झूठ था कि सड़कों पर गडढा नहीं मिलेगा
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झूठ था कि सड़कों पर गडढा नहीं मिलेगा
सोचा नहीं था सच भी सच्चा नहीं मिलेगा,
अच्छे दिनों में आदमी अच्छा नहीं मिलेगा।
भूख से बिलखते तो सैंकड़ों हैं मेरे शहर में,
माना कि घर कोई भी कच्चा नहीं मिलेगा।
अब तो आसान नहीं मौत भी गले लगाना,
ये सुना है कि ज़हर भी सस्ता नहीं मिलेगा।
कल नहीं आज भी मरते हैं गिरकर सैकड़ों,
झूठ था कि सड़कों पर गडढा नहीं मिलेगा।
ये पलटी है उसकी बाज़ी कोरोना से वरना,
देता था धमकी चेहरे पर पर्दा नहीं मिलेगा।
हर ज़ुल्म के पीछे छिपा है सियासी पुतला,
इधर शैतान के चोले में बच्चा नहीं मिलेगा।
तुम उड़कर कर सको पार तो पार कीजिए,
समन्दर में मगरमच्छ हैं रस्ता नहीं मिलेगा।
वो घौपा है जो ख़ंज़र मेरे सीने में घुस गया,
खींचोगे कैसे बाहर अब दस्ता नहीं मिलेगा।
कहने को अमीरे शहर कहता है बड़े जुमले,
ज़फ़र वादा मगर कोई पक्का नहीं मिलेगा।
-ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
एफ-413,
कड़कड़डूमा कोर्ट,
दिल्ली-32
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