लोहिया और अंबेडकर के सियासी समीकरण मायावती के बगैर कैसे साध पाएंगे अखिलेश यादव?

 बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए बरेली से मुस्तकीम मंसूरी की ख़ास रिपोर्ट, 


M A Mansoori

सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के 132 वें  जन्मदिवस पर लोहिया और अंबेडकर के सियासी समीकरण साधने का 14 अप्रैल को एक बार फिर प्रयास करेंगे|

आपको बताते चलें लोहिया और अंबेडकर 1956 में साथ मिलकर चलने की संभावना तलाश रहे थे, जो संभव नहीं हो पाया 1956 में लोहिया और अंबेडकर के बीच पत्राचार शुरू हुआ मिलने की योजना भी बनी लेकिन मुलाकात कभी नहीं हो पाई और 6 दिसंबर 1956 को बाबा साहेब का परिनिर्वाण हो


गया| और दोनों नेताओं की साथ मिलकर काम करने की इच्छा पर अमल नहीं हो पाया अगर उस समय लोहिया और अंबेडकर साथ आए होते तो देश की राजनीति पर क्या असर हुआ होता| इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की लोहिया और अंबेडकर दोनों अपनी अपनी राजनीतिक ताकत की तुलना ज्यादा वैचारिक असर छोड़ने में कामयाब रहे, दोनों का असर उनकी मृत्यु के बाद गाढ़ा होता गया, दोनों ही भारत को आधुनिक राष्ट्र के तौर पर देखने के इच्छुक रहे, 37 साल बाद दोनों विचार धाराएं पहली बार 1993 में एक दूसरे के करीब आने के बाद लंबे समय तक साथ नहीं रह पाए, और दूसरी बार करीब आने में 25 साल का समय गुजर गया, साल 2014 में दोनों विचार  धाराओं वाली सपा बसपा को मिली करारी हार ने एक बार फिर एक साथ आने पर मजबूर कर दिया| यही कारण रहा कि साल 2019 में फिर लोहिया और अंबेडकर की

विचारधारा वाली सपा बसपा को एक साथ आना पड़ा परंतु राजनीतिक पारदर्शिता की कमी व अखिलेश कि अनुभव हीनता के कारण लोहिया और अंबेडकर के विचारों का गठबंधन फिर टूट गया| वहीं 2022 के विधानसभा चुनावों में अति उत्साह पूर्वक लगाए जा रहे कयासों के आधार पर चुनाव परिणामों से पहले ही अखिलेश यादव ने स्वयं को मुख्यमंत्री मानकर उत्तर प्रदेश में सपा सरकार के जो सपने देखे थे वह उस समय चकनाचूर हो गए जब भाजपा ने योगी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत हासिल कर  दोबारा उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने का गौरव प्राप्त किया|शायद लगातार हार दर हार कीर्तिमान स्थापित करने वाले सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को इस बात का एहसास हो गया कि जब तक लोहिया और अंबेडकर के विचारों वाली पार्टियां एक साथ नहीं आएगीं तब तक सत्ता प्राप्ति सपा के लिए एक सपना साबित होगी| यही कारण है कि अखिलेश यादव डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के 132 वें जन्मदिवस 14 अप्रैल को अंबेडकर की जन्म स्थली महू मध्य प्रदेश जाकर  उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश तक के सियासी समीकरण साधने का प्रयास करेंगे| 14 अप्रैल को देशभर के दलित संगठन मध्यप्रदेश में जुटेंगे, सपा अंबेडकर जयंती बड़ी धूमधाम से मनाएगी| इस दौरान सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव, रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी, आजाद समाज पार्टी काशीराम के मुखिया चंद्रशेखर आजाद एक मंच पर रहेंगे| अब सवाल यहां यह उठता है की बसपा सुप्रीमो मायावती के बगैर अंबेडकरवादी क्या समाजवादियों के साथ खड़े होकर सामाजिक परिवर्तन के नायक मान्यवर काशीराम के सपनों को साकार करेंगे, यह प्रश्न विचारणीय है| आपको बताते चलें के अखिलेश यादव ने दलित वोटों को साधने के लिए विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान 14 अप्रैल को दलित दिवाली मनाई थी| उसके बाद सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने रायबरेली में बसपा संस्थापक काशीराम की प्रतिमा का अनावरण कर दलित मतदाताओं को साधने का दांव भी चला है| वहीं अब 14 अप्रैल को महू में होने वाली जनसभा में अखिलेश यादव के साथ जयंत चौधरी और चंद्रशेखर की मौजूदगी सियासी तौर पर अहम है| आपको यह भी बताते चलें की विधानसभा चुनाव 2022 में भले ही अखिलेश यादव ने चंद्रशेखर को तवज्जो नहीं दी थी परंतु रामपुर व खतौली उपचुनाव में चंद्रशेखर को अखिलेश यादव के बगल वाली कुर्सी देकर सियासी संदेश जरूर दिया था| परंतु राजनीतिक पंडितों का मानना है की लोहिया और अंबेडकर की विचारधारा और सामाजिक परिवर्तन के नायक मान्यवर काशीराम के सपनों को मायावती के बगैर पूरा नहीं किया जा सकता|

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