तमाशबीनों को लूटने की तैयारी वही है
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कुछ बंदर ही बदल गए हैं मदारी वही है।
वो बूढ़ा हो गया है अलग बात है लेकिन,
उस शख़्स में फिर भी होशियारी वही है।
ना मालूम किधर उगे हैं विकास के पौधे,
मेरे गांव में अभी भी काश्तकारी वही है।
उसने चोट खा कर भी बदला नहीं दिल,
लुच्चों की लफ़गों की तरफ़दारी वही है।
ये माना कि सफ़र पुराना है आदमी सा,
तुम चलकर तो देखिए मज़ेदारी वही है।
ये प्राइवेटाइजेशन ने साबित कर दिया,
ज़मींदार बदल गए हैं ज़मीदारी वही है।
सासु मां नहीं तो कैसा लगता है पराया,
अल्बत्ता ससुराल में ख़ातिरदारी वही है।
अपने लिए तो हर कोई जीता है लेकिन,
पीड़ित की करे मदद ओहदेदारी वही है।
वो शहर छोड़कर, इस शहर में आने से,
ज़फ़र लुटेरे बदल गए हैं रंगदारी वही है।
ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
एफ़-413,
कड़कड़डूमा कोर्ट,
दिल्ली-32
zzafar08@gmail.com
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