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इसे कहते हैं हिम्मत ,हौसला ,कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

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#आयुष के धरनास्थल पर परसों रात के तूफान में लाइट खराब हो गई थी तो #एक रात बिना लाइट के निकली तो कल निकल पड़े हम प्लास, टेप और बिजली के सामान के साथ बडी मेहनत के हम सबने मिलकर लाइट ठीक करी । और अब आज सुबह की ये स्थिति देखकर मन दुखी हो गया कि रात भर हुई बरसात में सब भीग गया ! #आप सभी सोच रहे होंगे कि जब उत्तराखंड सरकार ने आयुष छात्रों की बातें मांगे मान ली हैं तो फिर ये धरनास्थल पर क्यों डटे हैं अभी ????  ----------- तो इसका जवाब विस्तार से जरूर पढ़ें क्योंकि ये मेरे अकेले के बच्चे नहीं है पूरे उत्तराखंड के बच्चे हैं,  मुख्यमंत्री जी ने अपने आदेश जारी कर दिए 21 नवम्बर को पर बच्चों को ऐसे आदेश पहले भी 3 बार मिल चुके थे और कॉलेजों के मालिक अंदर से कितने नीच गिरे हुए हैं और बच्चों एवं लडकियो को किस किस तरह से प्रताड़ित करते हैं कैसे कैसे उनका उत्पीड़न करते हैं इन बातों से सिर्फ #आयुष के छात्र-छात्राएं और उनके अपने माता-पिता ही वाकिफ थे क्योंकि पिछले 3 वर्षों में जो जुल्म -सितम और तरह तरह के मानसिक उत्पीड़न और झूठे मुकदमे इन बच्चों ने झेले हैं हकीकत में वो सुनने में जितने बुरे हैं इससे कहीं ज्याद

यूनानी दवाइयों से होता है मुकम्मल इलाज- हकीम खालिद सलीम

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  उत्तर पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत चौहान बांगर के डी 1408 गली नंबर 15 दिल्ली 53 में स्थित ताहा दवाखाना में  आसपास ही नहीं दूर-दराज के लोग भी यूनानी दवाइयां खरीदने आते हैं। दवाखाना के प्रोपराइटर हकीम खालिद सलीम से हमने बातचीत की तो उन्होंने बताया कि आजकल लोग एक बार फिर यूना नी दवाईयों की ओर रुख कर रहे हैं । एलोपैथिक दवाइयां जहां फौरी तौर पर राहत पहुंचाती है वही उनके कई साइड इफेक्ट भी हैं। फौरी राहत  के लिए एलोपैथिक को बेहतर माना जा सकता है ।लेकिन मर्ज को जड़ से खत्म करने के लिए यूनानी दवाई से बेहतर और कोई पद्धति नहीं है ।यूनानी दवाइयां बहुत कारगर तरीके से शरीर के अंदर छुपी हुई बीमारियों को बाहर निकाल कर इंसान को तंदुरुस्त बनाती हैं । यही वजह है लोगों का रुझान यूनानी दवाइयों की ओर हो रहा है। पुराने से पुराना नजला, जुकाम, गठिया बाय, सिर दर्द ,लिकोरिया, बवासीर और मर्दाना शारीरिक कमजोरी मे यूनानी दवाइयां मुकम्मल इलाज करती हैं।

नई दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में एक व्यक्ति की भारत की सबसे बड़ी किडनी है

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  Nai Delhi सर गंगा राम अस्पताल के डॉक्टरों ने एक आनुवांशिक बीमारी से पीड़ित 56 वर्षीय व्यक्ति की एक किडनी ( kidney) निकाली, जिसका वजन 7.4 किलोग्राम हो गया था। साथ ही, इसका साइज 32 सेमी x 21.8 सेमी था। बता दें कि एक सामान्य किडनी का वजन 120-150 ग्राम होता है। डॉक्टरों ने कहा कि उन्होंने जो किडनी निकाली है, उसका वजन दो नवजात शिशुओं के वजन के बराबर है। यह भारत में सबसे भारी और दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी किडनी है। यह व्यक्ति ऑटोसोमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी रोग (ADPKD) से पीड़ित था। यह बीमारी किडनी फेल होने के कारण होती है। इस स्थिति में किडनी को रिप्लेसमेंट या उसके थैरेपी की जरूरत होती है। बता दें कि इस हटाई गई किडनी के लिए वर्तमान गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड दुबई के एक अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा दर्ज कराया गया था, जिन्होंने 2017 में किडनी के बीमारी से पीड़ित एक मरीज के शरीर से 4.25 किलोग्राम वजन की किडनी (kidney) निकाली थी। हालांकि डॉक्टरों ने दो अन्य मामलों का पता लगाया जहां किडनी को हटा दिया गया था, जिनका वजन बहुत अधिक था। डॉक्टरों के अनुसार, मरीज ने पिछले महीने दर्द और गंभीर संक्रमण के सा

जीएसटी और कस्टम डिपार्टमेंट ने लगाया ब्लड donation camp

      जीएसटी और कस्टम डिपार्टमेंट ऋषि नगर के ऑफिस में खून दान कैंप लगाया गया। खून दान कैंप में ऑल इंडिया जमात ए सलमानी बिरादरीवाद रजिस्टर्ड लुधियाना की टीम ने भी खून दान किया। आजकल डेंगू और वायरल बुखार बहुत ही ज्यादा फैला हुआ है सभी हॉस्पिटलों में मरीजों की भरमार है और ज्यादातर मरीजों को खून और प्लेटलेट्स चढ़ाकर बचाया जा रहा है और इस नेक काम में जीएसटी कस्टम डिपार्टमेंट बहुत अच्छा अपना योगदान निभा रहा है और इसमें ऑल इंडिया जमात ए सलमानी बिरादरी की टीम भी लगातार पांच साल से अपना योगदान दे रही है  कस्टम डिपार्टमेंट कमिश्नर श्रीमती चारुल बर्नवाल जी, सुपरिटेंडेंट मिस्टर विनोद जी , इनकम टैक्स ऑफिसर बूटा सिंह  जीने ऑल इंडिया जमात ए सलमानी बिरादरी की टीम का हौसला अफजाई की और कहा ऑल इंडिया जमात ए सलमानी बिरादरी की टीम बहुत अच्छा नेक काम कर रही है और कई मेंबर पहली बार खून दान करने के लिए आए उनको भी जागरूक किया और ऑल इंडिया जमात ए सलमानी बिरादरी रजिस्टर्ड लुधियाना टीम के जिला प्रधान और पंजाब प्रभारी रईस अहमद सलमानी ने अपने सभी साथियों को शुक्रिया अदा किया और सभी को जागरूक किया इस मौके पर जीएसटी

ब्रेन हेमरेज ब्रेन स्ट्रोक ,मस्तिक आघात ,दिमाग की नस का फटना ,के मरीज को कैसे पहचाने

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ब्रेन-हेमरेज, ब्रेन-स्ट्रोक (मस्तिष्क आघात) अर्थात दिमाग़ की नस का फटना। मस्तिष्क आघात के मरीज़ को कैसे पहचानें? एक पार्टी चल रही थी, एक महिला को थोड़ी ठोकर सी लगी और वह गिरते गिरते संभल गई, मगर उसने अपने आसपास के लोगों को यह कह कर आश्वस्त कर दिया कि -"सब कुछ ठीक है, बस नये बूट की वजह से एक ईंट से थोड़ी ठोकर लग गई थी" ।  (यद्यपि आसपास के लोगों ने ऐम्बुलैंस बुलाने की पेशकश भी की...) साथ में खड़े मित्रों ने उन्हें साफ़ होने में मदद की और एक नई प्लेट भी आ गई! ऐसा लग रहा था कि महिला थोड़ा अपने आप में सहज नहीं है! उस समय तो वह पूरी शाम पार्टी एन्जॉय करती रहीं, पर बाद में उसके पति का लोगों के पास फोन आया कि उसे अस्पताल में ले जाया गया जहाँ उसने उसी शाम दम तोड़ दिया!! दरअसल उस पार्टी के दौरान महिला को ब्रेन-हैमरेज हुआ था!  अगर वहाँ पर मौजूद लोगों में से कोई इस अवस्था की पहचान कर पाता तो आज वो महिला हमारे बीच जीवित होती..!! माना कि ब्रेन-हैमरेज से कुछ लोग मरते नहीं है, लेकिन वे सारी उम्र के लिये अपाहिज़ और बेबसी वाला जीवन जीने पर मजबूर तो हो ही जाते हैं!! स्ट्रोक की पहचान- बामुश्किल एक

पानी को लेकर केजरीवाल और रामविलास पासवान में जंग

नई दिल्ली । केजरीवाल सरकार ने दावा किया कि केंद्र ने जिन घरों से पानी के सैंपल लेने का दावा किया था, उन घरों से पानी लिया ही नहीं गया। साथ ही वहां के लोग अपने घरों के पानी से संतुष्ट हैं। इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच केंद्रीय मंत्री (Ram Vilas Paswan) ने दिल्ली के मुख्यमंत्री (Arvind Kejriwal) पर तंज कसते हुए कहा, दिल्ली के पानी की क्वालिटी को हमने नहीं चेक किया है। यह जांच भारत की मानक संस्था भारतीय मानक ब्यूरो ने किया है। उसने बताया कि दिल्ली का पानी उनके बनाए मानक के अनुरुप शुद्धता पर सही नहीं पाया जा रहा है। दिल्ली जल बोर्ड का अजीबो-गरीब बयान पानी पर चल रही पॉलिटिक्‍स मामले में दिल्‍ली जल बोर्ड के उपाध्‍यक्ष ने बयान देकर मामले को और गरमा दिया है। जल बोर्ड के उपाध्यक्ष दिनेश मोहनिया ने कहा कि बीआइएस के अधिकारियों ने पानी की गुणवत्ता जांच के लिए सैंपल नहीं उठाए थे, बल्कि केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के कार्यकर्ताओं को भेज कर 11 जगहों से उठवाए थे पानी के सैंपल।

एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर का होना जरूरी

नई दिल्ली स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने of Health & Family Welfare) ने देश में डॉक्टरों की कमी को लेकर एक रिपोर्ट पेश की है। जिसके अनुसार 1,445 लोगों की जिम्मेदारी एक एलोपैथ (Allopathic) के डॉक्टर पर है। इसमें उत्तर भारत की बात करे तो  (Haryana) के हालात सबसे खराब है। यहां एक एलोपैथ डॉक्टर पर 6,287 लोगों की जिम्मेदारी है। वहीं (Mizoram) और (Nagaland) में बहुत ही बुरे हालात है। WHO के अनुसार एक हजार आबादी पर 1 डॉक्टर होना है जरुरी राज्यसभा में पेश रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा के अलावा उत्तर प्रदेश में एक एलोपैथ डॉक्टर पर 3,692 लोगों की जिम्मेदारी है इसी तरह उत्तराखंड में 1,631, पपंजाब में 778, हिमाचल प्रदेश में 3,015, जम्मू- कश्मीर में 1,143, और दिल्ली में 1,252 लोगों के लिए एक एलोपैथ डॉक्टर पंजीकृत है। अगर इसके अलावा आयुष डॉक्टरों को इसके साथ ही जोड़ दें तो हरियाणा में 1,812 लोगों की आबादी पर सिर्फ एक डॉक्टर तैनात है, और ये भी बाकी राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है। बात करें WHO की तो इनका सोध बताता है किर एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर होना जरुरी है।   मिजोरम और नागालैंड में हा

जीवन ज्योति बीमा योजना व सुरक्षा बीमा योजना का लाभ मिलेगा आशा संगिनी को

बुलन्दशहर : ग्रामीण  एवं शहरी आशा कार्यकर्ताओं व आशा संगिनी को केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना तथा प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत दुर्घटना बीमा का लाभ दिये जाने का आदेश दिया है राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन-उत्तर प्रदेश के निदेशक पंकज कुमार ने प्रदेश के समस्त मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को जारी किए गए पत्र में दोनों प्रकार की बीमा योजनाओं के बारे में दिशा-निर्देश दिये हैं। प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना के तहत 18 से 50 वर्ष तक के लोगों एवं प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के तहत 18 से 70 वर्ष तक के लोगों को शामिल किया जाता है। प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना के अन्तर्गत प्रति सदस्य 330 रुपए तथा प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना में प्रति सदस्य 12 रुपए की दर से बीमा कराने के लिए आवश्यक प्रीमियम की धनराशि दी गई है जिला कार्यक्रम प्रबंधक हरिप्रसाद ने बताया 18 से 50 वर्ष की उम्र तक की सभी आशा कार्यकर्ता प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना से लाभान्वित होंगी। कार्य करने के दौरान यदि किसी कारणवश किसी भी आशा की मौत हो जाने पर नामिनी को जीवन बीमा के दो लाख रुपए मिलें

हर 39 सेकंड में 1 बच्चे की जान ले रहा है निमोनिया

  संयुक्त राष्ट्र(एजेंसी)। निमोनिया के कारण वर्ष 2018 में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है। यह रोग अब सुसाध्य है और इससे बचाव भी संभव है, बावजूद इसके वैश्विक स्तर पर हर 39 सेकेंड में एक बच्चे की मौत होती है। संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने कहा कि पिछले वर्ष वैश्विक स्तर पर निमोनिया के कारण पांच वर्ष से कम उम्र के 8,00,000 से अधिक संख्या में बच्चों की मौत हुई या यूं कहें कि हर 39 सेकेंड में एक बच्चे की मौत हुई। निमोनिया के कारण जिन बच्चों की मौत हुई उनमें से अधिकतर की उम्र दो वर्ष से कम थी और 1,53,000 बच्चों की मौत जन्म के पहले महीने में ही हो गई। निमोनिया के कारण सर्वाधिक बच्चों की मौत नाईजीरिया में हुई। यहां यह आंकड़ा 1,62,000 रहा। इसके बाद 1,27,000 की संख्या के साथ भारत, 58,000 के आंकड़े के साथ पाकिस्तान, 40,000 के आंकड़े के साथ कांगो और 32,000 की संख्या के साथ इथोपिया है। संरा की एजेंसी ने कहा कि पांच वर्ष के कम उम्र के बच्चों में मौत के कुल मामलों में 15 फीसदी की वजह निमोनिया है।

परिवार नियोजन में सहभागिता / दो बच्चों के अंतर में दूरी

  करौली।  परिवार नियोजन में पुरूषों की भागीदारी बढाने के लिए विभाग द्वारा पुरूष नसबंदी पखवाड़े का आयोजन किया जायेगा जिसमें दो चरण मोबिलाइजेशन व सेवा वितरण सप्ताह होेेंगे। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डाॅ. दिनेशचंद मीना ने बताया कि पुरूष नसबंदी पखवाड़ा 2019 का आयोजन दो चरणों में 21 नवम्बर से 4 दिसम्बर 2019 तक जिले में किया जायेगा। जिसमें प्रथम चरण मोबिलाईजेशन सप्ताह के रूप में जनसंख्या स्थिरीकरण में पुरूषों की भागीदारी करने हेतू पुरूष नसबंदी का अधिक से अधिक व्यापक प्रचार-प्रसार किया जायेगा। इस सप्ताह में स्वास्थ्य कार्यकर्ता, आशा सहयोगिनीयों एवं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की द्वारा अपने क्षेत्रों में पुरूषों की परिवार नियोजन में सहभागिता, दो बच्चों के बीच अन्तराल सहित परिवार नियोजन के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान कर प्रेरित किया जायेगा। उन्होनें बताया कि द्वितीय चरण में सेवा वितरण सप्ताह के रूम में चिकित्सा संस्थानो पुरूष नसंबदी शिविरों का आयोजन किया जायेगा, जहां मोबिलाईजेशन सप्ताह में पुरूष नसबंद के लिए तैयार किये गये पुरूषों की नसबंदी की जायेगी। डिप्टी सीएमएचओ (पक) डाॅ. सतीशचंद

मरीज के पेट में छोड़ दिया तोलिया और बैंडेज

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक मरीज के पेट में ऑपरेशन केेे दौरान टोलिया बैंडेज रह जाने का मामला सामने आया है  कहते हैं भगवान का रूप होता है डॉक्टर  और जब किसी का मरीज  डॉक्टर के हवाले किया जाता है तो मरीज केे परिवार वाले भगवान भरोसे ही होते हैं और इस भरोसे को लापरवाही में तब्दील कर दिया बागपत के सरकारी अस्पताल के डॉक्टर ने  और यह मामला  कॉल करके भी सामने आया दिल्ली के सरकारी अस्पताल की  सजगता से । घटना में बागपत की रहने वाली एक महिला सरकारी अस्पताल  में पथरी का ऑपरेशन कराने गई। जहां डॉक्टरों ने ऑपरेशन कर मरीज के पेट से पथरी तो निकाल दी लेकिन तौलिया और बैंडेज पेट में ही छोड़ दिए और टांके लगा दिए। यूपी बागपत की 40 वर्षीय निवासी निशा बेगम को पथरी की शिकायत थी। पथरी की वजह से दर्द होने के कारण उनके परिजनों ने उन्हें बागपत के सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया। ऑपरेशन होने के बाद भी छह महीने तक निशा के पेट का दर्द कम नहीं हुआ। जिसके बाद 15 अक्टूबर को उन्हें राजधानी नई दिल्ली स्थित हिंदूराव अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां उनका ऑपरेशन कर डॉक्टरों ने निशा के पेट से तौलिया और बैंडेज निकाली