*पेरियार रामास्वामी का भाषण* *का शासकीय आदेश* *सर्वपक्षीय सार्वजनिक सभा* *भाग 2* *दि.13/08/1950*

 *पेरियार रामास्वामी का भाषण*

*का शासकीय आदेश*

*सर्वपक्षीय सार्वजनिक सभा*

*भाग 2*

*दि.13/08/1950*

*अध्यक्ष महोदय सम्माननीय भाइयों बहनों और मेरे प्रिय काॅम्रेड्स!*

जब मुथीया मुदलियार ने मंत्री बनने के बाद आरक्षण का आदेश जारी किया था मैं अत्यंत आनंदित हुआ था, वह मेरी जीत थी ऐसा मुझे लगता था, मैं कांग्रेस में सादेपन से रहता होता तो मुझे बड़े बड़े पद मिल सकते थे मैंने कांग्रेस क्यों छोड़ा? एकाध पद या सत्ता के लिए छोड़ा था क्या ?

कतई नहीं। आरक्षण का प्रमुख नेतृत्व मैं करूंगा ऐसा विचार भी मैंने नहीं किया था,

इसलिए आज हम सब आरक्षण आदेश के बारे में चिंतित हैं उसे किसी भी परिस्थिति में संकट मुक्त करना है इसलिए हम सब को उसके संरक्षण के लिए आंदोलन खड़ा करना है, केवल उच्च न्यायालय ने आरक्षण का आदेश रद्द किया सिर्फ इसलिए हम सब संघर्ष करने वाले हैं ऐसा नहीं है, कल को यदि सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसा ही आदेश दिया तो क्या करना है? इसीलिए आरक्षण के आदेश का हर क्षेत्र में क्रियान्वयन कराने के लिए हमें संघर्ष करना है, मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं? 

*क्योंकि इस आरक्षण के आदेश में भी जनसंख्या के आधार पर सभी जातियों को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है।*

*इस आदेश के अनुसार 3% ब्राह्मणों को 14% आरक्षण दिया जाता है, 3% क्रिश्चियनों को 7% आरक्षण का प्रावधान किया गया है,ब्राह्मणेतर 87% हैं उनके लिए सिर्फ 72% आरक्षण का प्रावधान है ,इन आंकड़ों पर  ध्यान दें तो सभी को जनसंख्या के आधार पर आरक्षण दिया गया है ऐसा लगता है क्या?*

*3% ब्राह्मणों को 14% आरक्षण किसलिए?*

*87% ब्राह्मणेतर हैं तो उनके लिए सिर्फ 72% आरक्षण क्यों?*

*वे घाटा क्यों सहन करें?*

*इसीलिए हम सबको आंदोलन करना है क्या यह योग्य नहीं है?*

*दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर हमें गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत है वह है*

*नौकरियों में ब्राह्मणों का वर्चस्व , नौकरियों में उनका वर्चस्व बढ़ते ही जा रहा है किसी किसी विभाग में उनकी संख्या 60 से 70% के भी आगे जा रही है।*

*वरिष्ठ अधिकारियों की जगहें तो उन्होंने 90% के ऊपर हड़प कर रखी हैं।*

 *कुछ दिन पहले "विडूथलाई" अखबार में छप कर आये आंकड़ों का अध्ययन करेंगे तो यह सब स्पष्ट हो जायेगा।*

*ऐसी हालत में भी मद्रास उच्च न्यायालय ने आरक्षण आदेश को गैरकानूनी होने का निर्णय दिया है, यदि उसने कानूनी होने का निर्णय दिया होता तो भी परिपूर्ण समर्थनीय होता ऐसा तुम्हें लगता है क्या?*

*इसलिए यह स्पष्ट है कि सभी जातियों को न्याय देने का आदर्श प्रस्थापित होना अभी बाकी है। हम पिछले कितने वर्षों से इसकी मांग कर रहे हैं।*

*इसीलिए मैं कहता हूं कि सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध भी निर्णय दिया और आरक्षण का आदेश पूरी तरह वैध होना घोषित किया फिर भी हमें आंदोलन करना ही पड़ेगा क्योंकि हमारी बहुत पहले से जनसंख्या के आधार पर आरक्षण होना चाहिए यह मांग है।*

*उसके लिए हम सबको संघर्ष करना ही पड़ेगा , हम सबको बहुत आज्ञाकारी बनकर चलने वाला नहीं है,प्रत्येक को न्याय मिलना ही चाहिए उसके लिए हमें संघर्ष करना पड़ेगा।*

*और एक महत्वपूर्ण बात ध्यान में रखना जरूरी है वह है "आरक्षण का शासकीय आदेश" यह सिर्फ राज्य तक ही सीमित है केंद्र सरकार उसका क्रियान्वयन करे उसके लिए यह बंधनकारक नहीं है,इस आदेश की जरूरत की तरफ केन्द्र शासन अभी भी अनदेखी कर रहा है। इसलिए केंद्र शासन की सभी नौकरियों में ब्राह्मणों का ही वर्चस्व है यह दिखाई पड़ता है उच्च श्रेणी की नौकरियों में उनका ही एकाधिकार है,राज्य शासन की नौकरियों में तो उनका अनुपात तो 70 से 80% है,* *कर्मचारी भर्ती के समय प्रचंड स्तर पर भ्रष्टाचार करके राज्य से लेकर केन्द्र तक की नौकरियों पर कब्जा करने का प्रयत्न ब्राह्मणों की तरफ से किया जा रहा है,सत्ता उन्हीं की होने के कारण उन्हें आसानी से नौकरियां मिल सकती हैं और उसी प्रकार जगह न होने पर वे जगह का निर्माण भी कर सकते हैं।*

*अनेक बार ऐसा भी होता है कि एक ब्राह्मण छुट्टी पर जाता है तो अस्थायी तौर पर उस जगह पर ब्राह्मण ही लिया जाता है, उसकी छुट्टी खत्म होने को आई तो दूसरा छुट्टी पर जाता है इस प्रकार अस्थायी जगह को स्थायी बनाने का वे षड्यंत्र रचते हैं।*

*तब तक उसका वेतन रू* *500 के ऊपर चला जाता है।*

*अपनी जाति को सहयोग करने की ब्राह्मणों की यह एक युक्ति है।*

रेलवे विभाग की क्या परिस्थिति है देखिए! 

सब कुछ उनके ही हाथ में है।

अंग्रेजों के शासनकाल में तो कुछ हद तक हमें भी कुछ जगहें मिल जाती थी, आज रेलवे में अय्यंगार ब्राह्मणों का ही एकाधिकार है उन्होंने भर्ती कार्यालय का स्थलांतर मद्रास से मुंबई में कर दिया है, चुनाव मंडल के करीब करीब सभी सदस्य ब्राह्मण ही हैं, संपूर्ण परिस्थिति यदि ऐसी रहेगी तो अपने लोगों को नौकरियां कैसे मिलेंगी? केवल चतुर्थ श्रेणी के सिपाहियों की नौकरियों में अपनी संख्या अधिक है, आजकल तो उन जगहों के लिए भी ब्राह्मण स्पर्धा करने लगे हैं, ऐसा कहा जा रहा है कि 65000 सिपाहियों में ब्राह्मणों की संख्या 1300 है,ऐसी परिस्थिति में भी उनके द्वारा आरक्षण के विरोध में कोर्ट में जाना कहां तक समर्थनीय है?

वे ऐसा भी कह रहे हैं कि शैक्षणिक संस्थाओं में उनके प्रवेश को नकारा जा रहा है,

सत्य परिस्थिति क्या है वह देखना पड़ेगा, वे अपने हिस्से में आने वाली जगह से अधिक जगहों पर कब्जा करते हैं इसमें जरा भी शंका नहीं है।

शासकीय आंकड़ों पर नजर डाला तो धक्का ही लगा।

वे महाविद्यालयों की करीब करीब 90% जगहों पर कब्जा किए हुए हैं फिर भी कोर्ट में कहते हैं कि शैक्षणिक संस्थाएं हमारे ऊपर अन्याय कर रही हैं। अन्य जातियों पर वास्तव में अन्याय हो रहा है इसकी उन्हें कभी भी चिंता नहीं होती।

वे इस विषय में गांधी के पास भी गए थे, उन्हें ऐसा लगा था कि गांधी भी उन्हें समर्थन देंगे

परंतु गांधी ने उनसे कहा कि "तुम्हारे में से बहुत बड़ा वर्ग सुशिक्षित हो गया है इसलिए कुछ समय के लिए तुम ईश्वर भक्ति में लीन हो जाओगे तो वह स्तुतीय होगा, जिन ब्राह्मणेतरों को आज तक शिक्षा से वंचित रखा था उन्हें पढ़ने दो।"

गांधी के इस व्यक्तव्य पर यह मंडली नाराज हो गई, मैं यह सब तुम्हें इसलिए बता रहा हूं कि न्याय अपनी ही तरफ है इसकी जानकारी तुम्हें होनी ही चाहिए, जागरूक वर्ग भी इस विषय पर हमें ही समर्थन देगा।

*यदि आज हमने आरक्षण आदेश के संदर्भ में आंदोलन नहीं किया तो हमारा भविष्य कैसा होगा ?इसकी कल्पना कीजिए, अपनी भावी पीढ़ी का भविष्य कैसा होगा?*

*अभी केवल अपना अस्तित्व और स्वाभिमान हम वापस प्राप्त कर रहे हैं,अब से हम मनुष्य के रूप में पहचाने जाने लगे हैं और शिक्षण के लिए पात्र माने जाने लगे हैं।*

अपनी आंखें जस्टिस पार्टी के कारण खुली हैं।

उस शासकीय आदेश के कारण केवल अपनी जाति को महाविद्यालयीन शिक्षण के लिए प्रवेश मिलने लगा है जिसके कारण अपने लोगों में से किसी किसी को नौकरियां भी मिल सकी हैं।

*जस्टिस पार्टी और उस शासकीय आदेश के पहले हमारी क्या परिस्थिति थी आप लोगों को मालूम ही है आप लोगों को मालूम ही होगा कि जिला न्यायाधीश, तहसीलदार, फौजदार इन पदों पर सब के सब ब्राह्मण ही होते थे।*

 जस्टिस पार्टी के सत्ता में आने से पहले शत-प्रतिशत ब्राह्मणेतर समाज अशिक्षित ही था, फिर भी जस्टिस पार्टी के 15 वर्ष के शासनकाल और उसी प्रकार कांग्रेस के शासनकाल के प्रयासों के बावजूद ब्राह्मणेतर समाज में शिक्षा का अनुपात 10% के नीचे ही है।

अपने लोग अशिक्षित हैं यह दोष अपना नहीं है,हम शिक्षा के लिए पात्र नहीं हैं यह कोई सिद्ध कर सकता है क्या? सच पूछो तो हमको शिक्षण के लिए योग्य सुविधा व प्रोत्साहन किसी ने दिया ही नहीं यही वस्तुस्थिति है, शूद्र समाज की करीब करीब सभी जातियां सेवा करने वाली ही हैं उन्हें उनके जीने भर को ही रोजगार दिया जाता था, मंहगाई बढ़ने पर ही उनका रोजगार भी थोड़ा बहुत बढ़ा दिया जाता है।

*ऐसी परिस्थिति में हाथगाड़ी वाला, सफाईवाला, मजदूर इत्यादि के बच्चे शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं ऐसी अपेक्षा कैसे की जा सकती है?*

*इनकी तुलना ब्राह्मणों के बच्चों से करें तो ऐसा दिखाई पड़ता है कि पुरोहित ब्राह्मण का बच्चा भी डिग्रीधारी हो सकता है और वह न्यायाधीश भी हो सकता है ब्राह्मणों के लिए जाति ही उनकी पूंजी है , उनकी जनेऊ ही उनकी संपूर्ण पहचान है, गरीब ब्राह्मण भी शिक्षित हो सकता है यह हम देख ही रहे हैं।*

अपने समाज से सिर्फ अमीरों और जमींदारों के बच्चे ही शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं, हम सबने इन संपूर्ण अड़चनों को मात देते हुए शिक्षा प्राप्त भी कर लिया फिर भी हमारा कोई भविष्य नहीं है, हमारे लिए नौकरियां नकारी जाती हैं, गुणवत्ता और कार्यक्षमता का नियम हमारे सामने बाधा बनकर खड़ा हो जाता है, अपने बच्चे अच्छे मार्क्स के साथ पास हुए फिर भी उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश नहीं दिया जाता , अपने बच्चे शिक्षा प्राप्त करें ऐसा हमें लगता है यह हमारा गुनाह है क्या?

चुनाव प्रक्रिया में प्रचंड भ्रष्टाचार होता है यह दिखाई पड़ रहा है।

इस वर्ष मैट्रिक परीक्षा में 68000 विद्यार्थी बैठे थे उनमें से 38000 विद्यार्थी फेल हुए हैं ,फेल हुए विद्यार्थी बुद्धिहीन हैं ऐसा कहा जा सकता है क्या ?

मैट्रिक तक की शिक्षा के लिए

कितना प्रचंड खर्च करना पड़ता है ऐसी परिस्थिति में इतनी बड़ी संख्या में विद्यार्थियों को शिक्षा से दूर रखना उचित है क्या ?

मैं तो ऐसा कहूंगा कि जो शिक्षक ऐसे बच्चों को पढ़ाते हैं वही अपात्र हैं। अपनी परीक्षा पद्धति भी कदाचित गलत हो सकती है एक के बाद एक सभी अड़चनों को पार करते हुए अपने बच्चे मैट्रिक पास भी हो गए फिर तुम्हारे मार्क्स कम हैं इस कारण को दिखाकर महाविद्यालयों में प्रवेश देने से इनकार कर दिया जाता है,यह कैसा न्याय है? नौकरी क्यों नहीं देते यह पूछो तो तुम्हारे पास आवश्यक शैक्षणिक योग्यता नहीं है ऐसा उत्तर दिया जाता है हम शिक्षा के लिए भाग-दौड़ करते हैं तो आवश्यक गुणवत्ता प्राप्त नहीं कर सकोगे ऐसा कहकर शिक्षण भी नकार दिया जाता है।

आज बुध्यांक मापने के लिए मार्क को ही आधार माना जाता है ,जो अधिक नंबर लाते हैं सिर्फ वही बुद्धिमान होते हैं ऐसा माना जा सकता है क्या ? अधिक नंबर शायद ही प्रमाणिक रूप से प्राप्त किया जाता है, हमें पता है नंबर कैसे लिए जाते हैं?

परीक्षा खत्म होते ही उत्तर पुस्तिका जांचने के लिए जहां गई होती हैं वहां अनेक लोग पैसे लेकर पहुंच जाते हैं, अपने मंत्रियों को यह सब मालूम नहीं है?

उनमें बहुत सारे इसी तरीके से पास हुए हैं। उनमें जिन्हें खुद को इस तरीके का लाभ नहीं मिला वे अपने बच्चों को इसी तरीके से पास कराने का प्रयत्न जरूर करते हैं, लोगों को मालूम हो चुका है कि मार्क्स पैसे से खरीदे जा सकते हैं।

*यह जगजाहिर है कि ब्राह्मणों के बच्चों का हर प्रकार से सहकार्य किया जाता है, ब्राह्मण शिक्षक भी उन्हें सहयोग करते हैं।*

*परीक्षा खत्म होते ही विनायक के मंदिर में जाना है*इतना ही अपने बच्चों को मालूम है।*

*ब्राह्मणों के बच्चे मंदिर नहीं जायेंगे वे शिक्षक के पास जायेंगे,वे उत्तर पुस्तिका जांचने वाले के पास जायेंगे जो बहुधा उनकी जाति के ही होते हैं। ऐसी परिस्थिति में सिर्फ मिले हुए मार्क्स के आधार पर विद्यार्थियों का बुध्यांक मापना कहां तक उचित है?*

रशिया में कुछ निश्चित समयावधि तक बच्चों को शिक्षण दिया जाता है बाद में उनका टेस्ट लेकर प्रशिक्षण और नौकरी दी जाती है, अच्छा काम करना ही वहां परीक्षा समझी जाती है।

यहां परीक्षा ही अत्यंत कठिन ली जाती है , अन्य देशों में ऐसा नहीं है, परीक्षा के नाम पर विद्यार्थियों का अक्षरशः उत्पीड़न किया जाता है।

साथियों ! मुझे ऐसा लगता है कि प्रत्येक जाति को जनसंख्या के आधार पर जगह का वितरण होना चाहिए, एकाध जाति ने यदि 1% भी अधिक जगहों पर कब्जा कर लिया ऐसा सामने आने पर शासन की तरफ से नौकरी देने वाले और नौकरी पाने वाले दोनों पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।

दूसरों का अधिकारों पर डकैती डालने का यह गुनाह है, इसलिए उसपर कार्रवाई करने में कुछ भी गलत नहीं है। अन्यथा विकसित वर्ग और विकसित होता रहेगा और पिछड़ा हुआ वर्ग और दरिद्र होता चला जायेगा।

स्वतंत्रता के आगमन ने ब्राह्मणों के लिए अधिक अवसर निर्माण करके दिया है। वे तेजी से अपनी तरक्की कर रहे हैं। पहले आई सी एस के लिए होने वाली परीक्षा लंदन में ली जाती थी, इसके लिए वे चतुराई से क्रिश्चियन और मुस्लिम उम्मीदवारों को ब्राह्मणेतर उम्मीदवार के रूप में भेजते थे,सच्चे ब्राह्मणेतरों को जानबूझकर वंचित रखा जाता था क्योंकि वे ब्राह्मणों का विरोध नहीं करते और जाहिर रूप से ब्राह्मणों का आज्ञापालन करते हैं,वे सप्रयास ब्राह्मणेतरों को प्रगति के रास्ते से दूर रखते हैं। 

*स्वतंत्रता के बाद भी आई पी एस और आई ए एस जैसे महत्वपूर्ण पदों की मक्तेदारी ब्राह्मणों के ही पास है, ब्राह्मण अधिकारियों के हाथ के नीचे काम करने वाले अपने लोगों का भविष्य कैसा होगा?वे झूठे आरोप लगाकर हमारे कर्मचारियों को प्रताड़ित करेंगे, अपने लोग यह कितना दिन सहन करेंगे और नौकरी में टिक पायेंगे?*

*ब्राह्मणों का हर जगह पर एकाधिकार होने के कारण बहुसंख्यक होने के बावजूद ब्राह्मणेतरों को उससे वंचित रहना पड़ रहा है फिर यह कैसा लोकतंत्र? अपने प्रशासन का यह कैसा आदर्श? यदि आबादी का 87% संख्या वाला समाज  दुर्दशा में जीवन गुजारने को विवश है तो यह कैसा लोकतंत्र?*

*जनसंख्या के 3% वाले लोगों का हर जगह पर एकाधिकार व सत्ता चलाने देना कहां तक तर्कसंगत और योग्य है?*

*अपने अधिकार की मांग करना गलत है क्या?*

*हम न्याय मांग रहे हैं।*

*हम स्वाभिमान मांग रहे हैं।*

*हम अपना हिस्सा मांग रहे हैं।*

*जब हम अपनी ये मागें मांग रहे हैं तो दूसरों को इससे क्यो तकलीफ होती है?*

*मेरी जानकारी के अनुसार एक सभा में श्री कामराज ने*आरक्षण विषयक शासकीय आदेश पर उनका शासन* *ध्यान देगा ऐसा आश्वासन जनता को दिया है वे कहते हैं कि उच्च न्यायालय के निर्णय की वे सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करेंगे।*

*इतना ही बोलकर वे नहीं रुके*उन्होंने मुझ पर आरोप लगाया कि इस आंदोलन के पीछे मेरा कुछ निजी स्वार्थ है।*

*वे क्या कहना चाहते हैं मेरे समझ में नहीं आता।*

*मैंने अपने 30 वर्ष के सार्वजनिक जीवन में अत्यंत नि:स्वार्थी रूप से कार्य किया है।*

*शूद्रों और अस्पृश्यों के लिए काम करते हुए मैंने कभी किसी फल की अभिलाषा नहीं रखी।*

*मैंने मेरे लिए कोई एक भी काम किया हो उसका उदाहरण श्री कामराज देंगे क्या ?*

*उच्च नीचता नष्ट करने के लिए मैं प्रयत्नशील हूं।*

*सभी मनुष्यों का सामाजिक स्तर व स्वाभिमान स्थापित करने के लिए मैं संघर्ष कर रहा हूं।*

*सभी को समान न्याय, समान बर्ताव और समान अवसर प्राप्त कराने का मेरा सपना है।*

*संपूर्ण मानव जाति को स्वाभिमान प्राप्त कराना और उनका सामाजिक स्तर ऊंचा उठाना यह मेरा परम कर्तव्य है।*

*मैंने आज तक इन सिद्धांतों का अनुपालन व संघर्ष न किया होता तो श्री कामराज तमिलनाडु कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बन पाये होते क्या ?*

*बारह मंत्रियों वाले मंत्रिमंडल में ग्यारह मंत्री ब्राह्मणेतर समाज के बने होते क्या ?*

*हम जब ब्राह्मणेतरों का आंदोलन चला रहे थे तब यह मंडली कहां थी इसका विचार वह करें।*

*मेरे बारे में बोलने को हुआ तो मैं अध्यक्ष , सेक्रेटरी वगैरह पदों पर विभिन्न मंडलों में काम करता था।*

*मेरा उत्तम व्यवसाय भी था मेरी कोई खास पहचान न हो ऐसा कभी नहीं था परन्तु अपने इस आंदोलन ने ही इन लोगों को ऊंचे ऊंचे पदों पर बिठाया है ,अब विद्यार्थियों से ये कहते हैं कि वे मेरी बातों पर विशेष ध्यान न दें।*

*मुझसे उन्हें दूर जाना है तो जाने दो ब्राह्मणों का पैर धोने दो, उसमें मेरा क्या जाने वाला है? मैं तो वृद्ध हूं और मृत्यु के दरवाजे पर खड़ा हूं।*

*अपने बच्चे किसलिए शिक्षा लेते हैं वे स्कूली शिक्षा लेने के बाद महाविद्यालयों में न जाएं क्या? उन्हें अच्छी नौकरियां न मिलें क्या ?*

*इन सब समस्याओं के निराकरण की जिम्मेदारी वरिष्ठों की नहीं है क्या ?*

*इसी वर्ष मैंने डा. सुब्रमनीयम को एक पत्र दिया है,फर्स्ट क्लास पास हुए एक विद्यार्थी को प्रवेश देने की मैंने सिफारिश किया है।* *ऐसे अनेक पत्र पहले भी मैं दे चुका हूं। जगह सुरक्षित रखने का ही सब लोग प्रयत्न कर रहे थे,आज किसी को भी प्रवेश नहीं दिया जाता, भरपूर मार्क्स होते हुए भी आगे की पढ़ाई के लिए अपने बच्चों को प्रवेश नहीं दिया जाता यह सब देखकर अत्यंत दुख होता है।*

*क्या हम पैसे का अपव्यय और गुलाम बनकर रहने के लिए बच्चों को पढ़ायें?*

*शिक्षण के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं, अपने बच्चों को किसी भी फल का लाभ नहीं मिलता यह सब देखकर मन को अत्यधिक संताप होता है , इसीलिए इन सबका उचित उपाय ढूंढ़ना है।*

*अपना आगे का कार्यक्रम थोड़ा कठिन है, उसके लिए हम सबको अत्यधिक त्याग करना पड़ेगा,हम सब दंगा या मारामारी नहीं करेंगे,हम किसी पर तेजाब नहीं फेंकेंगे, हमें किसी को भी किसी*प्रकार की तकलीफ न देते हुए अनेक अड़चनों और यातनाओं को मात देना है।*

*इस आंदोलन से हम बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं।*

अपनी सरकार दिल्ली में होने की क्या जरूरत है? वह हमारे लिए क्या कर सकेगी?

प्राकृतिक संसाधनों में अपना देश पीछे है क्या ? अपने पास 1500 मील किनारापट्टी है, अपनी जहाजें विश्व में कहीं भी जा सकती हैं, अपने पास रेलवे है ऐसा होते हुए हम तेजी से प्रगति नहीं कर सकते क्या ? फिर अपना हक और सत्ता दिल्ली को किसलिए देना ? वे वहां मंत्री बनकर रहेंगे तो हमारा उत्पीड़न होना निश्चित है। अपने यहां स्वतंत्र शासन हुआ तो भी क्या होगा?

यहां वे अपने मंत्रियों को भी उचित मान सम्मान नहीं देंगे,डा. ए.एल. मुदलियार ने कौंसिल में भाषण करते हुए इस पर खुले मन से अपनी बात रखी है अपने मंत्रियों ने भी अनेक बार यह वास्तविकता मान्य की है कि उत्तर की तरफ से हमेशा दक्षिण भारत की उपेक्षा होती आई है इतना ही नहीं उनका उत्पीड़न भी होता है,हम क्यों दबाए गए हैं? अपने हाथ में यदि सत्ता होती तो सभी समस्याओं का समाधान हम खुद ही किए होते, अनाज की कमी विदेशों से अनाज आयात करके दूर किए होते, आज अपने पास सत्ता नहीं है वे हमें अनाज देते हैं हम किसी तरह मुश्किल से दिन निकाल रहे हैं और वे मजे में हैं, ऐसा कब तक चलने दें?

स्वतंत्रता के लिए हमने अपना पूरा जीवन समर्पित किया है इसलिए अब अपनी भूमि मुक्त करें।

आज का आंदोलन यह केवल  उस शासकीय आदेश के लिए ही नहीं छेड़ा गया है बल्कि "द्रविड़नाडु" के विभक्तीकरण के लिए भी हमें संघर्ष करना है।

राजाजी द्वारा हिन्दी लादने के कारण तमिलों की एकजुटता में मदद ही मिली है और तमिल एकता की घोषणा देने पर मजबूर किया है,इस प्रकार आज के अपने इस आंदोलन के माध्यम से सत्तांध आर्यों की विरोधी शक्ति निर्माण करने हेतु हम सबको पूरी तन्मयता से प्रयत्न करना है, अपनी मातृभूमि उत्साह और बड़ी उम्मीद से हम सबको मिल सकेगी, हम सब अपने शासन का निर्माण करें हम अपनी समस्याओं के निराकरण के लिए  स्वतंत्र होंगे।

इसलिए अंत में मैं सभी लोगों से इस आंदोलन में अपनी अपनी भूमिका निभाने का आह्वान करता हूं।


*पेरियार रामास्वामी यांची गाजलेली भाषणे (मराठी)*

*लेखक भीमराव सरवदे*

*से*

*साभार*

*अनुवादक --- चन्द्र भान पाल*

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