हीं भुलाया जाएगा बिस्मिल व अशफाक उल्ला खां का बलिदान : विद्यार्णव शर्मा

नहीं भुलाया जाएगा बिस्मिल व अशफाक उल्ला खां का बलिदान : विद्यार्णव शर्मा
-काकोरी शहीद दिवस 19 दिसम्बर पर विशेष बागपत। विवेक जैन बागपत के पूर्व कोतवाली प्रभारी एवं सेवानिवृत्त पुलिस उपाधीक्षक विद्यार्णव शर्मा ने बताया कि 1857 की क्रांति की विफलता के बाद देश में लंबे समय तक क्रांतिकारी गतिविधियों में लगभग विराम लग गया। 1924 में पुनः चंद्रशेखर आज़ाद और राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में युवा क्रांतिकारियों के जत्थे तैयार हो गये। 9 अगस्त 1925 की अर्धरात्रि में काकोरी स्टेशन के पास युवा क्रांतिकारियों ने ट्रेन से सरकारी खजाना लूट कर ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दे दी। अदालत ने अपने निर्णय में चार क्रांतिकारियों, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला खां, ठाकुर रोशन सिहं, राजेंद्र लाहड़ी को फाँसी की सजा दी। फांसी के लिये रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, अशफ़ाक़ उल्ला खां को फैज़ाबाद, ठाकुर रोशन सिंह को मलाका जेल इलाहाबाद और राजेन्द्र लाहिड़ी को गोंडा जेल भेज दिया गया। जनता के बढ़ते दबाव के कारण अनहोनी की आशंका से घिरी अंग्रेज सरकार ने निर्धारित तिथि से दो दिन पूर्व 17 दिसम्बर 1927 को राजेन्द्र लाहिड़ी को गोंडा जेल में फाँसी पर लटका दिया। अन्य तीनों क्रांतिकारियों को 19 दिसम्बर 1927 को फाँसी दे दी गई l राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला खां बहुत अच्छे शायर और कवि थे। ठाकुर रोशन सिंह बहुत शक्तिशाली थे, उनके साथी उन्हें भीमसेन कहते थे। ठाकुर साहब स्वतंत्रता की लड़ाई को धर्मयुद्ध कहते थे। वे कहा करते थे धर्मयुद्ध में जान देने वालों की वही गति होती है, जो तप करने वाले ऋषि मुनियों की होती है। राजेन्द्र लाहिड़ी ने कहा था कि देश की बलिवेदी पर मेरे प्राणों की आवश्यकता है, मेरी मौत व्यर्थ नही जाएगी।

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