डॉ राम मनोहर लोहिया ने गोवा की आजादी का सिंहनाद किया था



१५ अगस्त, १९४७ को हिंदुस्थान अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो गया था लेकिन गोवा इसके बाद भी करीब १४ वर्षों तक पुर्तगालियों का गुलाम बना रहा। डॉ. राममनोहर लोहिया ने गोवा की आजादी का सिंहनाद किया था, जिसके बाद एक व्यापक आंदोलन की शुरुआत हुई। १९ दिसंबर १९६१ को हिंदुस्थानी सेना ने सशस्त्र ऑपरेशन शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप गोवा को पुर्तगाल के आधिपत्य से मुक्त कराकर हिंदुस्थान में मिला लिया गया इसलिए १९ दिसंबर को गोवा मुक्ति संग्राम, गोवा मुक्ति आंदोलन या गोवा मुक्ति संघर्ष के रूप में मनाया जाता है।


गोवा का प्रथम वर्णन रामायण काल में मिलता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सरस्वती नदी के सूख जाने के कारण उसके किनारे बसे हुए ब्राह्मणों के पुनर्वास के लिए परशुराम ने समंदर में शरसंधान किया। ऋषि का सम्मान करते हुए समंदर ने उस स्थान को अपने क्षेत्र से मुक्त कर दिया। ये पूरा स्थान कोकण कहलाया और इसका दक्षिण भाग गोपपुरी कहलाया जो वर्तमान में गोवा है। हिंदुस्थान के लिए गोवा बेहद अहम था। अपने छोटे आकार के बावजूद यह बड़ा ट्रेड सेंटर था और मर्चेंट्स, ट्रेडर्स को आकर्षित करता था। प्राइम लोकेशन की वजह से गोवा की तरफ मौर्य, सातवाहन और भोज राजवंश भी आकर्षित हुए थे। गौरतलब है कि १३५० ई. पू. में गोवा बाहमानी सल्तनत के अधीन चला गया लेकिन १३७० में विजयनगर साम्राज्य ने इस पर फिर से शासन जमा लिया। विजयनगर साम्राज्य ने एक सदी तक इस पर तब तक आधिपत्य जमाए रखा जब तक कि १४६९ में बाहमानी सल्तनत फिर से इस पर कब्जा नहीं जमा लिया। १४९८ में पुर्तगाली यात्री वास्कोडिगामा के आने के बाद गोवा, पुर्तगालियों की दृष्टि में आया। १७वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध तक यहां पुर्तगालियों का कब्जा हो गया था।


पुर्तगाली, हिंदुस्थान आनेवाले पहले (१५१०) और यहां उपनिवेश छोड़नेवाले आखिरी (१९६१) यूरोपीय शासक थे। गोवा में उनका ४५१ साल तक शासन रहा जो अंग्रेजों से काफी अलग था। पुर्तगाल में एक कहावत है कि जिसने गोवा देख लिया उसे लिस्बन देखने की जरूरत नहीं है। पुर्तगाल ने गोवा को 'वाइस किंगडम' का दर्जा दिया था और यहां के नागरिकों को ठीक वैसे ही अधिकार हासिल थे जैसे पुर्तगाल में वहां के निवासियों को मिलते हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि सरकार गोवा में पुर्तगाल की मौजूदगी को बर्दाश्त नहीं करेगी। हिंदुस्थान ने पुर्तगाल को बाहर करने के लिए गोवा, दमन और दीव के बीच में ब्लॉक्ड कर दिया। पुर्तगाल ने मामले को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की पूरी कोशिश की लेकिन यथास्थिति बरकरार रखी गई थी।


१८ दिसंबर १९६१ को हिंदुस्थानी सेना ने गोवा, दमन और दीव पर चढ़ाई कर दी। इसे ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया। इसमें वायुसेना, जलसेना एवं थलसेना तीनों ने भाग लिया। भारतीय सैनिकों की टुकड़ी ने गोवा के बॉर्डर में प्रवेश किया और अंतत: पुर्तगाल से गोवा को मुक्त कराकर अपनी सीमा में मिला लिया। पुर्तगाल के गवर्नर जनरल वसालो इ सिल्वा ने भारतीय सेना प्रमुख पीएन थापर के सामने सरेंडर किया। ३० मई १९८७ को गोवा को राज्‍य का दर्जा दे दिया गया जबकि दमन और दीव केंद्रशासित प्रदेश बने रहे। `गोवा मुक्ति दिवस' प्रति वर्ष `१९ दिसंबर' को मनाया जाता है।



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