वक़्त कितना बुरा है आज के किसान के लिए

 वक़्त कितना बुरा है आज के किसान के लिए


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उसे लड़ना पड़ रहा है पलपल पहचान के लिए,
वक़्त कितना बुरा है, आज के किसान के लिए।

कहने को उसको आज भी कहते हैं अन्न दाता,
दाल चावल नहीं, घर में मगर मेहमान के लिए।

माना कि हवाई जहाज उड़ते हैं देश में फिर भी,
वो करता है सफ़र बैलगाड़ी में सामान के लिए।

सारी हसरतें दब गईं, खाद पानी की जुस्तजू में,
वो डटा है फिर भी, बच्चों की मुस्कान के लिए।

मेरी फसल है तो दाम इसके, मैं ही करूंगा तय,
वो गांव से शहर आ गया, इस फरमान के लिए।

सरकार भी किसान भी, अड़े हैं अपनी बात पर,
आओ करते हैं कोई कोशिश दरमियान के लिए

तुम अमीरे शहर हो, सच से, डरते हो किसलिए,
झूठ पाप का दरिया है हर किसी इंसान के लिए

पहले वोट लिया, फिर मुंह से छीन लिए निवाले,
वो फितरती हो कर रह गया हिन्दुस्तान के लिए

उसे सज़ा कब मिलेगी, ये अलग बात है लेकिन,
वो ज़िम्मेदार है, मानवता के लहुलुहान के लिए।

ज़िद के पौधे बोने छोड़ दो सियासत के चमन में
ये खरपतवार बने हुए हैं खेत-खलिहान के लिए

"ज़फ़र" मालूम है कि खुशी की दस्तक नहीं हुई,
फिर भी देखा है दर खोलकर इत्मिनान के लिए

- ज़फ़रुद्दीन "ज़फ़र"
एफ़-413,
कड़कड़डूमा कोर्ट,
दिल्ली-32

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