जंगे आजादी के मतवाले मौलाना याहिया अली और काले पानी की सजा़

भारत देश को अंग्रेजों से आजादी यूं ही नहीं मिली इसके लिए बहुत लोगों ने अपना बलिदान दिया है  बहुत लोग गिरफ्तार हुए, जेलों में रहे और यातनाएं झेली। कितनी भयानक और वीभत्स थी काले पानी की सजा। कुछ दिनों में ही आदमी बीमार होकर मर जाता था। ऐसे ही एक मौलाना के बारे में  हम आज आपको बता रहे हैं  जिन्होंने जंगे आजादी की खातिर  अपनी जान न्योछावर कर दी। 

मौलाना याहिया अली  बहुँत अच्छे इंसान थे । अल्लाह के बडे नेक बंदे थे। तहज्जुद गुजा़र थे। अंबाला षड्यंत्र केस में काले पानी की सजा हुई थी। जब वह 11 जनवरी 1866 को अंडमान पहुंचे तो उनको सैयद अकबर जमा हेड क्लर्क ने लिपिक के कार्य पर लगा दिया। ये भी सरकारी कार्य में छुट्टी के बाद कुरान और हदीस की शिक्षा एवं अच्छे कार्य करने की दीक्षा देते थे।2 वर्ष ही बीते थे कि उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। डॉक्टरी इलाज होने लगा,बीमारी की स्थिति चिंताजनक नहीं थी, एक दिन 4:00 बजे अचानक जीभ में हकलापन उत्पन्न हुआ, डॉक्टर ने दवा दी , मगर गले के नीचे नहीं उतरी,पानी दिया मगर वह भी गले से नीचे नहीं उतरा,उस पर भी अल्लाह अल्लाह कह रहे थे और होश में थे। मौलाना अब्दुल रहीम ने उनका  सर अपनी जाँघ पर रखा ही था की प्राण निकल गए। मृत्यु का दिन 10 फरवरी 1868 था। 

 सैयद अकबर  ज़मा ने चीफ कमिश्नर से आज्ञा लेकर सभी टापुओं में एलान करवा दिया कि जो लोग कफन दफन में सम्मिलित होना चाहे आ जाएं। आपके जनाजे में 4-5 हजार मुसलमान सम्मिलित हुए। कई बार जनाजे की नमाज पढ़ाई गई। और रूसी आइसलैंड में आपको दफनाया गया। आपने अंडमान में 2 साल 1 महीना और 9 दिन गुजारे। अ़डमान पहुंचने के बाद मौलाना को पैतृक मकान के गिराए जाने की सूचना मिली तो अपनी पत्नी को एक पत्र लिखा। जिसमें इस घटना पर अपना आंतरिक दुख और कष्ट प्रकट किया साथ ही कहा कि रात को हज़रत मोहम्मद (सल्ल.) की आत्मा से आवाज प्रकट हुई और उन्होंने कुरान की आयत पढ़ी उसके बाद दिल को चैन मिला।

जो लोग आज मुसलमानों पर उंगली उठाते हैं उन्हें इतिहास पढ़ना चाहिए कि मुसलमानों का जंगे आजादी में कितना बड़ा योगदान रहा है। मुसलमानों ने मुल्क की आजादी के लिए जेल भरी, फांसी के फंदे चूमे, काले पानी की सजा हुई,और बहुत सारे लोगो की  उस दौरान  मौत हुई।

प्रस्तुति : एस ए बेताब

اس ملک کے لیے بہت سے لوگوں نے اپنی جانیں قربان کی ہیں انگریزوں سے آزادی نہیں ملی ، بہت سے لوگ گرفتار ہوئے ، جیلوں میں رہے اور تشدد کا سامنا کرنا پڑا۔  کالے پانی کا عذاب کتنا خوفناک اور خوفناک تھا۔  چند دنوں میں وہ آدمی بیمار پڑ جاتا تھا اور مر جاتا تھا۔  ہم آج آپ کو ایسے ہی ایک مولانا کے بارے میں بتا رہے ہیں ، جنہوں نے جنگ میں آزادی کی خاطر اپنی جان قربان کردی۔

مولانا یحییٰ علی بہت اچھے انسان تھے۔  وہ اللہ کا بڑا بندہ تھا۔  تہجد گزر رہا تھا۔  کالے پانی کو امبالا سازش کیس میں سزا دی گئی۔  جب وہ 11 جنوری 1866 کو انڈمان پہنچا تو اسے سید اکبر جامہ ہیڈ کلرک نے کلرک کی نوکری پر لگا دیا۔  وہ قرآن و حدیث کی تعلیم کو بھی آغاز دیتے تھے اور سرکاری کام میں چھٹی کے بعد اچھے کام کرتے تھے۔صرف 2 سال گزرے تھے کہ ان کی صحت بگڑ گئی۔  طبی علاج شروع کیا گیا ، بیماری کی حالت تشویش ناک نہیں تھی ، ایک دن صبح 4:00 بجے اچانک زبان میں لڑکھڑاہٹ پیدا ہوگئی ، ڈاکٹر نے دوا دی ، لیکن حلق سے نہیں اترا ، پانی دیا لیکن وہ بھی نہیں حلق سے نیچے اتریں ، اس پر بھی اللہ اللہ کہہ رہا تھا اور اپنے حواس میں تھا۔  مولانا عبدالرحیم نے اپنی ران پر سر رکھا ہوا تھا کہ ان کا انتقال ہوگیا۔  موت کا دن 10 فروری 1868 تھا۔


 سید اکبر زمہ نے چیف کمشنر سے اجازت لینے کے بعد تمام جزیروں میں اعلان کر دیا کہ جو لوگ کفن دفن میں شرکت کرنا چاہتے ہیں وہ آئیں۔  آپ کے جنازے میں 4-5 ہزار مسلمان شریک ہوئے۔  کئی بار نماز جنازہ پڑھی گئی۔  اور آپ روسی آئس لینڈ میں دفن ہوئے۔  آپ نے 2 سال 1 ماہ اور 9 دن انڈمان میں گزارے۔  ایڈمن پہنچنے کے بعد مولانا نے آبائی گھر کے انہدام کے بارے میں معلومات حاصل کیں اور اپنی بیوی کو ایک خط لکھا۔  جس میں اس نے اس واقعے پر اپنے اندرونی دکھ اور درد کا اظہار کیا ، ساتھ ہی یہ بھی کہا کہ رات کو حضرت محمد (ص) کی روح سے آواز آئی اور اس نے قرآن کی آیت تلاوت کی ، اس کے بعد دل کو سکون ملا۔


 جو لوگ آج مسلمانوں پر انگلیاں اٹھاتے ہیں انہیں تاریخ پڑھنی چاہیے کہ آزادی کی جنگ میں مسلمانوں نے کتنا بڑا حصہ ڈالا ہے۔  ملک کی آزادی کے لیے مسلمانوں نے جیل بھری ، ناک کو چوما ، کالے پانی سے سزا دی گئی اور اس دوران بہت سے لوگ مر گئے۔


 پیشکش: S A Betaab


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