सरकार ने बड़ी चालाकी से इन कानूनों को किसान कानून का नाम दिया है। जबकि ये कानून बड़े व्यापारियों के भले के लिए बनाया गया है

 ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस के राष्ट्रीय महासचिव मुस्तकीम मंसूरी ने मोदी सरकार द्वारा पास किए गए कृषि कानूनों के नफे नुकसान को समझाते हुए कहा 

की मोदी सरकार ने जो तीन क़ृषि कानून पास किये है उनका किसानों के द्वारा विरोध किया जा रहा है |किसानो के द्वारा विरोध क्यों किया जा रहा है। इसे जानने से पहले हम जान लेते है। की ये 3 कानून कहते क्या है। या सरकार द्वारा इन कानूनों मैं क्या प्रावधान किये गए है।

       पहला कानून -- यह किसानों को अपनी फसल को देश के किसी भी हिस्से मैं बेचने की छूट देता है |

दूसरा कानून -- यह कानून यह कहता है की कम्पनिया और किसान पहले से ही फसल की कीमत तय कर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर सकते है | 

तीसरा कानून -- इस कानून मैं बड़े व्यापारी या कम्पनियो को छूट दे दी गयी है की वो फसलों का (एसेंशियल फसले ) कितना भी भण्डारण कर सकते है |

      मुस्तकीम मंसूरी ने कहा सरकार की चालाकी क्या है -- सरकार ने बड़ी चालाकी से इन कानूनों को किसान कानून का नाम दिया है। जबकि ये कानून बड़े व्यापारियों के भले के लिए बनाया गया है

 मुस्तकीम अहमद मंसूरी राष्ट्रीय महासचिव

 

         ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस


| इन कानूनों से 5- 7 वर्ष बाद किसानो पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा | ये  कानून किसानो का शोषण कैसे करेंगे इसको हम एक उदहारण (example) से समझते है ----

  मुस्तकीम मंसूरी ने कहा दूसरे कानून मैं कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की छूट दे गयी है | मान ली जिए कोई बिस्कुट बनाने वाली कंपनी किसान से समझौता करती है। की आप अपनी जमीन पर गेहूं उगाओ मैं आपको इतनी कीमत दे दूंगा | किसान भी राजी राजी समझौता कर लेगा |हो सकता है किसान को क़ृषि मंडियों से फसल की कीमत शुरुआत मैं ज्यादा भी मिले | जब किसान को कीमत ज्यादा मिलने लगेगी तो किसान अपनी फसल को क़ृषि मंडियों मैं बेचने क्यों लेकर जायेगा | इससे होगा ये की क़ृषि मंडियों मैं बैठे आढ़तिये धीरे धीरे अपनी दुकाने बंद कर चले जाएंगे। और क़ृषि मंडिया बंद होने लगेंगी |

जब कोई फसल मंडियों मैं बेचने ही नहीं जायेगा तो मंडिया कब तक चलेगी बंद ही होंगी | इससे होगा ये की 5-7 वर्षो मैं किसान अपनी फसल बेचने के लिए केवल बड़ी कम्पनियो  और व्यापारी पर ही निर्भर हो जायेगा | वही तीसरा कानून जो व्यापारियों को फसलों के भण्डारण करने की छूट देता है। उससे बिस्कुट कम्पनी अपने पास फसलों का 5-7 वर्षो मैं अधिक मात्र मैं भण्डारण कर लेगा जिससे बिस्कुट कंपनी 5-7 वर्षो बाद  किसानों से जब कॉन्ट्रैक्ट करेगी तो वो कहेगी की मैं तो इतनी कीमत दे सकता हुं फसल की तुम्हे कॉन्ट्रैक्ट करना है। तो करो क्योंकि बिस्कुट कंपनी ने अपने पास पहले ही अधिक मात्र मैं भण्डारण कर रखा है। वो 5- 7 वर्ष फसल नहीं खरीदेगा तब भी बिस्कुट कंपनी चलती रहेगी लेकिन किसान बेचारा क्या करेगा क़ृषि मंडी तो पहले ही बंद हो चुकी होंगी | इससे प्रभाव ये होगा की किसान को मजबूरी मैं आकर सस्ती कीमतों पर ही उस बिस्कुट कंपनी से अपनी फसल को बेचने का समझौता करना पड़ेगा | इस तरीके से बड़ी कम्पनिया और व्यापारी किसानों का शोषण करना शुरू कर देंगे |

मुस्तकीम मंसूरी ने कहा वही जब किसान और कम्पनी के बीच किसी प्रकार का विवाद होता है। तो किसान कोर्ट मैं कंपनी के सामने कैसे टिक पायेगा | भारत मैं कोर्ट में निर्णय कितने समय लेता है। और भ्रस्टाचार कितना होता है। ये सब तो आप जानते ही है | किसान खेती करेगा या कोर्ट मैं धक्के खायेगा | वही जो क़ृषि मंडी के आढ़तिये होते है। किसानो के लिए मिनी बैंक की तरह काम करते है | किसान को जब अपनी किसी जरूरत के लिए रुपयों की जरुरत होती है। तो किसान इन मंडियों के आढ़तियों से उधार ले लेते है। जिसके के लिए किसानो को कोई कागजी कारवाही नहीं करनी पडती | बैंको की कागजी कारवाही इतनी लम्बी होती है। की किसानो को लोन नहीं मिल पता है | ये क़ृषि मंडिया किसानों को आसान तरीके से लोन भी उपलब्ध करा देती है | कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से क़ृषि मंडिया बंद हो जाएगी जिससे किसानो को लोन जैसी सुविधाओं के लिए बैंको पर निर्भर होना पड़ेगा। और बैंक तो किसान की ज़मीन को पहले गिरवी रखेगा फिर लोन देगा |

   मुस्तकीम मंसूरी ने कहा वही भारत मैं सीमान्त और लघु किसान (कम ज़मीन वाले किसान ) ज्यादा है। अब इस किसान की पैदावार इतनी होती ही नहीं की वो दूसरे राज्यों मैं जाकर अपनी फसल को बेचे क्योंकि इससे ट्रांसपोर्ट की लागत अधिक हो जाती है | उदहारण के लिए जयपुर का किसान हरियाणा मैं अपनी फसल को बेचने के लिए लेकर जायेगा तो ट्रांसपोर्ट लागत और अन्य टैक्स इतने अधिक हो जाते है। की किसान के लिए दूसरे राज्यों मैं अपनी फसल बेचना फायदे का सौदा नहीं होता है | अतः  पहला कानून जो किसानों को अपनी फसल कही भी बेचने की छूट देता है। इससे किसानो को कोई फायदा नहीं मिलने वाला है। 

    मुस्तकीम मंसूरी ने कहा 5-7 वर्षो बाद होगा ये की क़ृषि मंडिया बंद हो जाएंगी और किसान बड़े व्यापारीयों, कम्पनीयों को सस्ते दामों पर अपनी फसल  बेचने के लिए मजबूर हो जायेगा | इससे भारत का गरीब किसान और भी गरीब होता चला जायेगा। मुस्तकीम मंसूरी ने कहा इसका असर आमजन पर भी पड़ेगा ।

 भंडारण क्षमता बढ़ाने पर कंपनी आमजन को मनमाने दामो पर आटा चावल दाल बेचने के लिए स्वतंत्र होंगी क्योंकि उसमें भंडारण खर्च, टांसपोर्ट, मोटमार्जन सरकार का कमीशन सब आमजन को ही वसूल करना है।

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