*समाजवाद का मुखौटा* *किस्त नंबर (4)*

https://youtu.be/P13vUC8kjO4

*मुस्तकीम मंसूरी*

क्योंकि मुलायम सिंह यादव 1997 से ही भाजपा के इशारों पर पूरी तरह नाच रहे थे, और धर्मनिरपेक्षता की आड़ में कांग्रेस की कब्र खोद रहे थे, क्योंकि मुसलमान भी कुछ कांग्रेस से नाराज था, इसी का भरपूर फायदा मुलायम सिंह ने उठाया और प्रदेश की सेकुलर जनता विशेष तौर से मुसलमानों को गुमराह करते रहे, हालांकि इन्हीं मुलायम की सरकार को कांग्रेस ने समर्थन देकर स्थिर किया, लेकिन मुलायम की फितरत में धोखा देना है,

मौक़े बे मौक़े अपने बचाओ के लिये कांग्रेस का समर्थन लेकर खुद को मजबूत कर भाजपा की जड़ों में दूध और कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डालने का काम करते रहे, अब जब कांग्रेस कमजोर हो गई, तो खुलकर भाजपा के साथ आ गये, इस बात को पूरा प्रदेश जानता है, कि 2014 में भाजपा सरकार बनाने में पूरी तरह सपा का रोल रहा और खुलकर सजातीय वोट भाजपा को दिलवाया, जो लोग थोड़ा बहुत भी सियासी शऊर रखते हैं, अच्छी तरह जानते हैं, की खुद की मजबूत सरकार रहते 22 सांसदों से 7 पर कैसे? यह अलग बात है कि अभी भी इस प्रदेश का मुसलमान इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पा रहा है, मुझे अच्छी तरह याद है 1999 में दौराने सदन चर्चा में राष्ट्रीय लोक दल प्रमुख अजीत सिंह ने एक प्रस्ताव रखा था, की 27% आरक्षण में मुसलमानों को 4 पुआइंट 44 प्रतिशत आरक्षण दे दिया जाए, जो लोग भी कार्रवाई देख रहे होंगे, सबको याद होगा कि यही मुसलमानों का तथा कथित मसीहा मुलायम सिंह और लालू यादव दोनों खड़े हुए, और दोनों हाथ उठाकर जोर जोर से चिल्लाने लगे नहीं नहीं यह नहीं हो सकता, इसमें से हम नहीं दे सकते, सच तो यह है कि मुलायम ना तो धर्मनिरपेक्ष है, और ना ही मुसलमानों के हमदर्द, ज्यादा पुरानी बात तो हम नहीं कहेंगे 1989 में प्रथम बार मुख्यमंत्री बनने से अब तक इनका 32 वर्ष का इतिहास उठाकर देख लीजिए, सच्चाई समझ में आ जाएगी, सच तो यह भी है, की मस्जिद शहीद  कराने में भी इसी शख्स का अहम रोल रहा है, क्योंकि 1989 में मुख्यमंत्री बनने के बाद इनका 36 का आंकड़ा विश्वनाथ प्रताप सिंह से था, और विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बन गए, विश्वनाथ प्रताप सिंह का प्रधानमंत्री बनना इस धर्मनिरपेक्षता के अलंबरदार को पसंद नहीं आया, जबकि इनको मुख्यमंत्री बनाने में विश्वनाथ प्रताप सिंह की हिमायत और अहम रोल आरिफ मोहम्मद खान का रहा, जबकि मुख्यमंत्री बनने का हक अजीत सिंह का था, लेकिन फिर भी आरिफ मोहम्मद खान के कहने पर इनको मुख्यमंत्री बनाया गया, और इन्होंने मुख्यमंत्री बनते ही विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ वह गंदी राजनीति की, जिसकी मिसाल मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, क्योंकि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते मुलायम सिंह के एनकाउंटर के आदेश किए थे, और इनको बचाया चौधरी चरण सिंह ने था, जिसका उल्लेख आगे करूंगा फिलहाल इनको विश्वनाथ प्रताप सिंह का प्रधानमंत्री बनना कतई अच्छा नहीं लगा, इन्होंने लालकृष्ण आडवाणी से मिलकर मंदिर मस्जिद राजनीति शुरू की और आडवाणी को रथयात्रा निकालने के लिए प्रेरित किया, जबकि पूरा देश जानता है की सत्ता से कांग्रेस को बेदखल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी और जनता दल मिलकर चुनाव लड़े थे, और सरकार बनाई थी, उसके बाद रथयात्रा निकालने का क्या मतलब? यहीं से शुरू हुई हिंदू बनाम मुस्लिम की घटिया और समाज में ज़हर घोलने वाली राजनीति का सिलसिला, जिस का सर्वाधिक फायदा अगर किसी को हुआ या तो भाजपा का  या फिर सपा का, यही नहीं इसकी आड़ में इस समाजवाद के तथाकथित नेता ने जमकर घिनौनी राजनीति की, जिसका असर उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश पर पड़ा, जिसका खिम्याज़ा सिर्फ और सिर्फ इस देश की भोली-भाली जनता विशेष तौर से मुसलमानों को भोगना पड़ा क्योंकि लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा से पूरे देश का जो आपसी सदभाव भाईचार्गी छिन्न भिन्न हुई एवं माहौल खराब हुआ वह किसी से छिपा भी नहीं और फिर शुरू हुए देश में भयानक संप्रदायिक दंगे, तभी विश्वनाथ प्रताप सिंह ने लालू प्रसाद यादव से रथ यात्रा को रुकवा कर लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करना पड़ा, क्योंकि विश्वनाथ प्रताप सिंह मुलायम सिंह की 

मंशा भांप चुके थे, और समझ चुके थे, कि सारा खेल मेरी सरकार को बदनाम करने के लिए खेला जा रहा है, क्योंकि सारे क्षेत्रीय दल मिलकर जनता दल बना, और भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा गया, फिर अचानक रथ यात्रा का क्या मतलब? रथयात्रा से जहां देश में सांप्रदायिक वातावरण की उत्तपत्ती वहीं लालू यादव द्वारा लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के चलते केंद्र में बनी गैर कांग्रेसी सरकार जो भाजपा के साथ जनता दल ने बनाई थी, मात्र 11 महीने ही में चली गई, जबकि दोनों दल मिलकर कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़े थे और सरकार बनाई थी, अगर राजनीतिक पंडितों की माने तो मुलायम और आडवाणी के संबंध वहीं से घनिष्ठ ही नहीं होते गए बल्कि परवान चढ़ते गए, और दोनों ने एक दूसरे की हर हर कदम पर एक दूसरे की मदद भी की उधर विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार जाते ही देश में अजीब सा माहौल उत्पन्न हो गया, अब सिर्फ एक ही चारा बचा था, की देश में मध्यावधि चुनाव हो, तभी राजीव गांधी ने मध्यावधि चुनाव में ना जाना बड़े मौके की नज़ाकत देखते हुए चंद्रशेखर से हाथ मिला कर उनके समर्थन की घोषणा कर उनको प्रधानमंत्री बनवा दिया, और यह तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का ठेकेदार फौरन चंद्र शेखर के साथ हो लिया, और चंद्रशेखर की-----

शेष-- अगली किस्त में

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