मोदी सरकार नया PRB एक्ट लागू करके स्वतंत्र, निष्पक्ष, बेबाक पत्रकारिता पर लगाम लगा कर गुलाम बनाना चाहती है गोदी मीडिया की तरह,

रिपोर्ट -मुस्तकीम मंसूरी

नये PRB एक्ट लागू होने से हर समाचार पत्र को प्रकाशन के 48 घंटों के अंदर RNI दिल्ली या PIB के रीजनल ऑफिस में प्रतियां जमा करनी होंगी।

मुस्तकीम मंसूरी
नई दिल्ली, सरकार ने तय किया है कि देश में केवल 50 अखबार ही रहेंगे। नया PRB एक्ट लागू हो गया। अब हर समाचार पत्र को प्रकाशन के 48 घंटो के अंदर RNI दिल्ली या PIB के रीजनल ऑफिस में प्रतियां जमा करनी होगी। जमा न कर पाने पर एक बार का न्यूनतम जुर्माना 10,000/- और अधिकतम जुर्माना 2,00,000/- है। ये आधार आपके समाचार पत्र के रजिस्ट्रेशन के निरस्तीकरण का आधार भी मान लिया जाएगा। 

भारत में 550 से ज्यादा ज़िले हैं। PIB के ऑफिस 29 हैं। उत्तराखंड, ओडिशा जैसे कई राज्यों में स्टाफ के नाम पर न्यूनतम 01 और अधिकतम स्टाफ 03 है। हर जिले में राज्य सरकार के सूचना कार्यालय स्थापित हैं, जहां रेगुलर रूप से सभी अखबार जमा होते हैं। लेकिन नए एक्ट ने इन कार्यालयों का वजूद समाप्त कर दिया।  पहले किसी भी अखबार को अपने ज़िले के DM या DC के समक्ष एक घोषणा पत्र दाखिल करना होता था। ये अधिकार भी अब केंद्र सरकार ने अपने पास ले लिया। 

अब 550 ज़िले कैसे अपने अखबार की प्रतियां RNI के 29 रीजनल ऑफिस में जमा करवाएंगे। RNI ने आदेश जारी कर दिया है। 

दरअसल, सरकार चीन की तरह नागरिकों की आज़ादी को छीनना चाहती है। छोटे और मझोले अखबार पॉकेट्स में जनमत का निर्माण करते हैं। सरकार इनसे डरी हुई है। अमर उजाला, जागरण, TOT, HT ज़ैसे 50 अखबार पर तो केंद्र सरकार का नियंत्रण है लेकिन पॉकेट्स को प्रभावित करने वाले हजारों छोटे, मझोले, क्षेत्रीय और भाषाई समाचार पत्रों पर सरकार का ज़ोर नहीं है। यदि हम उत्तराखंड की बात करें तो मध्यम समाचार पत्रों ने ही बहुगुणा सरकार, हरीश रावत सरकार और, त्रिवेंद्र सरकार के खिलाफ जनमत तैयार किया। हवाला घोटाला, राम रहीम, आशाराम जैसे तमाम मामलों में छोटे समाचार पत्रों ने ही माहौल तैयार किया। सरकार चुनाव से पहले मध्यम, क्षेत्रीय और भाषाई मीडिया को धमका कर अपने पक्ष में करना चाहता है। नहीं तो cancellation का ऑप्शन सरकार ने तैयार कर लिया है।

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