सारे पंख नोच लेंगे तेरी उड़ान के

 


सारे पंख नोच लेंगे तेरी उड़ान के



सारे पंख नोच लेंगे तेरी उड़ान के,

जब तीर निकलेंगे मेरी कमान के।


ज़ख्म भर देंगे तेरी रुह के अन्दर,

सारे लफ़्ज़ ऐसे हैं तेरी ज़ुबान के। 


तेरा तेवर भी तेरे काम ना आएगा,

तू भीख मांगेगा अपनी अमान के।


मुझे अपने अल्लाह पर भरोसा है,

परखच्चे उड़ जाएंगे तेरे गुमान के।


आंधियां सब नेस्तनाबूद कर देंगी,

दरबान कैसे भी रखले मकान के।


बदनामियां नहीं बिकेंगी बस्ती में,

दरवाजे बंद कर अपनी दुकान के।


उसे खेती करनी है शहर में अगर,

वो कुछ तो दे बदले में लगान के।


जो दोस्त बदल दे कपड़े की तरह,

वो भी तो चर्चे करता हैं ईमान के।


ग़ज़ल से अलग भी और काम हैं,

किस्से सुने होंगे 'ज़फ़र' महान के।


ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र

एफ -413,

कड़कड़डूमा कोर्ट,

दिल्ली-53

zzafar08@gmail.com

Mob. 9811720212

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