मुलायम सिंह के बाद अखिलेश यादव की साजिशों और फरेब से आखिर कब तक बेखबर रहेगा मुसलमान?

M.A. Mansoori 
सच तो यह है कि मुलायम ने हमेशा धर्मनिरपेक्षता की आड़ लेकर सैकुलर पार्टियों एवं मुसलमानों को जितनी खूबसूरती और मक्कारी से ठगा है, इसकी मिसाल मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है, मुलायम सिंह ने 2011 में हर मंच से कहा था की हर थाने में एक मुसलमान सब इंस्पेक्टर होगा, पूरे प्रदेश में कितने थानों में सब इंस्पेक्टर दिए मुलायम ने, इस पर भी ग़ौर करने की बात है, हां इसके विपरीत हर थाने में ही नहीं हर चौकी पर स्वजातीय सब इंस्पेक्टर से लेकर इंस्पेक्टर और सीओ जरूर देखने को मिले, यही नहीं प्रदेश की जनता यह भी नहीं भूली है कि 2011 में मुलायम ने हर मंच से मुसलमान को 18% आरक्षण देने का ऐलान किया था, और मुसलमान ने खुले दिल से खुलकर वोट किया, और पूर्ण बहुमत से सपा सरकार बनवाई, और सरकार बनते ही यह तथा कथित धर्मनिरपेक्षता का अलमबरदार अपने किए सारे वायदों की पोटली बनाकर गोमती में फेंक आया, और नाहीं 18% आरक्षण मिला और नाही ही हर थाने में सब इंस्पेक्टर, एस आई तो छोड़िए अगर समीक्षा की जाए तो थाने और चौकी स्तर पर तो एक सिपाही तक नजर नहीं आएगा, हां इसके विपरीत पिछली सरकारों से भी अधिक प्रदेश में भयानक संप्रदायिक देंगे अवश्य हुए, जो गुजरात दंगों से भी कहीं ज्यादा थे, सच तो यह है मुलायम कभी सेकुलर रहे ही नहीं सिर्फ सोशलिज्म का चोला पहनकर सेकुलर पार्टियों एवं मुसलमानों को धोखा देकर अपना उल्लू सीधा करते रहे, और सरकार बनाकर अपने स्वजातियों को भरपूर पुलिस एवं अन्य विभागों में भर्ती करते रहे और मुसलमानो के साथ फोटो खिंचवा खिंचवा कर उन्हें खुश करते रहे, दूसरी तरफ स्वजातीय इटावा, मैनपुरी, एटा, फर्रुखाबाद से बुलाकर रात को ही शास्त्री भवन में अपॉइंटमेंट लेटर दिए गए जिसका जीता जागता सबूत है, कि पीएसी एवं पुलिस में हर तीसरा व्यक्ति सब स्वजातीय मिलेगा, यह है असली समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता, जबकि बसपा और सपा गठबंधन 1993 की सरकार में शिक्षा मंत्री डॉक्टर मसूद द्वारा 5500, उर्दू अनुवादक और उर्दू शिक्षक दिए जाने से नेताजी इतने खिन्न हो गए थे, के डॉक्टर मसूद और मायावती के बीच बाकायदा तौर पर विवाद करा कर दोनों के बीच इतनी नफरत पैदा कर दी थी, की डॉक्टर मसूद को मंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा, यही नहीं रातों-रात उनका सामान उठाकर बाहर फिकवाया गया, सिर्फ इसलिए की कहीं डॉक्टर मसूद मुसलमानों के नेता न बन जाए, एक डॉक्टर मसूद ही नहीं मुलायम सिंह को अपनी पार्टी का वह नेता भी पसंद नहीं जिसके पीछे क़ौम के लोग खड़े हो, एक नहीं सैकड़ो लोगों की फेहरिस्त है, सच तो यह है दूसरी पार्टियों को छोड़ो खुद अपनी भी पार्टी में मुलायम ने कोई मुस्लिम नेतृत्व नहीं उभरने दिया, आज़म खांन का नाम लेकर दूसरे मुस्लिम नेताओं को डराते रहे जब भी किसी मुस्लिम नेता ने अपनी बात रखी या कुछ मांगा नेताजी ने फौरन आज़म खांन का हव्वा दिखा दिया, इससे दो बातें हो गई एक तो सामने वाला डर कर खामोश हो गया इस बहाने सबको कुछ देना नहीं पड़ा दूसरे उसके दिल में आज़म खांन के प्रति नफ़रत भी पैदा हो गई, जाहिर सी बात है जो जो आज़म खांन साहब की वजह से सपा सरकार में कुछ नहीं पाते वह तो आज़म खांन के नाम से नफरत ही करेंगें, और आज उसका परिणाम भी सामने है, लोग बड़ी गलतफहमीं में है, कि नेताजी समाजवादी हैं, यह सैकुलर हैं, वह सिर्फ धोखे में है, क्योंकि  ना ही नेताजी सेकुलर थे, और ना ही अखिलेश यादव सेकुलर है, नेताजी के किसी ज़माने में जितने अच्छे लालकृष्ण आडवाणी से संबंध थे उससे भी कहीं ज्यादा मधुर संबंध अमित शाह से थे, वैसे भाजपा सपा का औपचारिक गठबंधन कभी नहीं रहा, लेकिन 1990 से लेकर अब तक भाजपा के हर बुरे वक्त पर सपा ने ही भाजपा का साथ दिया, बल्कि बड़े लोग कभी एहसान फरामोशी नहीं करते, सूद सहित भाजपा ने भी 2004 में सपा सरकार बनवाकर मुलायम का एहसान उतार दिया, और जब से आज तक औपचारिक ना सही अनौपचारिक रूप से दोनों एक दूसरे के हर बुरे वक्त पर काम आते रहते हैं, जैसे 1999 में अटल सरकार गिरने के लिए सोनिया गांधी को दिन रात कोसने वाले मुलायम सिंह जैसे ही सैफुद्दीन सोच के एक वोट से भाजपा सरकार गिरी फौरन मुलायम ने वही राज अलापा जो भाजपा अलाप्ती कि हम विदेशी को समर्थन नहीं दे सकते हम विदेशियों को प्रधानमंत्री नहीं बर्दाश्त कर सकते, उसके बाद चुनाव हुआ और भाजपा की मजबूत सरकार अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में बनी, जो पूरे 5 साल चली, इस बीच एक मर्तबा भी इस कथित समाजवाद के अलमबरदार ने एक भी धरना प्रदर्शन भाजपा के खिलाफ नहीं किया, इसके बरअक्स उत्तर प्रदेश में बसपा सरकार के विरुद्ध धरना प्रदर्शन शुरू कर लालकृष्ण आडवाणी जो मुलायम के मजबूत आदमी थे, उनसे मिलकर बसपा सरकार गिरा दी, क्योंकि मुलायम सिंह आडवाणी के ख़ास आदमी थे, अब अटल जी को मैनेज करने के लिए नेताजी मुलायम सिंह ने अमर सिंह का इस्तेमाल किया और अमर सिंह ने उसको बखूबी निभाया और 2004 में ही मुलायम सरकार बगैर किसी बहुमत के बनी, जिस दिन बहुमत साबित होना था सारे भाजपा विधायक वाकआउट कर गए, और सपा सरकार पूरे साढ़े तीन वर्ष भाजपा के अपरोक्ष सहयोग से चली, इसी बीच लोकसभा चुनाव हुए तो मुलायम सिंह ने अपने भाषणों में हर मंच से एक ही राग अलापा था, कि हम मुद्दों के आधार पर समर्थन देंगे और साक्षी महाराज को भी उसे चुनाव में लेकर हेलीकॉप्टर से घूम रहे थे, अपरोक्ष रूप से कल्याण सिंह का समर्थन भी हासिल था, उधर साक्षी महाराज का साथ सर्वाधिक 38 सांसद नेताजी मुलायम सिंह ने जितवा लिए, क्योंकि नेताजी हर मंच से बयान दे चुके थे कि हम मुद्दों के आधार पर समर्थन करेंगे, और पहले भी कह चुके थे हम विदेशी को समर्थन नहीं करेंगे, 38 सांसद लाने के बाद भी मुलायम सिंह हतप्रभ रह गए, क्योंकि सरकार कांग्रेस बनाने के कगार पर आ गई, अब मुलायम सिंह किस मुंह से समर्थन का ऐलान करें या कांग्रेस के पास जायें, एक मर्तबा फिर अमर सिंह का इस्तेमाल किया और सोनिया गांधी द्वारा बुलाई गई विपक्ष की बैठक में जिसमें सपा को आमंत्रित नहीं किया गया था, बेशर्मी से भेजा जैसे ही अमर सिंह पहुंचे बेरी केटिंग पर ही रोक दिए गए, और अंदर नहीं जाने दिया गया, क्योंकि मुलायम सिंह यादव 1997 से ही भाजपा के इशारों पर पूरी तरह नाच रहे थे और धर्मनिरपेक्षता की आड़ में कांग्रेस की क़बर खोद रहे थे, क्योंकि मुसलमान भी कुछ कांग्रेस से नाराज था इसी का भरपूर फायदा मुलायम सिंह ने उठाया और प्रदेश की सेकुलर जनता विशेष तौर से मुसलमानों को गुमराह करते रहे, ठीक उसी तरह मुलायम सिंह के नक्शे कदम पर चलते हुए अखिलेश यादव भी सपा में मुस्लिम नेताओं को ठिकाने लगाने का काम करते हुए पार्लियामेंट में मुस्लिम नुमाइंदगी कम करने की साजिश रच रहे हैं? आखिर मुसलमान अखिलेश यादव की साजिशों और फरेब को अभी नहीं समझा तो कब समझेगा?

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