आज़ादी का चिराग पीर अली


आज़ादी का चिराग पीर अली

पटना डिविज़न कमिश्नर विलियम टेलर की एक रिपोर्ट में दर्ज है।कि विगत कुछ वर्षों से नगर अजीम आबाद (पटना) और उसके आसपास के दूसरे जिलों में षड़यंत्रों और विद्रोह की सरगर्मियों के लक्षण उभरने लगे 3 जुलाई 1857 को अजीम आबाद नगर में विद्रोह प्रारम्भ हो गया। पीर अली के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानियों के एक वर्ग का गठन किया गया,जिसमे अली करीम, दारोगा मेंहदी अली, वारिस अली, औसाफ हुसैन, शेख अब्बास के सभी भाई, हाजी मुहम्मद जान उर्फ घसीटा पहलवान, बुद्धन,महतो और नन्दू कुम्हार साथ थे। इसकी सूचना जब विलियम टेलर को मिली, तो उसने डाक्टर लाएल सुपरिन्टेंडेन्ट नील गोदाम के निरीक्षण में सिख पलटन को उस समारोह पर नियंत्रण पाने और विद्रोहियों को दबाने के लिए भेजा। पलटन ने आकर इतना आतंक फैलाया कि समारोह तितर-बितर हो गया। इसी बीच समारोह में सम्मिलित किसी युवक ने लाएल पर ऐसी गोली चलाई कि वह वहीं पर ढेर हो गया। इन क्रांतिकारी उपद्रवों का यह परिणाम निकला कि सभी लोग पकड़े गए और सभी को फाँसी की सजा हुई। मुख्यत: जब पीर अली को गिरफ्तार किया गया, तो अंग्रेज जानवरों ने तो हद कर दी। इसका विवरण स्वयं विलियम टेलर ने पटना क्राइसिस' (Patna Crisis) में कया है जब पीर अली को फाँसी का आदेश सुनाया गया, तो फाँसी से पूर्व षड्यंत्र के संदर्भ में कुछ जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से मैंने उसको अपने मुख्य कमरे में बुलाया। वह जब मेरे और दूसरे अंग्रेज अफसरों के सामने लाया गया, तो उस समय वह सर से पैर तक इस प्रकार जंजीरों में जकड़ा हुआ था कि न बैठ सकता था और न आसानी से चल सकता था। उसके कपड़े अत्यंत गंदे और जगह-जगह से फट गये थे और फटे हुए कपड़े खून के धब्बों से चिपक गए थे। इन सभी दुखदायी स्थितियों और फाँसी का आदेश सुनने के बाद भी वह अत्यंत संतुष्ट और निडर नज़र आ रहा था। उसकी निडरता और निर्भयता को देखकर सभी लोगों के दिलों पर गहरा प्रभाव पड़ा। इससे पहले इतना बड़ा निडर, निर्भय और उच्च सहासी व्यक्ति नहीं देखा गया था। जब उससे पूछा गया कि “अगर वह षडयंत्रों के बारे में ठीक-ठीक उत्तर दे दे तो उसकी जान बचाने की सूरत निकल सकती है।" इस बात को सुनकर तो उसने इतने तीखे तेवर से देखा कि हम लोगों के दिलों में भय पैदा हो गया। फिर उसने किसी भी राज को बताने से इनकार कर दिया और अत्यंत साहस एवं सन्तोष के साथ उत्तर दिया। “जीवन के कुछ अवसर ऐसे होते हैं जबकि जीवन बचाना बुद्धिमानी का कार्य होता है। मगर कुछ ऐसे अवसर भी आते हैं जब जीवन की परवाह न करना और सिद्धांत एवं मौलिकता के लिए अपने प्यारे देश पर कुर्बान हो जाना शराफत और ईमानदारी के साथ-साथ देश-प्रेम का प्रमाण होता है।उसके बाद अत्यंत घृणा से देखते हुए मेरी कठोरता पर समीक्षा करते हुए कहा “तुम मुझको और मेरे साथियों को प्रत्येक दिन फाँसी दे सकते हो, मगर याद रखो कि हमारे खून के छींटों से हज़ारों आज़ादी के मतवालों के शरीर में ऐसी गर्मी आएगी कि उस गर्मी से तुम और तुम्हारा प्रशासन पिघल कर रह जाएगा।"उसके बाद उस स्वतंत्रता योद्धा को बाँकीपुर लॉन के दक्षिण पश्चिमी कोने पर 7 जुलाई सन् 1857 को, जहां आज चिल्ड्रन पार्क है, फाँसी दे दी गई।



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बरेली के बहेड़ी थाने में लेडी कांस्‍टेबल के चक्‍कर में पुलिस वालों में चलीं गोलियां, थानेदार समेत पांच पर गिरी गाज

पीलीभीत के थाना जहानाबाद की शाही पुलिस चौकी के पास हुआ हादसा तेज़ रफ्तार ट्रक ने इको को मारी टक्कर दो व्यक्तियों की मौके पर हुई मौत, एक व्यक्ति घायल|

लोनी नगर पालिका परिषद लोनी का विस्तार कर 11 गांव और उनकी कॉलोनियों को शामिल कर किया गया