लिकाओं में सहेज रखा है.

 


लिकाओं में सहेज रखा है.
लिकाओं में सहेज रखा है.
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लुदास के तेरह वर्षीय शिवम् सुरेश कुमार ने कोरोना संकट को को अपनी तू


लिकाओं में सहेज रखा है.

लिकाओं में सहेज रखा है.
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( हरियाणा के हिसार जिले के लुदास गाँव तेरह वर्षीय शिवम् सुरेश गाँव के लार्ड शिवा स्कूल में कक्षा छह का विद्यार्थी हैं। शिवम् ने  लॉक डाउन के समय में अपनी चित्रकला से नई ऊंचाईयां हासिल की है। कला शिवम् का विषय नही है लेकिन कोरोना घटना ने उसको इस तरफ खींच लिया। खाली समय में कूची उठ गई तो फ़िर हाथों में ठहराव नहीँ आया। अपनी लाजवाब चित्रकारी से शिवम् सुरेश  ने 22  मार्च 2020  से लेकर अब तक दो सौ से ज्यादा पेंटिंग्स बना डाली हैं। शिवम् किसी न किसी विषय पर पेंटिंग प्रतिदिन बना रहा है. )


कोरोना काल दुनिया के लिए एक गंभीर समय है। दुनिया भर में इसका प्रभाव नकारात्मक रहा है। लेकिन कवियों एवं चित्रकारों के लिए ये एक सृजनात्मक दौर है. देश में ऐसे अनगिनत लोग हैं जो कोरोना काल की चिंता करते हैं और अपने तरीके से इसको दुनिया के समकक्ष रख रहें हैं। इसी में एक  नाम है शिवम् सुरेश कुमार का.  तेरह साल के शिवम् ने  कोरोना के इस भयावह संकट को को अपनी तूलिकाओं में सहेज रखा है। शिवम् मूलतः हरियाणा के हिसार जिले के लुदास गाँव के रहने वाले हैं।

शिवम् गाँव  के लार्ड शिवा स्कूल में कक्षा छह के विद्यार्थी हैं। शिवम् ने  लॉक डाउन के समय में अपनी चित्रकला से नई ऊंचाईयां हासिल की है। कला शिवम् का विषय नही है लेकिन कोरोना घटना ने उसको इस तरफ खींच लिया। खाली समय में कूची उठ गई तो फ़िर हाथों में ठहराव नहीँ आया। अपनी लाजवाब चित्रकारी से शिवम् सुरेश  ने 22  मार्च 2020  से लेकर अब तक दो सौ से ज्यादा पेंटिंग्स बना डाली हैं। शिवम् किसी न किसी विषय पर पेंटिंग प्रतिदिन बना रहा है

  शिवम्  की माँ बिदामो देवी जो आकाशवाणी हिसार में उद्घोषक के पद पर कार्यरत है, ने बताया कि चित्रकारी उन पेशों में से है जिसके बारे में कहा जाता है कि उसके लिए आपको "गॉड गिफ्टेड" होना चाहिए. हालांकि ट्रेनिंग और प्रशिक्षण से उसे काफी बेहतर किया जा सकता है. आज शिवम्  बाल चित्रकार के रूप में  13 साल की उम्र में देश और दुनिया में अपने काम से नाम कमा रहा है. शिवम्  के द्वारा बानी गई पेंटिंग्स देश-दुनिया के हज़ारों अखबारों और पत्रिकाओं के संपादकीय पृष्ठों के आलेखों के साथ प्रकाशित हो रही है.  इनकी पेंटिंग्स की खास बात ये है कि ये विषय के अनुकूल चित्रांकन करने में सक्षम है. हिसार के साथ लगते छोटे से गाँव लुदास में पले-बढ़े शिवम् ने  चित्रकारी सीखने के लिए कोई औपचारिक ट्रेनिंग भी नहीं ली है.
कला शिवम् का विषय नही है लेकिन कोरोना घटना ने उसको इस तरफ खींच लिया। खाली समय में कूची उठ गई तो फ़िर हाथों में ठहराव नहीँ आया। अपनी लाजवाब चित्रकारी से शिवम् सुरेश  ने 22  मार्च 2020  से लेकर अब तक दो सौ से ज्यादा पेंटिंग्स बना डाली हैं। शिवम् किसी न किसी विषय पर पेंटिंग प्रतिदिन बना रहा है

शिवम्  के पिता सुरेश कुमार नांदवाल कहते हैं कि कोरोना से कुछ माह पहले बेटे शिवम् ने एक बार स्कूल की छुट्टी पर कागज पर होम वर्क के दौरान एक पेंटिंग बनाई जो दैनिक भास्कर अखबार में छपी. उसके बाद  उन्होंने बेटे की पेंटिंग और उसके रुझान को देखते हुए अपने दोनों बेटों को पेंटिंग बनाने के लिए उसको शीट लेकर दी. शीट मिलने के बाद दोनों के हुनर ने अपने जौहर दिखाने शुरू कर दिए.कोरोना के दौरान स्कूल बंद होने के बाद तो ये प्रतिदिन अपने मामा डॉ सत्यवान सौरभ के लेखों के लिए पेंटिंग्स बनाने लगे. यही नहीं आस-पड़ोस के सैंकड़ों बच्चों ने भी इनकी तरह फिर पेंटिंग्स सीखने के प्रयास करना शुरू कर दिया.

उनके पिता ने बताया कि पेंटिंग की तरफ रुझान को देखते हुए वो दोनों को आगे बढ़ते देखना चाहते हैं. वो कहते हैं कि शिवम् ने महज आधा साल में ये सब सीखा है और सीखने के लिए उन्होंने यूट्यूब एवम गूगल का सहारा लिया. अपनी छोटी सी उम्र में ही आदित्य-शिवम् ने कई प्रदर्शनियों में भी हिस्सा लिया है. . पिता बताते हैं कि आदित्य-शिवम् कैनवस पेंटिंग्स, ऑइल पेंटिंग्स, चारकोल पेंटिंग्स, हाइपर रियलिस्टिक पेंटिंग्स और पोर्ट्रेट में भी अच्छा कमांड रखते हैं. शिवम्-आदित्य  ने बातचीत में कहा कि वे अपनी पेटिंग के जरिये पर्यावरण पर खास फोकस करते है. अब पेंटिंग करना हम दोनों का शौक बन गया है. हम दोनों पूरी दुनिया में पेंटिंग के जरिये देश के साथ मां बाप का नाम रोशन करना चाहते हैं

  शिवम् बताते हैं कि अब यह हमारीआदत बन गई हैं। सप्ताह में वे अन्य चित्रों के साथ किसी एक प्रसिद्ध व्यक्ति का भी चित्र निर्माण करते हैं। इसके अलवा देश की सामाजिक समस्याओं पर भी बेहतरीन चित्रकारी करते हैं। कोरोना काल में उनकी कई तस्वीरें खूब सराही गई हैं। जिसमें कोरोना के हीरो और नदियों का चित्रांकन अहम है। देश भर में मार्क्स की दौड़ ने बच्चों को  कला और साहित्य में पीछे धकेलने का काम किया है। बच्चों को  लोक और कला संस्कृति से विमुख किया गया है। टीवी एवं ऑनलाइन गेम के जरिये पश्चिमी सभ्यता कि तरफ़ उन्मुख किया गया है। जिसकी वजह से  साहित्य और चित्रकला को लेकर आज के बच्चों में उपेक्षा है।

अपनी कला, साहित्य और संस्कृति की पुनर्स्थापना के लिए बच्चों में इन गुणों का आना चाहिए। कला एक अभिरुचि है। बचपन में खिलौनों के साथ चित्रों से लगाव होता है। इसे एक प्रमुख विषय के तौर पर स्कूलों में लागू करना चाहिए। और इस विषय में सम्मान भी मिलें तो अच्छा है। लेकिन सरकार और कला  संस्थान की तरफ़ से अभी तक स्कूलों में ये विषय केवल ऐच्छिक है। कुछ बच्चे अपनी चित्रकला प्रदर्शनी का प्रदर्शन भी करते हैं। लेकिन अन्य विषयों गायन, नृत्य एवं खेल के मुकाबले चित्रकला की उपेक्षा उन्हें खलती है। शिवम्-आदित्य कहते है कि उनकी सराहना ही उनका सच्चा पुरस्कार है।

 

--- डॉo सत्यवान सौरभ, 
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी, 
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
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--- डॉo सत्यवान सौरभ, 

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