परंपरा


 परंपरा


हमारे पड़ोस से हमारे मित्र दानिश जी आये विवाह का कार्ड लेकर और साथ मे भाजी भी लेकर, बताया कि उनके छोटे भाई का परसों विवाह है । विवाह में सिर्फ 20 बाराती जाएंगे और इसके अगले दिन हमने घर पर ही दावत का कार्यक्रम रखा है। इसमें आप सादर आमंत्रित है। 

फिर उन्होंने बताया कि भारत रामपुर जा रही है उस जगह का रिवाज है कि वो बारातियो को भोजन नही कराते। मिठाई भी विवाह के बाद लड़के वाले जो साथ लाते है उसे वहां बांटते है और फिर वो बारात दुल्हन लेकर वापस आ जाती है। रास्ते मे ही कही भी बारातियो को वर पक्ष वाले भोजन करवाते है वैसे हमने अपनी बहन के यहां भोजन रखा है।

सुनकर बड़ा अचम्भा हुआ कि आज के समय मे दहेज के युग मे लड़को की मंडी सजती है। लड़के की काबलियत के हिसाब से रेट फिक्स किये जाते है। जहां लाखो लड़कियों का विवाह नही हो पाता चाहे वो कितनी ही काबिल हो। पहले तो वो सूंदर हो, पढ़ी लिखी हो, काबिल हो, नौकरी पेशा हो , घरेलू हो दहेज कितना लाएगी। तब विवाह तय होगा। ऐसे में हिंदुस्तान में एक जगह ऐसी भी है जहां बारात तक को खाना पानी कुछ नही दिया जाता है और वरपक्ष अपनी मिठाई भी साथ ले जाता है। फिर भी चेहरे पे कोई शिकन नही। 

अभी कॅरोना काल मे बता रहे है कि हिमाचल सरकार ने भी कॅरोना काल मे ये नियम निकाला है। कि विवाह तो होंगे कॅरोना काल मे पर भोजन नही बनेगा । तो शर्मा जी को पुरानी बात याद हो गई। कि शायद काफी समय पहले भी ऐसी कोई घटना घटी होगी। कि विवाह में भोजन नही दिया जाएगा और समय बीतते बीतते ये परम्परा बन गई। जैसे एक  परम्परा भी निभाई जाती है कुछ परिवारों में कि वो लड़की जहां ब्याही है वहाँ का पानी भी नही पीएंगे। सदियों से चलती हमारी परम्पराये जिन्हें आज भी निभाया जा रहा है।।

मनोज शर्मा "मन"
101, प्रताप खण्ड, विश्वकर्मा नगर
दिल्ली 95
मोब.न. 9871599113

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