बागपत में फुलमदे माता का थान बना आस्था का केंद्र
बागपत में फुलमदे माता का थान बना आस्था का केंद्र
- फलके की बीमारी सहित मिलती है विभिन्न चर्म रोगों से मुक्ति
- दिल्ली सहित विभिन्न राज्यों से पहुॅंचते है श्रद्धालु और पीड़ितजन
बागपत। विवेक जैन
कहते है कि आस्था के आगे किसी की नही चलती बड़ी से बड़ी शक्तियाॅं आस्था के आगे नतमस्तक हो जाती है। इसी का प्रत्यक्ष उदाहरण है बागपत के सरूरपुर गांव में स्थित फुलमदे माता का थान।
सैंकड़ो वर्षो से फुलमदे माता के इस थान को चर्मरोगों से मुक्ति का स्थान माना जाता है। यहाॅं पर हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालुगण पहुॅचते है और माता के दर्शन करते है। मान्यता है कि माता के दर्शन करने के उपरान्त पास में ही स्थित फुलमदे माता के तालाब में स्नान करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाती है। जिन लोगों के शरीर पर फलके, दाने आदि निकल आते है, अगर वह इस तालाब की मिट्टी को उन पर लगाये तो वह ठीक हो जाते है। लोग इस तालाब की मिट्टी और जल को अपने साथ ले जाते है। फुलमदे माता की थान पर आषाढ़ के चार बुधवार में विशाल मेला लगता है और लाखों की संख्या में दिल्ली सहित आसपास के राज्योें से लोग माता के दर्शनों के लिये आते है। नवरात्रों में भी माता के थान पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। मान्यता है कि जो चर्म रोग की बीमारी कोई ठीक नही कर पाता वह फुलमदे माता के तालाब की मिट्टी से ठीक हो जाती है। फुलमदे माता जी के थान के पास में प्रतीक रूप में शीतला माता का छोटा थान भी बनाया गया है। गांव के लोग बताते है कि ना जाने कितनी पीढ़ियां बीत गयी, लेकिन माॅं के प्रति आस्था और विश्वास कभी भी कम नही हुआ और माॅं ने भी कभी किसी का विश्वास नही तोड़ा। माता के दरबार में हर धर्म के लोग आकर माथा टेकते है। सच्चे मन से आने वालो की मनोकामनापूर्ण होती है।
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