भारतीय संविधान और लोकतंत्र में जिनकी आस्था है,जो बदलाव चाहते हैं, वे कांग्रेस का साथ दें, मुस्तकीम मंसूरी

रिपोर्ट-वीरेंद्र बिष्ट

लखनऊ, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस के राष्ट्रीय महासचिव मुस्तकीम मंसूरी ने वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों पर अपनी बेबाक राय रखते हुए कहा की बिहार की राजनीति में बेपेंदी के लोटा की छवि बना चुके नीतीश कुमार पलट कर भाजपा के साथ चले गए हैं। एक बार फिर वे लालू प्रसाद यादव से दूर हो गए हैं, भाजपा के साथी बन गए हैं।


इसमें नीतीश की गलती नहीं है, इसके पीछे नीतीश का डर है, जिसके चलते उनकी रातों की नींद उड़ जाती होगी।

मुस्तकीम मंसूरी ने कहा दरअसल, इस समय जो सत्ता देश में है, उसमें लोकतंत्र नाम का कोई तत्व नहीं पाया जाता। ये फासीवादी सत्ता है, जिसके कंधों पर पूंजीपति सवार हैं। ये अपने आप को बनाए रखने के लिए कुछ भी कर सकती है।

उन्होंने कहा इस सत्ता से टकराना बच्चों का खेल नहीं है। देश में 

फासीवाद के खिलाफ केवल तीन ही लोग संघर्ष कर रहे हैं।


 जिनमें एक-राहुल गांधी और उनका परिवार। इस संघर्ष को हम कांग्रेस का संघर्ष भी कह सकते हैं। हालांकि इस संघर्ष में पूरी कांग्रेस गांधी परिवार के साथ नहीं है।


दूसरे लालू प्रसाद यादव, लालू जी ने जिस दमनचक्र का सामना किया, ये बहुत हिम्मत का काम है। उन्हें झुकाने की हर सम्भव कोशिश की गई, लेकिन बन्दा झुका नहीं।


तिसरे- उद्धव ठाकरे।  ठाकरे जो अपने हिस्से का संघर्ष बहुत कायदे से कर रहे हैं। वही 

एक संगठन के तौर पर धीमी किंतु अनवरत लड़ाई कम्युनिस्ट भी इस सत्ता के खिलाफ लड़ रहे हैं। इसलिए 

 जरूरी है, जो लोग चाहते हैं कि फासीवाद का अंधकार छंटे और लोकतंत्र का सूर्योदय हो, वे बिना शर्त कांग्रेस का साथ दें। अगर आप महाराष्ट्र में हैं तो बिना शर्त उद्धव ठाकरे के साथ खड़े हों। अगर आप केरल, बंगाल, त्रिपुरा में हैं तो बिना शर्त कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़ जाएं। और यदि 

 आप बिहार में हैं तो लालू यादव, तेजस्वी यादव के साथ खड़े हो जाएं। ताकि लड़ाई को मजबूती से लड़ा जाए।


मुस्तकीम मंसूरी ने कहा यदि आप नीतीश कुमार, चन्द्रशेखर राव, शरद पवार, ममता बनर्जी, अरविंद से बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं तो बारम्बार निराश होने के लिए तैयार रहिए। ग़ौर तलब 

हैं कि हमनें यहां एमके स्टालिन और नवीन पटनायक की चर्चा इसलिए नहीं की क्यों कि इनकी राजनीति अलग है। और हमने

 अरविंद केजरीवाल की भी चर्चा इसलिए नहीं की क्योंकि हम अब भी इन्हें भाजपा की बी. टीम मानते हैं। 

  और जिस दिन नीतीश कुमार भाजपा को छोड़कर लालू के हुए थे, उसी दिन हमको लगा था, कि ये फिर पलटी मारेंगे। इस विषय पर  हमारी दिल्ली के एक पत्रकार मित्र से बहस भी हुई थी, जो कह रहे थे नीतीश ये कर डालेंगे, वो कर डालेंगे, जैसी लफ्फाजी कर रहे 

 थे, हमने उन महान पत्रकार मित्र को सुझाव दिया था कि ज्यादा लफ्फाजी मत करो, वरना जिस दिन नीतीश पलटी मारेंगे, उस दिन मुंह छिपाने की भी जगह नहीं मिलेगी। वे मित्र उस दिन से दिखे नहीं, हो सकता है कि ब्लॉक कर दिया हो।

वही एकाध हफ्ता पहले कांग्रेस के एक नेता से बात हुई थी। हमने पूछा कि नीतीश को इंडिया गठबंधन का संयोजक और प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार क्यों नहीं बनाया जा रहा? तब

नेताजी ने कहा, इंडिया का संयोजक और विपक्ष का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार जिस दिन पलटी मारेगा, उस दिन जनता और विपक्ष की पूरी राजनीति पर भयानक मनोवैज्ञानिक दवाब पड़ेगा। विपक्ष इस दवाब से बचना चाहता है। वही नेताजी की भविष्यवाणी भी सही साबित हुई है।

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