आजाद हिंद फौज की मदद करने की सजा भुगत रहे हैं रोहिंग्या

M.D. Umar Ashraf

 रोहिंग्या अराकान के मूलनिवासी हैं, अराकान वही इलाक़ा है जहां से नेताजी सुभाष चंद्रा बोस अपनी आज़ाद हिंद फ़ौज ऑपरेट किया करते थे। वहाँ उनकी मदद इन रोहिंग्या लोगों ने भरपूर की। 1945 के बाद अंग्रेज़ों ने चुन चुन कर बदला लिया। उन्होंने भारत और पाकिस्तान का बँटवारा किया। सारे राज्य का या तो भारत या फिर पाकिस्तान में विलय हुआ। सिर्फ़ दो स्टेट दोनो में आधे आधे बटे। एक बंगाल और दूसरा पंजाब। अगर मज़हब को छोड़ दें तो इनकी हर चीज़ एक है, रहन सहन, बोली, भाषा, खाना पीना, सब का सब। फिर इन्हें अंग्रेज़ों ने क्यूँ बाँटा ??


उसकी वजह है आज़ाद हिंद फ़ौज और उसके कारनामे। आज़ाद हिंद फ़ौज की लीडरशिप जहां बंगालीयों के पास थी, वहीं पूरी फ़ौज पंजाब की थी। और इनकी कर्म भूमि अराकान थी। बंगाल और पंजाब वालों ने जो झेला वो तो है ही… पर जो अराकान वालों के साथ हुआ वो एक अलग ही सानहा है।  भारत में जो इलाक़ा आज पिछड़ा हुआ है, उसकी सिर्फ़ एक वजह है क्यूँकि यहाँ के लोगों अंग्रेज़ों की मुख़ालिफ़त की और फिर अंग्रेज़ों ने उनसे हर कुछ छीन लिया।
बंगाल, बिहार, पूर्वांचल, अवध से लेकर बुंदेलखंड तक एक लम्बी फ़हरिस्त है। तमिल क़ुली ने आज़ाद हिंद फ़ौज का बहुत साथ दिया था, अंग्रेज़ों ने भारत के सीलोन को श्रीलंका के रूप में अलग कर दिया और तमिल मरवा डाले। हम आज तक सेकंड वर्ल्ड वॉर में अंग्रेज़ के विरोध की क़ीमत चुका रहे हैं। फ़िलहाल इसकी सबसे बड़ी क़ीमत अराकान के रोहिंग्या चुका रहे हैं। अरकान एक मुस्लिम बहूल इलाक़ा था, 1947 में वो पाकिस्तान के साथ जा सकता था, पर मुस्लिम लीग और अंग्रेज़ ने नही होने दिया, क्यूँकि ये आज़ाद हिंद फ़ौज के लोग थे। 


 

कभी सोचा है कि 15 अगस्त को भी भारत क्यूँ आज़ाद हुआ ??

असल में 15 अगस्त पूरे तौर पर भारत के आख़िरी वाइसराय लॉर्ड मॉउन्टबेटन के स्वार्थ के लिए चुना गया था। ये तारीख़ उसके जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण थी क्योंकि वही उस सेना का अध्यक्ष था जिसके सामने जापान ने दो परमाणु बम गिराए जाने के बाद आत्मसमर्पण किया था। मॉउन्टबेटन की मंशा थी कि वो ये ज़ाहिर कर सके कि असली मालिक कौन है। मॉउन्टबेटन ख़ुद एक साक्षात्कार में कहते हैं कि – “ये तारीख़ अचानक से मेरे दिमाग़ में आयी। ये एक सवाल का जवाब देते हुए मैंने सोचा था। मैं ये दिखाने पर आमादा था कि सबको ये समझ आये कि इस पूरे प्रकरण (आज़ादी मिलना) का असली सरदार/मुखिया कौन है। फिर मैंने अगस्त सोचा, 15 अगस्त। क्यों ? क्योंकि ये जापान के आत्मसमर्पण की दूसरी सालगिरह थी।” अलग अलग जगह मॉउन्टबेटन ने कई बार ये दोहराया है कि जापान का आत्मसमर्पण और भारत की आज़ादी उसके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण क्षण थे। वैसे भारत की आज़ादी को भारत के बँटवारे में तौर पर देखिए, लाखों लोगों की मौत आपस में लड़ कर हुई। 

वैसे क़ायदे से या तो 26 जनवरी चुना जाता जिस दिन पिछले 17 साल से कांग्रेसी तिरंगा फहराते थे या 30 दिसंबर जब सुभाष चंद्र बोस ने अंडमान पर झंडा फहराया था या 14 अप्रैल जब शौकत मालिक ने भारतीय तिरंगा अंग्रेज़ फ़ौज को हरा कर मोइरांग पर फहराया था। लेकिन 15 अगस्त क्यों ? ये आज़ाद हिंद फ़ौज की हार को सेलिब्रेट कर रहे थे। एक चीज़ और समझने की है जब भारत आज़ाद हुआ तो इंग्लैंड के झंडे को न नीचे किया गया था, न सार्वजनिक रूप से उतार कर उसकी जगह दूसरा झंडा चढ़ाया गया था। लॉर्ड मॉउन्टबेटन के अनुसार ये बात वो पहले ही कर चुके थे कि यूनियन जैक को नीचे नहीं झुकने दिया जाएगा। जिससे भारतीयों को भी कोई एतराज़ नहीं था।अंतिम समय में जिस स्तम्भ पर यूनियन जैक था वो ख़ाली कर दिया गया था और 15 अगस्त की मध्यरात्रि उस ख़ाली स्तम्भ पर ही भारतीय तिरंगा फहरा। साथ ही वाइसराय के झंडे की जगह नीले रंग का गवर्नर जनरल का झंडा फहराया गया।

शायद बहुत से लोग ये न जानते हों कि भारतीय झंडा केवल यूनियन जैक नहीं था वो तो पूरे ब्रिटिश साम्राज्य का झंडा था। वाइस-राय का झंडा मुख्य समारोह में फहराया जाता था जिसको 15 अगस्त 1947 से 26 जनवरी 1950 तक गवर्नर जनरल के झंडे से बदल दिया गया। 1950 के बाद भारत पूर्ण गणतंत्र बना और गवर्नर जनरल का झंडा भी समाप्त हो गया। 

याद रखिये जब भारत आज़ाद हो रहा था तो अंग्रेज़ों के लिए भारतीयों में नफ़रत नहीं थी। मॉउन्टबेटन याद करते हैं कि आज़ादी मिलने के बाद कैसे जनता ने उनकी जय जयकार के नारे लगाए थे। उनके अनुसार लोग “ज़िंदाबाद की जय, मॉउन्टबेटन की जय , लेडी मॉउन्टबेटन की जय और पामेला मॉउन्टबेटन की जय” जैसे नारे लगा रहे थे। और उस समय कई आज़ाद हिंद फ़ौज के सिपाही क़ैद में ही थे।

Courtesey By : Opinion Daily

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