल्कि बढ़ती जा रही है.भारत सरकार  और दुनिया की सभी सरकारों का यह वादा था कि 2020 तक सड़क दुर्घटना और मृत्यु दर में 50% गिरावट आएगी पर भारत में और अनेक विकासशील देशों में गिरावट के बजाय बढ़ोतरी हो गयी है. अब स्टॉकहोम घोषणापत्र 2020 से यह उम्मीद जगी है कि सरकारें अधिकतम गति सीमा कम करेंगी और अन्य ज़रूरी कदम उठाएंगी जिससे कि किसी की भी असामयिक मृत्यु सड़क दुर्घटना में न होऔर सड़क परिवहन सबके लिए सुरक्षित और आरामदायक रहे.

 

118 माह शेष हैं वादे को पूरा करने के लिए

 

फरवरी 2020 के स्टॉकहोम घोषणापत्र के बाद अगस्त 2020 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में 194 देशों के प्रमुख ने भी सड़क सुरक्षा के प्रति अपना समर्थन दिया और 2020 तक जो लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया (सड़क दुर्घटना और मृत्यु दर को 50% कम करने का)उसको 2030 तक पूरा करने के वादे को पुन: दोहराया गया. संयुक्त राष्ट्र महासभा में देशों के प्रमुख ने स्टॉकहोम घोषणापत्र के वादों के अनुरूप ही (जिसमें 30 किमी प्रति घंटा अधिकतम गति सीमा शामिल है)सड़क सुरक्षा के लिए अपना समर्थन दिया. 2030 तक सिर्फ 118 माह शेष हैं पर किसी भी असामयिक मृत्यु को रोकने में एक पल भी देरी नहीं होनी चाहिए.

 

बॉबी रमाकांत - सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)

(विश्व स्वास्थ्य संगठन महानिदेशक द्वारा पुरुस्कृत, बॉबी रमाकांत स्वास्थ्य अधिकार और न्याय पर लिखते रहे हैं और सीएनएस, आशा परिवार और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) से जुड़े हैं. ट्विटर @bobbyramakant)

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