खंज़र बगल में छिपा कर शिकायत नहीं अच्छी
खंज़र बगल में छिपा कर शिकायत नहीं अच्छी
किसी की भी अमानत में ख़यानत नहीं अच्छी,
धर्म की बात हो तो उसमें सियासत नहीं अच्छी
घर से निकलो तो पहन लो, मां की सिली बन्डी,
सर्द रातों का क़हर है तो, नज़ाकत नहीं अच्छी।
अगर कोई कान पर मारे तो गांधीवाद निभाओ,
इस हद तक भी ज़िंदगी में शराफ़त नहीं अच्छी
ग़रीब जनता तो छोड़ देगी, सारी सब्सिडी मगर,
संसद के कैंटीन में भी फिर रियायत नहीं अच्छी
ये और बात है कि तुम कितने अलग हो लेकिन,
लुटेरे साथियों पर रहम की इनायत नहीं अच्छी।
मुल्क में बारूद से खेले कोई ग़लत बात है मगर
खंज़र बगल में छिपा कर शिकायत नहीं अच्छी
मेरी रूह को खुशियां देती हैं मेहनत की रोटियां,
ईमान बेचकर के बिल्कुल नियामत नहीं अच्छी
लोग घर तक में करते हैं काम सब के मशवरे से
किसी एक के हाथों में पूरी रियासत अच्छी नहीं
'ज़फ़र' कांटे भी फूल भी तो रहते हैं साथ साथ,
हम-वतन से खुशियां बांटों अदावत नहीं अच्छी
-ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
एफ़ -413,
कड़कड़डूमा कोर्ट,
दिल्ली-32
zzafar08@gmail.com
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
9599574952